अमेरिका की आबादी बहुमिश्रित रही है। यहां की जनसंख्या में जिस तरह दुनिया के विभिन्न हिस्सों और समुदायों के लोग शामिल हैं, वह यहां की सामाजिक रचना को सामासिक बनाने में बड़ी भूमिका निभाते हैं। अलबत्ता वहां की जनसंख्या के बारे में कई तरह के विरोधाभासों को भी समय-समय पर रेखांकित किया जाता रहा है। वहां के जनगणना आंकड़ों के एक ताजा विश्लेषण का निष्कर्ष है कि देश में एशियाई-अमेरिकी और पैसिफिक आईलैंडर्स (एएपीआइ) समुदाय सबसे प्रभावी अल्पसंख्यक समुदाय बनकर उभरा है। एएपीआइ एशिया और प्रशांत क्षेत्र से आकर यहां बसे समूहों को कहा जाता है। जानकारों का कहना है कि अमेरिका की सांस्कृतिक पहचान हमेशा नस्लीय और जातीय समूहों के आव्रजन से प्रभावित होती रही है। पिछले एक दशक में इस समुदाय के सदस्यों की जनसंख्या तेजी से बढ़ी है तो जाहिर तौर पर में उनका प्रभाव भी बढ़ा है। गौरतलब है कि मई को अमेरिका में एएपीआई विरासत महीने के रूप में मनाया जा रहा है।
हालांकि एशियाई लोगों के साथ अमेरिका में नस्लीय हिंसा और भेदभाव का प्रभाव भी काफी अधिक रहा है। इससे एशियाई लोगों में दहशत का भाव भी रहता है। हाल ही में अटलांटा शहर में एशियाई महिलाओं पर हुए घातक हमले के खिलाफ न सिर्फ अमेरिका में तीखा विरोध हो रहा है बल्कि दुनियाभर में इस हिंसा के प्रति चिंता और नाराजगी का भाव है। इस हिंसा को नस्लीय भेदभाव से आगे एक ऐसे खतरे के तौर पर भी देखा जा रहा है जिसमें महिलाओं के प्रति लैंगिक दुराग्रह बढ़ा है। गैर-सरकारी संस्था ‘नेशनल एशियन पैसिफिक अमेरिकन वीमंस फोरम’ की निदेशक सुंग यियोन चोईमोरो को लगता है एशियाई महिलाएं अपनी नस्ल और लिंग दोनों के कारण भेदभाव का शिकार हो रही हैं। उनके हिंसा का शिकार होने की आशंका अब और बढ़ गई है।
कुछ समाजशास्त्रियों को यह भी लगता है कि एशियाई महिलाओं को लेकर फैली पूर्वग्रहों की जड़ें अमेरिका के इतिहास में हैं। अमेरिकी समाज में यह पूर्वग्रह रहा है कि एशियाई महिलाएं दब्बू पर सेक्स में अति सक्रिय और उत्तेजक होती हैं। नस्लीय मामलों की विशेषज्ञ और स्वयंसेवी संस्था ‘एशियन अमेरिकन फेमिनिस्ट कलेक्टिव’ की सह-प्रमुख रशेल कुओ के मुताबिक अमेरिकी इतिहास में मौजूद रहे कई कानूनी और राजनीतिक उपायों के कारण भी ऐसी धारणाएं वहां आज भी कायम हैं।