डॉ. वरुण वीर
हजारों वर्षों से हमारे ऋषि-मुनियों ने योग साधना, योग तपस्या और योग के ऊपर शोध करके जो योगासन, प्राणायाम, धारणा, ध्यान तथा ईश्वर का साक्षात्कार करने के लिए समाधि के विज्ञान को समस्त जगत के सामने प्रस्तुत किया है, वह बड़ा ही अद्भुत कार्य है। जिसके लिए हम सभी विश्व वासियों को उनका धन्यवाद करना चाहिए। योग के कारण भारत की पहचान, उसका प्रभाव संपूर्ण विश्व पर पड़ा है। विश्व के सभी देशों में योग को सहर्ष स्वीकार किया है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का गौरव बढ़ा है और विश्व की अनेक चिकित्सा पद्धतियां योग चिकित्सा पद्धति की सराहना कर रही हैं। भारत को अपनी योग की क्षमता, योग्यता और ज्ञान को पहचान कर संपूर्ण विश्व का नेतृत्व करने के लिए अग्रसर होना चाहिए।
आज योग का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यवसायीकरण तेज हो रहा है, जो विश्व में लाखों लोगों को रोजगार दे रहा है और केवल जीवन यापन ही नहीं, बल्कि अच्छे से अच्छा वेतन और योग स्टूडियो खोल कर अच्छा धन कमाया जा रहा है। विश्व में योग की अनेक शैलियां विकसित हो चुकी हैं, जो लोगों को बहुत आकर्षित कर रही हैं जैसे पावर, यिन एन, एरियल, हॉट योग आदि। योग करना अंतरराष्ट्रीय नागरिक की निशानी बन चुका है। योग वह विज्ञान है, जो मनुष्य की शक्तियों को जागृत कर उसे दिव्य बनाता है। योगिक सिद्धांत का लाभ भारतीय शासन-व्यवस्था को उठा कर प्रत्येक नागरिक को अत्यंत उच्च श्रेणी का दिव्य मनुष्य बनाने का यत्न करना चाहिए। यह सौभाग्य केवल भारत के पास ही है, जिसका लाभ योजनाबद्ध तरीके से लिया जा सकता है।
भारत विश्वगुरु था, योग सिद्धांतों को छोड़ दिया तो विश्व का सेवक बन गया। पुन: विश्वगुरु बनना है तो योग को केवल अपनाना नहीं, बल्कि योग के विशुद्ध ज्ञान को विश्व में फैलाना होगा। भारत के पास वह आध्यात्मिक विद्या है, जो विश्व के किसी भी देश के पास नहीं है। योग विद्या के कारण भारत समूचे विश्व पर प्रभाव छोड़ सकता है। इसके लिए भारत सरकार को कुछ विशेष कदम उठाने चाहिए, जैसे जो भी भारतीय योग शिक्षक योग गुरु भारत में या भारत के बाहर विश्व के किसी भी देश में योगासन, प्राणायाम, ध्यान तथा योग से संबंधित कोई भी कर्म करने जाता है, तो उसको विशेष प्रशिक्षण देने की अत्यंत आवश्यकता है, क्योंकि वह योग शिक्षक तथा योग गुरु भारत का नेतृत्व करने जा रहा होता है। उसका चरित्र, आचरण तथा व्यवहार उच्च होगा तभी योग छात्रों पर अपना प्रभाव छोड़ेगा। वह भारत का योग अंबेसडर होता है इसलिए उसका चरित्र अच्छा होना चाहिए। उसका कोई भी कर्म योग सिद्धांत के विपरीत बिलकुल नहीं होना चाहिए, क्योंकि योग विश्व को मानवता, सुख, शांति, आनंद और स्वास्थ्य का संदेश देता है। भारतीय सरकार को विशेष रूप से इस ओर ध्यान देना चाहिए कि योग विश्व की अनेक समस्याओं का समाधान करने में भी सक्ष्म है, जैसे वैश्विक पर्यावरण समस्या का समाधान, अपरिग्रह, अहिंसा, शौच, सात्विक तथा प्राकृतिक भोजन आदि योग के सिद्धांतों में उपलब्ध है।
अपरिग्रहस्थैर्य जन्मकथन्तासम्बोध:। (साधनपाद 39, योग दर्शन) जब मनुष्य हानिकारक तथा अनावश्यक वस्तुओं और विचारों को त्याग देता है ‘जन्मकथन्ता सम्बोध’ यानी वर्तमान जन्म में क्या कर रहा है, शरीर क्या है, इंद्रियां क्या हैं, मैं कौन हूं आदि विषयों के बारे में जब जिज्ञासा और ज्ञान हो जाता है, तब भूत तथा भविष्य संबंधी जिज्ञासा तथा सामान्य अनुमान आदि ज्ञान हो जाता है। इस सिद्धांत को अपनाने से भौतिक विषयों के प्रति मोह भंग हो जाता है। जिस कारण मनुष्य प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कम करता है।
