इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक फैसले में कहा कि दो हिंदुओं के बीच विवाह एक पवित्र बंधन है, जिसे विवाह के साल भर के भीतर नहीं तोड़ा जा सकता फिर चाहे इसके लिए दोनों पक्ष पारस्परिक रूप से सहमत ही क्यों न हों। अदालत ने आगे कहा कि जब तक असाधारण मुश्किल या असाधारण अनैतिकता ना हो जैसा कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 14 में वर्णित है, विवाह को भंग नहीं किया जा सकता है।

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न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति डी. रमेश की पीठ ने सुनाया फैसला

पीटीआई के अनुसार, न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति डी. रमेश की पीठ ने यह निर्णय देते हुए कहा कि तलाक के लिए अर्जी दाखिल करने के संबंध में धारा 14 में विवाह की तिथि से एक साल की समय सीमा की व्यवस्था है हालांकि असाधारण मुश्किल या अनैतिकता के मामले में इस तरह की याचिका पर विचार किया जा सकता है।

दरअसल, शादी के बाद एक नया जोड़ा तलाक की अर्जी लेकर कोर्ट पहुंचा था, दोनों की तलाक पर राजी थे मगर कोर्ट ने कहा कि शादी के जब एक साल पूरे हो जाएं तब दोबारा नए सिरे से अर्जी देना और फिर अपील खारिज कर दी।

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