डॉ. वरुण वीर

अर्थ और काम की अंधी दौड़ में जिस तरीके से सभ्य कहलाने वाले समाज ने अपना शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य बिगाड़ा है, आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ। प्रतिस्पर्धा के इस युग में नैतिक-अनैतिक किसी भी तरीके से धन कमाना या अपनी भौतिक इच्छाओं की पूर्ति करना ही मात्र उद्देश्य रह गया है। जब व्यक्ति कम समय में शारीरिक और मानसिक तनाव में कार्य करता है तो स्वाभाविक रूप से उच्च रक्तचाप की बीमारी से ग्रसित हो जाता है। सीमित समय में अपने आप को अधिक विषयों में उलझाना और वह भी नकारात्मकता, तो उच्च रक्तचाप होना स्वाभाविक है, लेकिन एसा नहीं कि यह समस्या एक ही कारण से होती है। इसके कई कारण हो सकते हैं। जैसे वंशानुगत, असंतुलित आहार-विहार, तनाव, असंतोषी स्वभाव, कम समय में अधिक पाने की इच्छा, ईर्ष्या, द्वेष आदि। अगर मनुष्य अपने जीवन में नैतिकता, ईश्वर भक्ति, भोजन का उचित चयन और योग को अपने जीवन में अपनाता है तो सौ प्रतिशत इस छोटी-सी बीमारी से छुटकारा पा सकता है। आरंभ में इस बीमारी को अगर नियंत्रित न किया जाए तो यह अन्य भयंकर बीमारियों जैसे हृदय रोग तथा अनेक मानसिक रोगों का कारण बन सकती है।

यह बीमारी विकसित राष्ट्रों में कम, विकासशील राष्ट्रों में अधिक पाई जाती है। इसका कारण है कि विकसित राष्ट्रों में सारी व्यवस्थाएं सुचारु रूप से चल रही हैं। वहां प्रतिस्पर्धा कम है। धन का वितरण भी समुचित है, जिससे वहां के जीवन में ठहराव तथा संतोष नजर आता है। वहीं विकासशील राष्ट्रों में एक-दूसरे में प्रतिस्पर्धा की दौड़ लगी हुई है। सभी अपना-अपना स्थान बनाने में लगे हैं। जनसंख्या अधिक होने के कारण सभी कुछ हाथ से छूट जाने का डर, यहां के आदमी को हमेशा भविष्य के प्रति असुरक्षा की भावना तथा पीछे रह जाने की चिंता, उच्च रक्तचाप की बीमारी को घर-घर तक पहुंचा रही है। नवयुवक पीढ़ी को विवेक और धैर्य पूर्वक अपने जीवन को आगे बढ़ाना चाहिए। अधीर, बिना सोचे-समझे कार्य करने से असफलता ही मिलती है। जीवन की सबसे बड़ी सफलता स्वस्थ शरीर है। चेहरा मुस्कराता रहे और जीवन में विवेक पूर्वक मेहनत करते हुए व्यक्ति चलता रहे, तो सफलता कदम चूमती है।

उच्च रक्तचाप का इलाज

आसन
शारीरिक स्तर पर रोगी को प्रतिदिन तीन मिनट योगासन करने चाहिए, जैसे रीढ़ संचालन, सर्पासन, भुजंगासन, उत्तानपादासन। योगिक सूक्ष्म व्यायाम की क्रियाएं करते समय सांस सामान्य रहे। वे सारे आसन उच्च रक्तचाप में लाभकारी हैं, जिनमें रीढ़ की हड्डी बाएं से दाएं तथा दाएं से बाएं मुड़ती हो।

रीढ़ संचालन विधि- भूमि पर सीधा कमर के बल लेट कर दोनों हाथ दाएं-बाएं दिशा में फैलाएं हथेलियों की दिशा भूमि की ओर रखें, बाएं पैर को श्वास भरते हुए नब्बे अंश पर उठाएं तथा दाएं दिशा में ले जाकर भूमि पर टिका कर श्वास सामान्य कर लें और सिर गर्दन को मोड़ कर दूसरी दिशा में देखें। लगभग दो मिनट इस स्थिति में रुकें। यही आसन विपरीत दिशा में दोहराने के बाद धीरे-धीरे सामान्य स्थिति में आ जाएं। जिस प्रकार कपड़े धोते समय पानी में उन्हें निचोड़ा जाता है उसी प्रकार इस आसन के माध्यम से शरीर को निचोड़ा जाता है, जिससे कि शरीर की मांसपेशियों में लचीलेपन के साथ-साथ स्नायु तंत्र में प्राण शक्ति का संचार अच्छा होने के कारण हल्कापन आता है।

सर्पासन- भूमि पर पेट के बल लेट कर दोनों हथेलियों को कंधों के नीचे स्थित करें। पीछे से दोनों पैर एक साथ मिले हुए रहें। श्वास भरते हुए शरीर के ऊपरी हिस्से सिर, गर्दन तथा छाती को धीरे से उठाएं। ध्यान रहे, कोहनी और हथेलियां भूमि पर ही रहें। दो से तीन मिनट रुकने के बाद धीरे से सामान्य स्थिति में आ जाएं।