आज योग चिकित्सा पद्धति के रूप में भी विश्व के कई देशों में प्रचलित हो रही है। शरीर से संबंधित अनेक प्रकार के रोग जैसे स्लिप डिस्क सर्वाइकल, शरीर के जोड़ों का दर्द, शरीर की अकड़न-जकड़न, हृदय से संबंधित रोग, उच्च रक्तचाप, निम्न रक्तचाप, अस्थमा, तनाव, अवसाद अनेक प्रकार के शारीरिक मानसिक रोगों में योग चिकित्सा अत्यंत लाभकारी है। विश्व के अनेक देशों में मनोचिकित्सकों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती चली जा रही है, जिसका सीधा और स्पष्ट संकेत यह है कि मनोरोगियों की संख्या देश और विदेशों में बढ़ रही है। योग शारीरिक और मानसिक रोगों को दूर करने में सौ फीसद कारगर सिद्ध होता है।
आध्यात्मिक स्तर पर जैन, बौद्ध और हिंदू धर्म में योग अपना उच्च स्थान रखता है। एशिया के बौद्ध बहुल राष्ट्रों की अधिकता है। मध्य एशिया में भी जो कभी बौद्ध राष्ट्र हुआ करते थे वहां आज इस्लाम धर्म के होने के बाद भी बौद्ध धर्म के प्रति नरम धारा है। योग भारत की ओर से संपूर्ण विश्व को अमूल्य देन है जिसका लाभ आज भारत की सरकार को उठाकर अपना स्थान एशिया में मजबूत बनाना चाहिए केवल योग दिवस के रूप में साल में एक दिन बड़ा राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम करने से बात नहीं बनेगी। योग द्वारा अन्य देशों से जुड़कर भारत को अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अपना स्थान मानवतावादी, प्रकृति प्रेमी और अन्य विचारधाराओं का सम्मान करने वाला बनाना चाहिए।
लगभग दो सौ देशों में योग प्रचलित है, लेकिन सभी देशों में योग का स्तर एक जैसा न होने के कई कारण हैं। किस देश में योग को क्या समझ कर स्वीकार किया गया है, यह समझना होगा। योग के तीन स्तर हैं- शारीरिक, मानसिक और अध्यात्मिक। यूरोप ने योग को शारीरिक स्तर पर अपनाया, तो अमेरिका ने योग को शारीरिक स्तर के साथ-साथ मानसिक स्तर को छुआ, तो कहीं-कहीं आध्यात्मिकता को छूने का प्रयास कर रहा है। यही स्थिति जापान की भी है। विश्व में चीन योग को अत्यधिक तीव्र गति से अपनाने वाला देश है। चीन के लगभग सभी जिम तथा हेल्थ सेंटर बिना योग के अधूरे समझे जाते हैं। कई हजार भारत के योग शिक्षक आज चीन में नियमित रूप से योग सिखाते हैं। भारत सरकार को इसका लाभ उठाना चाहिए।
योग के शारीरिक आधार आसन के स्तर से ऊपर उठ कर मानसिक तथा आध्यात्मिक अर्थात प्राणायाम, धारणा और ध्यान को अत्यधिक महत्त्व देकर विश्व को अपनी ओर आकर्षित करना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित होने के बाद योग को अपनाने वालों की संख्या समूचे विश्व में बड़ी है, लेकिन उस संख्या को भारत से जोड़ कर रखना अधिक आवश्यक है। भारत सरकार ने कुछ कदम उठाकर योग की प्रमाणिकता को बढ़ाया है योग में क्यूसीआई के हस्तक्षेप से योग शिक्षकों की गुणवत्ता के स्तर को सुधारने का प्रयास किया है अन्यथा एक महीने का कोर्स कर कोई भी योग शिक्षक बन जाता था, जो कि योग व योग शिक्षक के स्तर को गिराने का ही काम करता था। लेकिन आज स्थिति बदली है अन्यथा अधिकतर योग शिक्षकों का ज्ञान केवल आसन, प्राणायाम ओम ध्वनि तक सीमित था। मैंने आइसीसीआर की गवर्निंग बॉडी में रहते हुए लगभग दो सौ शिक्षकों का साक्षात्कार किया, उनमें लगभग सौ शिक्षकों की तोंद ही निकली हुई थी और पचास से साठ योग शिक्षक हल्के-फुल्के आसन ही कर सकते थे।
उनमें से केवल पच्चीस ही योग शिक्षक होंगे, जो पश्चिमोत्तानासन अच्छी तरह से कर सकते थे और पांच ही शिक्षक ऐसे थे जो कठिन आसन के साथ-साथ अच्छी प्रकार योग की कक्षा ले सकते थे। ये शिक्षक विदेशों में भारत का प्रतिनिधित्व करने की इच्छा रखते थे। योग के प्रति विषय का उच्च स्तरीय शिक्षण, धाराप्रवाह अंग्रेजी, शाकाहारी भोजन और भारतीय परिधान के साथ-साथ अत्यंत विनम्र स्वभाव बनाने का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। भारतीय योग शिक्षक को देख कर और वातार्लाप करके लगना चाहिए कि वह मर्यादित शिक्षक है, अन्यथा आज जो भारतीय शिक्षक विदेशों में हैं, वे अधिकतर व्यभिचारी, मांसाहारी और शराब में लिप्त पाए जाते हैं। इससे भारत की छवि धूमिल होती है। भारत योग का राजनीतिक लाभ तभी ले सकेगा, जब उसके योग शिक्षक चरित्रवान होंगे। ल्ल

