क्या होता है जब कोई सरकारी अधिकारी किसी आंतरिक नोट (internal note) की समरी को जल्दी पाने के लिए AI चैटबॉट पर अपलोड करता है? या जब कोई पुलिस डिपार्टमेंट शहरभर में CCTV नेटवर्क को ऑप्टिमाइज करने के लिए AI असिस्टेंट से मदद मांगता है? या जब कोई नीति निर्माता (policymaker) किसी अंतर-मंत्रालयी रिपोर्ट का मसौदा (inter-ministerial brief) तैयार करने के लिए कन्वर्सेशनल मॉडल का इस्तेमाल करता है?
क्या ऐसा AI सिस्टम बड़े पैमाने पर इन प्रॉम्प्ट्स (prompts) का विश्लेषण कर सकता है, यूजर की पहचान कर सकता है, उनकी भूमिका का अनुमान लगा सकता है, क्वेरीज़ में पैटर्न ढूंढ सकता है, और यहां तक कि रणनीतिक इरादे (strategic intent) का पूर्वानुमान भी लगा सकता है?
Indian Express के अनुसार, ये सवाल केंद्र सरकार के कुछ विभागों चर्चा का विषय बने हुए हैं। इसकी वजह है भारत में जेनेरेटिव AI (GenAI) प्लेटफॉर्म्स का तेजी से बढ़ता इस्तेमाल- खासतौर पर उन विदेशी कंपनियों द्वारा ऑपरेटेड प्लेटफॉर्म्स जिन्हें अक्सर टेलीकॉम सब्सक्रिप्शन के साथ फ्री सर्विस के रूप में ऑफर किया जाता है।
सिर्फ डेटा प्राइवेसी चिंता नहीं
वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि असली चिंता सिर्फ डेटा प्राइवेसी की नहीं बल्कि इन्फ़रेंस रिस्क (Inference Risk) की है। यानी क्या ये सिस्टम यूजर्स के व्यवहार, रिश्तों और सर्च पैटर्न के जरिए इनडायरेक्टली संवेदनशील जानकारियां निकाल सकते हैं?
यह चर्चा दो मुख्य चीजों पर केंद्रित है। पहली – क्या वरिष्ठ नौकरशाहों, नीति सलाहकारों, वैज्ञानिकों, कॉर्पोरेट लीडर्स और प्रभावशाली शिक्षकों द्वारा की गई क्वेरीज को ट्रैक कर उनके प्राथमिकताओं, टाइमलाइन या कमजोरियों का पता लगाया जा सकता है? और दूसरी- क्या लाखों भारतीय यूजर्स के अनाम (anonymised) डेटा का विश्लेषण कर विदेशी कंपनियां उससे रणनीतिक फायदा उठा सकती हैं?
सूत्रों के अनुसार, एक बड़ा सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या सरकारी सिस्टम्स को विदेशी AI सेवाओं से ‘सुरक्षित’ (protect) रखना चाहिए।
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, “हमें यह नहीं पता कि इन सर्विसेज पर ट्रैकिंग का लेवल क्या है और क्या वे किसी यूजर की क्वेरी के महत्व को समझकर उससे कोई निष्कर्ष निकाल पाने में सक्षम हैं। फिलहाल विदेशी LLMs (लार्ज लैंग्वेज मॉडल्स) सबसे पॉप्युलर हैं और इन्हें सर्वर की बजाय सीधे कंप्यूटर पर चलाना कुछ हद तक सुरक्षित हो सकता है। लेकिन निश्चित रूप से सबसे सुरक्षित तरीका भारतृ में डिवेलप LLMs का इस्तेमाल करना होगा, जिन पर इस समय काम चल रहा है। जब तक वे पूरी तरह तैयार नहीं हो जाते, हम इन मुद्दों पर कड़ी नजर रख रहे हैं।”
एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सरकार के भीतर इस मुद्दे पर बहस चल रही है। सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (IT Ministry) ने इस मामले में औपचारिक टिप्पणी के अनुरोध का कोई जवाब नहीं दिया।
सरकारी दफ्तरों में AI टूल्स का इस्तेमाल ना करने के निर्देश
इन चिंताओं के चलते कुछ सरकारी विभागों ने AI टूल्स के इस्तेमाल को लेकर सख्त निर्देश जारी किए हैं। एक बड़े मंत्रालय ने अपने कर्मचारियों को निर्देश दिया है कि वे आधिकारिक वर्कस्टेशन्स पर AI सर्विसेज का इस्तेमाल न करें। फरवरी में वित्त मंत्रालय (Finance Ministry) ने अपने कर्मचारियों को आदेश दिया था कि वे ‘ChatGPT’ और ‘DeepSeek’ जैसे एआई टूल्स का कार्यालय के कंप्यूटरों और डिवाइसेज पर ‘बिल्कुल इस्तेमाल न करें’, क्योंकि इससे आधिकारिक दस्तावेजों और डेटा की गोपनीयता को खतरा हो सकता है।
