CRPF Constable 196 days leave without information: अगर आप नौकरीपेशा हैं और बिना बताए एक दिन की छुट्टी ले लें तो आपके साथ क्या होगा यह आप हमसे बेहतर जान सकते हैं। सोचिए 196 दिनों की छुट्टी बिना बताए लेने वाले सीआरपीएफ जवान के साथ क्या हुआ होगा। असल में सोशल मीडिया पर एक ऐसे जवान की कहानी वायरल हो रही है। जिसने बिना बताए ही 196 दिनोंं की छुट्टी ले ली थी। हालांकि जनसत्ता इसकी पुष्टि नहीं करता है। हम पीटीआई के हवाले से इस सिपाही की कहानी आपको बता रहे हैं, जिसने बिना बताए 196 दिनों की छुट्टी ले ली। इस कारण उसे बर्खास्त कर दिया गया थी मगर जब असलियत सामने आई तो फिर से उसकी बहाली हो गई।
यह कहानी एक सीआरपीफ जवान की है। इस सच्ची घटना के बारे में जानकर आपको हैरानी हो सकती है। असल में एक सीआरपीएफ कर्मी ने बिना किसी जब 196 दिनों की लंबी छुट्टी ली तो उसे उसे बर्खास्त कर दिया गया था। जब वह छुट्टी के बाद काम पर लौटा तो उसकी नौकरी जा चुकी थी। हालांकि उसने हार नहीं मानी और मामले को लेकर कोर्ट लेकर गया।
इस मामले में पटना उच्च न्यायालय ने सीआरपीएफ कर्मी के पक्ष में फैसला सुनाया था। दरअसल, कर्मी ने कोर्ट के सामने अपना पूरा पक्ष रखा था। उसने बताया कि वह कैंसर पीड़ित मां की देखभाल करने के लिए छुट्टी पर था। उसकी मां को उसकी जरूरत थी। वह इस हाल में अपनी मां को अकेला नहीं छोड़ सकता था।
ऐसे बहाल हुई नौकरी
इसके बाद पटना उच्च न्यायालय ने कैंसर से पीड़ित अपनी मां की देखभाल के लिए 196 दिनों तक ड्यूटी से अनुपस्थित रहने के कारण सेवा से बर्खास्त किए गए केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के कर्मी को बहाल करने का आदेश दिया। जस्टिस पी.बी. बजंथरी और जस्टिस आलोक कुमार पांडे की पीठ ने मंगलवार को सीआरपीएफ के बर्खास्त सिपाही सुमित कुमार की याचिका पर सुनवाई करते हुए अपने आदेश में कहा, “संबंधित प्रतिवादियों को निर्देश दिया जाता है कि वे अपीलकर्ता की सेवा को बहाल करें और कानून के अनुसार सेवाओं को विनियमित करें।”
जुर्माना का आदेश
कोर्ट ने सिपाही पर बर्खास्त किये जाने के बजाए जुर्माना लगाने का आदेश दिया। साथ ही तीन महीने की अवधि के भीतर आदेश का पालन करने को भी कहा। कोर्ट ने आगे कहा कि कई मौकों पर अपीलकर्ता ने डाक के माध्यम से छुट्टियों के विस्तार की मांग की लेकिन उसे 196 दिनों की अवधि के लिए बिना किसी स्वीकृत छुट्टी के ड्यूटी से अनुपस्थित रहने (23 मई 2012 से चार दिसंबर 2012) के कारण भगोड़ा घोषित कर दिया गया और अपीलकर्ता की ड्यूटी से अनधिकृत अनुपस्थिति के कारण विभागीय जांच शुरू हुई। विभागीय जांच ने आलोक कुमार को सेवा से बर्खास्त कर दिया।
मां कैंसर से थीं पीड़ित
हाईकोर्ट की एकल पीठ ने इस फैसले को बरकरार रखा था, जिसके बाद कुमार ने खंड पीठ के समक्ष फैसले को चुनौती देते हुए अपील दायर की थी। पीठ ने कहा, “वर्तमान मामले में अपीलकर्ता को ड्यूटी से अनुपस्थित पाया गया और उसने स्पष्टीकरण दिया कि उसकी मां को कैंसर हो था और उसने अपनी मां के इलाज के लिए छुट्टी के लिए आवेदन किया था और यह उसके नियंत्रण से बाहर था।”
सहानुभूति पूर्ण दृष्टिकोण
पीठ ने आदेश में कहा, “हमें मामले के दिए गए तथ्यों और परिस्थितियों में अपीलकर्ता के प्रति सहानुभूति पूर्ण दृष्टिकोण अपनाना होगा कि अपीलकर्ता के पास नियुक्ति स्थान छोड़ने का कारण है।” अदालत ने एकल पीठ द्वारा एक अप्रैल 2019 को पारित किए गए आदेश को रद्द कर दिया साथ ही उसकी बर्खास्तगी के आदेश को भी निरस्त कर दिया। इस तरह जवान की नौकरी फिर से बहाल हो गई।