विकास के नए माध्यम के रूप में इंटरनेट को बहुत पहले स्वीकृति मिल चुकी है। आज तो यह विकास का आधार, इंजन और ईंधन तीनों है। लिहाजा इस बात का आकलन समय-समय पर होता रहता है कि हम इस तकनीकी संभावना के साथ जीवन और समाज में समावेशी दरकारों पर कितने खरे उतर रहे हैं।

समावेशी इंटरनेट सूचकांक-2021 में 120 देशों में स्वीडन प्रथम स्थान पर है। दूसरे और तीसरे स्थान पर क्रमश: अमेरिका और स्पेन हैं तथा अंतिम यानी 120वें पायदान पर रहने वाला देश है बुरुंडी। भारत देश 49वें नंबर पर है जबकि इससे एक साल पहले वह 52वें नंबर पर था। इस सूचकांक में भारत के पड़ोसी देशों में चीन 39वें, थाईलैंड 49वें, इंडोनेशिया 66वें, श्रीलंका 77वें, म्यांमा 80वें, बांग्लादेश 82वें, नेपाल 83वें और पाकिस्तान 90वें स्थान पर है।

गौरतलब है कि 2020 में भारत में 687.6 मिलियन से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ता थे, लेकिन अब उसने 2025 तक एक अरब इंटरनेट उपयोगकर्ताओं तक पहुंचने का लक्ष्य रखा है। यह सूचकांक तय करता है कि इंटरनेट किसी देश में लोगों के लिए कितना सहज, सुलभ और प्रासंगिक है। इसका मकसद शोधकर्ताओं और नीति निर्माताओं को वो सूचनाएं प्रदान करनी हैं, जिनकी सहायता से विभिन्न वर्गों तक इंटरनेट का लाभकारी उपयोग सुनिश्चित किया जा सके।

इंटरनेट से संबंधित जिन चार आधारों पर विभिन्न देशों का आकलन इस सूचकांक को अंतिम रूप देने के लिए किया गया है, वे हैं- सुलभता, कम खर्च में उपलब्धता, प्रासंगिकता और तत्परता। इस सूचकांक को कोनामिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट’ (इआइयू) ने जारी किया है। यह आर्थिक विश्लेषक तथा सलाहकार संस्था है जिसकी स्थापना 1946 में हुई थी। यह संस्था योजना और विकास के नए आधारों और रूपों के बारे में विश्लेषणात्मक अध्ययन करती है।