सुप्रीम कोर्ट ने पोर्नोग्राफी पर नियंत्रण और 14 से 18 साल के किशोरों को पोर्न देखने से रोकने के लिए नीति बनाने की मांग वाली याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई करते हुए मामला चार हफ्तों के लिए टाल दिया। याचिका में यह मांग की गई है कि सरकार ऐसे प्रभावी दिशा-निर्देश और तंत्र बनाए जिससे नाबालिगों को ऑनलाइन पोर्नोग्राफिक कॉन्टेन्ट तक पहुंचने से रोका जा सके।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी: नेपाल में सोशल मीडिया बैन का क्या हुआ
सुनवाई के दौरान न्यायालय ने टिप्पणी की कि नेपाल ने जब सोशल मीडिया बैन किया था तो उसके क्या परिणाम हुए, इस पर भी विचार करना चाहिए। कोर्ट ने संकेत दिया कि ऐसे प्रतिबंधों का असर सामाजिक और तकनीकी दोनों स्तरों पर आंका जाना जरूरी है।
याचिका में क्या कहा गया
यह जनहित याचिका अधिवक्ता बी.एल. जैन ने दायर की है। याचिकाकर्ता का कहना है कि भारत में इंटरनेट पर पोर्नोग्राफी की भरमार है और किशोर वर्ग इस सामग्री के सबसे बड़े उपभोक्ता बनते जा रहे हैं। याचिका में कहा गया है कि 14 से 18 वर्ष की आयु के बच्चों को आसानी से उपलब्ध अश्लील सामग्री मानसिक, सामाजिक और नैतिक रूप से नुकसान पहुंचा रही है। बी.एल. जैन ने याचिका में सरकार से राष्ट्रीय नीति बनाने, निगरानी तंत्र मजबूत करने और सार्वजनिक स्थानों पर पोर्न देखने वालों पर सख्त कार्रवाई की मांग की है।
याचिका के तर्क और आंकड़े
-हर सेकंड हजारों पोर्न वेबसाइट्स देखी जाती हैं।
-20 करोड़ से अधिक अश्लील वीडियो और क्लिपिंग्स भारतीय बाजार में उपलब्ध हैं।
-कोविड-19 के दौरान ऑनलाइन शिक्षा के बढ़ते इस्तेमाल के साथ बच्चों के पास बिना नियंत्रण वाले डिजिटल टूल आ गए जिससे वे इस सामग्री को आसानी से एक्सेस कर पा रहे हैं।
याचिकाकर्ता का कहना है कि ऐसी सामग्री देखने से किशोरों में यौन अपराध की प्रवृत्ति बढ़ रही है और समाज में नैतिक गिरावट आई है।
सरकार की शक्तियां और कानूनी पहलू
याचिका में यह भी तर्क दिया गया है कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69(A) के तहत केंद्र सरकार के पास किसी भी आपत्तिजनक सामग्री या वेबसाइट को ब्लॉक करने का अधिकार है। फिर भी इस कानून का प्रभावी इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है। याचिकाकर्ता ने कहा कि आईपीसी की धारा 292 में अश्लील सामग्री के प्रकाशन या वितरण को अपराध माना गया है, लेकिन ऑनलाइन पोर्नोग्राफी के लिए ठोस प्रावधान नहीं हैं।
क्या है याचिकाकर्ता का कहना?
बी.एल. जैन ने अदालत से तीन मुख्य राहतें मांगी हैं
-राष्ट्रीय नीति और एक्शन प्लान तैयार किया जाए ताकि किशोरों को पोर्नोग्राफी से बचाया जा सके।
-सार्वजनिक स्थानों पर अश्लील सामग्री देखने पर रोक लगाने के लिए सख्त दिशा-निर्देश जारी किए जाएं।
-कानूनी ढांचा मजबूत किया जाए ताकि इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर और वेबसाइटें इस तरह का कॉन्टेन्ट प्रसारित न कर सकें।
सामाजिक प्रभाव और चिंता
याचिका में यह भी कहा गया है कि पोर्नोग्राफी केवल व्यक्तिगत नैतिकता का विषय नहीं बल्कि सामाजिक संतुलन का प्रश्न है। किशोर अवस्था में इस तरह की सामग्री का प्रभाव उनके मानसिक विकास पर पड़ता है और अपराधों की प्रवृत्ति को बढ़ावा देता है।
