प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने जन्मदिन के मौके पर नामीबिया से लाए गए आठ चीतों को जंगल में रिलीज किया। सोशल मीडिया पर पीएम मोदी द्वारा चीते को रिलीज किए जाने का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। विरोधी पीएम मोदी पर तंज कस रहे हैं जबकि समर्थक जमकर तारीफ कर रहे हैं। भाजपा विधायक शलभमणि त्रिपाठी ने पीएम मोदी की तस्वीर शेयर कर कांग्रेस पर तंज कसा है।

भाजपा विधायक ने किया ट्वीट

शलभमणि ने ट्वीट किया, एक दौर था जब देश हमले पर हमले झेलता था और प्रधानमंत्री शांति का कबूतर छोड़ते थे, एक दौर है जब दुश्मन घुटनों पर है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी चीते छोड़ रहे, संदेश तो साफ ही है। शलभमणि ने बिना किसी का नाम लिए विपक्ष पर तंज कसा और पीएम मोदी की तारीफ की। सोशल मीडिया पर लोग इस पर अपनी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं।

लोगों की राय

ब्रजेश मिश्रा नाम के यूजर ने लिखा कि अरे हम तो चीता कबूतर के आगे गौ माता को भूल ही गए, जो अमृत काल में कराह कराह कर मर रही हैं और चील कौवे खा रहे हैं सर, वीडियो शेयर किया तो एफआईआर तय हैं। @NastarulShaikh4 यूजर ने लिखा कि युवाओं को रोजगार देने को बोलो और एक बात है मोदी तो जंगल में चीता को छोड़ रहे हैं, दुबई में तो लोग घर में पालते हैं।

@meSureshSharma यूजर ने लिखा कि चीन घर में घुसा है और बाबू फोटो खिंचवा रहे हैं। @MdAliKhanNalnda यूजर ने लिखा कि सरदार जी खुद शेर थे, चीन उनके सामने हिम्मत भी नहीं करता था और आज देख लो। @Dhiru9887 यूजर ने लिखा कि एक दौर था जब सरकारी संस्थान बनाये जाते थे और आज एक समय है जब कुछ दोस्तों को अमीर बनाया जा रहा है और सरकारी संस्थाओं को बेचा जा रहा है।

बता दें कि कांग्रेस ने दावा किया है कि चीतों को भारत लाने की प्रक्रिया साल 2010 में ही शुरू की गई थी लेकिन कोर्ट के रोक के बाद इन्हें नहीं लाया जा सका था। साल 2019 में कोर्ट ने रोक हटाई तो मोदी सरकार चीतों को लेकर आई है। ऐसे में असल मायने में भारत में चीते लाने की योजना कांग्रेस की ही है। वरिष्ठ कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने एक ट्वीट भी किया है।

जयराम रमेश ने ट्वीट किया, पीएम शासन में निरंतरता को शायद ही कभी स्वीकार करते हैं। चीता प्रोजेक्ट के लिए 25.04.2010 को केपटाउन की मेरी यात्रा का ज़िक्र तक न होना इसका ताज़ा उदाहरण है। आज पीएम ने बेवजह का तमाशा खड़ा किया। ये राष्ट्रीय मुद्दों को दबाने और भारत जोड़ो से ध्यान भटकाने का प्रयास है। 2009-11 के दौरान जब बाघों को पहली बार पन्ना और सरिस्का में स्थानांतरित किया गया तब कई लोग आशंकाएं व्यक्त कर रहे थे।वे गलत साबित हुए।