भुजंगासन- सर्पासन वाली स्थिति बनाएं। श्वास भरते हुए यथाशक्ति शरीर के अग्र भाग को ऊपर उठाते हुए दोनों हाथ सीधे करने का प्रयास करें। हथेली भूमि पर ही रहेगी तथा कोहनी ऊपर उठ जाएगी। श्वास सामान्य रखें। दो से तीन मिनट आसन में रुकने के बाद शांत भाव से सामान्य स्थिति में आ जाएं।

प्राणायाम
पंद्रह मिनट स्वच्छ वातावरण में बैठ कर रीढ़ की हड्डी को सीधा रख कर अनुलोम-विलोम, शीतकारी, शीतली तथा उज्जाई प्राणायाम इस बीमारी को जड़ से समाप्त करने में अत्यंत सहायक हैं। श्वास की गति जितनी धीरे होगी, मन उतना ही शांत होगा।

अनुलोम विलोम- स्थिति (क) स्वच्छ और शांत स्थान पर सुखासन में रीढ़ की हड्डी सीधी करके बैठें। दाएं हाथ की मुद्रा बनाते हुए यानी अंगूठे से दाएं नासारंध्र को बंद करें और बाएं नासारंध्र से श्वास को पहले बाहर छोड़ें तथा वहीं से श्वास को अंदर लें। केवल बाएं नासारंध्र से श्वास लेना और छोड़ना, श्वास प्रश्वास करना है। यह एक राउंड माना जाता है। ऐसे पांच राउंड करने के बाद दाएं नासारंध्र से दोहराएं।

स्थिति-(ख) सीधे हाथ की बीच की दोनों उंगलियां मध्यमा और अनामिका से नासारंध्र को बंद करते हुए दाएं नासारंध्र से श्वास प्रश्वास के पांच राउंड करें।

स्थिति-(ग) अंगूठे से दाएं नासारंध्र को बंद कर बाएं से पहले श्वास छोड़ें फिर वहीं से श्वास लेने के बाद उंगलियों से बाएं नासारंध्र को बंद कर, दाएं नासारंध्र से श्वास छोड़ें, फिर वहीं से दाएं नासारंध्र से श्वास लें तथा अंगूठे से दाएं नासारंध्र को बंद करते हुए बाएं से श्वास छोड़ें। यह एक राउंड होगा। इसी प्रकार दस राउंड करें। इस प्रकार श्वास प्रश्वास का क्रम रखने से शरीर के भीतर विद्यमान सूर्य तथा चंद्र नाड़ी दोनों में संतुलन बना रहता है। शरीर की नस नाड़ियां शुद्ध होती हैं तथा मन में स्थिरता के साथ-साथ विचारों में शांति आती है।

शीतकारी प्राणायाम- सुख आसन से रीढ़ की हड्डी सीधी कर बैठें। दोनों जबड़ों को आपस में मिलाते हुए मुंह से गहरी लंबी श्वास लें, जिससे की आवाज श.श.श.श.श… करते हुए आए। श्वास कुछ क्षण अंदर रोकने के बाद नाक से श्वास निकाल दें। यह एक राउंड होगा। ऐसे लगभग दस राउंड करें।

शीतली प्राणायाम- शीतकारी प्राणायाम की ही स्थिति रखते हुए मुंह के अंदर जीभ को पाईप की आकृति देते हुए, मुंह से गहरी लंबी श्वास लें, कुछ क्षण श्वास अंदर रोकें तथा धीरे से श्वास छोड़ दें। दस बार इस प्राणायाम को करें। शीतली और शीतकारी प्राणायाम शरीर की अधिक उष्णता को समाप्त कर साथ ही साथ रक्त और मस्तिष्क में शीतलता प्रदान करते हैं।

उज्जाई प्राणायाम- सुखासन में रीढ़ की हड्डी सीधी रखें। जीभ को मोड़ कर ऊपर तालू से लगा दें। इस स्थिति में गर्दन की मांसपेशियों सख्त हो जाएंगी और नाक से गहरी लंबी श्वास प्रश्वास करते समय गर्दन से विशेष प्रकार की ध्वनि को महसूस करें। लगभग दो से तीन मिनट यह प्राणायाम करें। यह प्राणायाम करने से थायराइड तथा पैरा थायराइड ग्लैंड में संतुलन आता है और श्वास की गति अत्यंत धीमी हो जाती है। साथ ही ओम ध्वनि का शाब्दिक और मानसिक जप करने से विचारों में स्थिरता तथा अच्छे अभ्यास के बाद मन में रिक्तता आने लगती है। विचार जितने सात्विक होंगे, मन और बुद्धि उतना ही हल्कापन लिए होंगे। इसके विपरीत मन जितना ईर्ष्या, द्वेष, घृणा तथा नकारात्मक प्रतिस्पर्धा में होगा उतना ही अशांत, दुखी, मनोरोगी रहेगा। योगासन को अपनी दिनचर्या का नियमित रूप से हिस्सा बना कर दीर्घायु तथा आनंद से अपने जीवन का निर्वाह करें।