मंत्रालय द्वारा जारी मेमो में कहा गया था, “यह पाया गया है कि ऑफिस के कंप्यूटरों और डिवाइसेज पर एआई टूल्स और एआई ऐप्स (जैसे ChatGPT, DeepSeek आदि) का इस्तेमाल सरकारी डेटा और दस्तावेजों की गोपनीयता के लिए रिस्क पैदा करता है।” कुछ विभाग पहले ही ऐसे फैसले ले चुके हैं। फरवरी में जारी निर्देशों के तहत वित्त मंत्रालय ने GenAI प्लेटफॉर्म्स जैसे ChatGPT और DeepSeek के इस्तेमाल पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था ताकि सरकारी डेटा और दस्तावेजों की गोपनीयता बनी रहे।
यह चिंता ऐसे समय में सामने आई है जब भारत सरकार 10,370 करोड़ रुपये के ‘India AI Mission’ के तहत स्वदेशी लार्ज लैंग्वेज मॉडल्स (LLMs) के डिवेलपमेंट को बढ़ावा दे रही है। इस मिशन के तहत कम से कम 12 बड़े LLMs और कई छोटे डोमेन-विशिष्ट मॉडल्स विकसित किए जा रहे हैं जिन्हें सरकार ने सपोर्ट किया है।
भारत डिवेलप कर रहा अपने AI सॉल्यूशन
इनमें से एक मॉडल, बेंगलुरु स्थित स्टार्टअप ‘Sarvam’ के नेतृत्व में विकसित किया जा रहा है जो इस साल के आखिर तक लॉन्च होने की उम्मीद है। इसका मुख्य उद्देश्य गवर्नेंस और पब्लिक सेक्टर से जुड़े इस्तेमाल मामलों के लिए एआई सॉल्यूशन ऑफर करना है। यह पूरी बहस अब एक बड़े राजनीतिक एजेंडे से भी जुड़ती जा रही है।
सरकार लगातार यह मेसैज दे रही है कि विदेशी प्लेटफॉर्म्स के बजाय स्वदेशी डिजिटल टूल्स का इस्तेमाल बढ़ाया जाए और यह रुख हाल के दिनों में अमेरिका के साथ व्यापारिक तनाव, टैरिफ विवाद और H-1B वीज़ा कैप्स के चलते और भी सख्त हो गया है। आज भी भारत का डिजिटल इकोसिस्टम बड़े पैमाने पर अमेरिकी प्लेटफॉर्म्स पर निर्भर है- जैसे ChatGPT, Gemini, WhatsApp, YouTube, Instagram, Gmail और X (Twitter) जो देश में डिजिटल संचार और सूचना के प्रमुख माध्यम बने हुए हैं।
पिछले महीने प्रधानमंत्री ने शीर्ष सचिवों के साथ बैठक में इस बात पर जोर दिया कि देश को अपने संचार और नॉलेज इकोसिस्टम के लिए भी स्वदेशी डिजिटल प्लेटफॉर्म्स विकसित करने होंगे, न कि केवल पेमेंट्स या पहचान के क्षेत्र में। इसके बाद आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने सार्वजनिक रूप से Zoho के भारतीय ऑफिस सूट का इस्तेमाल शुरू किया जबकि गृह मंत्री अमित शाह ने घोषणा की कि उनका आधिकारिक ईमेल अब Zoho Mail पर ट्रांसफर किया जाएगा।
विदेशी कंपनियां भारत में फ्री ऑफर कर रहीं AI
पिछले छह महीनों में कम से कम तीन जनरेटिव एआई (GenAI) कंपनियों ने भारत में यूजर ग्रुप्स के लिए फ्री एक्सेस प्लान्स की घोषणा की है।
OpenAI अपना बेसिक ChatGPT Go प्लान भारतीय यूजर्स को एक साल तक मुफ्त उपलब्ध करा रहा है। Google की पेरेंट कंपनी Alphabet का Gemini Pro प्लान रिलायंस जियो के 50 करोड़ से ज्यादा ग्राहकों को 18 महीने के लिए फ्री मिल रहा है।
वहीं Perplexity AI ने भी अपना Pro वर्जन, भारती एयरटेल के 35 करोड़ यूजर्स को फ्री उपलब्ध कराने का ऐलान किया है।
इसके पीछे एक पृष्ठभूमि भी है। 2021 में जब सरकार का X (Twitter) के साथ रिश्ता बेहद तनावपूर्ण था, तब कई सरकारी अधिकारियों ने Koo ऐप को एक भारतीय विकल्प के रूप में बढ़ावा देने की कोशिश की थी। लेकिन यह ऐप सफल नहीं हो सका और पिछले साल बंद हो गया। वहीं 2020 में भारत-चीन सीमा विवाद के बाद, भारत सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए TikTok सहित कई चीनी ऐप्स को बैन कर दिया था।
इसी बीच, आईटी मंत्रालय के तहत गठित IndiaAI मिशन की एक उपसमिति ने बुधवार को अपनी रिपोर्ट सौंपी है। इसमें एआई कंपनियों के लिए गवर्नेंस गाइडलाइन्स की सिफारिश की गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत को एक देश-विशिष्ट ‘रिस्क असेसमेंट फ्रेमवर्क’ तैयार करना चाहिए जो वास्तविक दुनिया में एआई से होने वाले संभावित नुकसान को ध्यान में रखे।
इसके अलावा, समिति ने यह भी सुझाव दिया कि एआई गवर्नेंस को लेकर एक ‘whole of government approach’ अपनाई जाए, जिसमें सभी मंत्रालय, क्षेत्रीय नियामक और सार्वजनिक संस्थान मिलकर नीतियां तैयार करें और उन्हें प्रभावी ढंग से लागू करें।
