Google Trends: देश में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण के दूसरे चरण ने अचानक पूरे चुनावी सिस्टम को एक ही सवाल में उलझा दिया है। सवाल है कि 2002 की सूची (SIR 2002 Voter List) में कौन था, और वह आज कहां है? 15 नवंबर की सुबह केरल के त्रिपुनिथुरा के पैलेस स्कूल में लगी हेल्प डेस्क पर बूथ लेवल ऑफिसर फाइलों और टैबलेट्स में लगातार स्क्रॉल करते जा रहे थे, और सामने खड़े मतदाता अपने पुराने रिकॉर्ड ढूंढने की कोशिश में थे। एसआईआर 2025 ऐसे मोड़ पर पहुंच चुका है जहां तकनीक, पुरानी फाइलें और जमीनी सच्चाई आपस में टकराकर एक नई तस्वीर बना रही है।

ईसीआई ने इस चरण से पहले पूरे देश से 2002 की वोटर लिस्ट (SIR 2002 Voter List) का ‘प्री-मैपिंग’ मंगाया था, दावा था कि 60–70% नाम पहले से मिल चुके हैं और एसआईआर अब आसान होगा। लेकिन मैदान में पहुंचने पर कहानी बदली हुई नजर आती है। कई राज्यों में मतदाताओं को खुद 2002 की जानकारी फॉर्म में भरनी पड़ रही है और बीएलओ सिर्फ तभी पुराने रिकॉर्ड दिखा रहे हैं जब नाम बिल्कुल भी नहीं मिल रहा। कुछ बीएलओ तो यह तक कह रहे हैं कि उन्हें कभी प्री-मैपिंग दी ही नहीं गई।

इसी बीच केरल से आई रिपोर्ट तस्वीर को एकदम अलग दिशा देती है। राज्य के सीईओ कार्यालय ने बताया है कि 2002 की सूची के 2.24 करोड़ नामों में से 1.7 करोड़ लोग आज भी 2025 की सूची में मौजूद हैं—यानी 68% का सीधा मिलान। बाकी नामों में बड़ी संख्या उन युवाओं की है जो 2002 में 18 वर्ष के नहीं थे और अब पहली या दूसरी बार वोटर बने हैं। यह डेटा बताता है कि केरल में मतदाता आधार कितना स्थिर रहा है, और दो दशक में भी एक बड़ा हिस्सा उसी रूप में बचा हुआ है।

फिर अदालत में पहुंचा SIR का मामला, सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से मांगा जवाब

दूसरी तरफ मध्य प्रदेश ने मैचिंग का मॉडल थोड़ा अलग अपनाया है। यहां मतदाता पहले अपने फॉर्म में 2002 की जानकारी भरते हैं, फिर बीएलओ प्री-मैपिंग का इस्तेमाल करके फॉर्म का मिलान करते हैं और उसके बाद डिजिटल एंट्री की जाती है। प्रक्रिया धीमी है लेकिन राज्य इसे सबसे भरोसेमंद मान रहा है।

इसके उलट उत्तर प्रदेश में हालात बिल्कुल अलग हैं। कई बीएलओ कहते हैं कि प्री-मैपिंग का तो नाम भी नहीं सुना, और वजह साफ है—2002–03 के दौरान आज के कई इलाक़े अस्तित्व में ही नहीं थे। नए बने कॉलोनी-क्षेत्रों की वजह से पुराने बूथ और नई रियलिटी में कोई मेल ही नहीं बन रहा।

इसी दौरान पूरे देश में 2002 की एसआईआर सूची ऑनलाइन खोजने की कोशिश कर रहे मतदाताओं की परेशानी लगातार बढ़ रही है। पीडीएफ सर्चेबल जरूर हैं, लेकिन ज़्यादातर क्षेत्रीय भाषाओं में होने के कारण लोग अपना नाम टाइप करके भी खोज नहीं पा रहे। ऊपर से पिछले 20 सालों में बूथ, पोलिंग स्टेशन और कई जगह विधानसभा सीमा तक बदल जाने से एक ही नाम को कई लिस्ट में ढूँढना पड़ रहा है।

चुनाव आयोग का कहना है कि 95% गणना फॉर्म पूरे देश में बांटे जा चुके हैं और घर-घर गणना 4 नवंबर से 4 दिसंबर तक चलेगी। इसके बाद 9 दिसंबर को ड्राफ्ट रोल जारी होगा और तभी असल तस्वीर सामने आएगी – कि 2002 की ऐतिहासिक लिस्ट में दर्ज कितने भारतीय आज भी लोकतंत्र की मुख्यधारा में मौजूद हैं, और कितने नाम दो दशक की यात्रा में खो चुके हैं।