रूपा
एक और कैलेंडर बदल गया। एक और नया साल शुरू हो गया। शुभकामनाएं नए वर्ष की। बीती रात, गए की विदाई और आए के स्वागत में, बहुतों ने खूब जश्न मनाया। बहुतों ने नए संकल्प लिए। मन को दृढ़ किया कि नए साल में पीछे की अपनी तमाम गलतियों को सुधारेंगे। खासकर बहुतों ने अपने व्यसनों को त्यागने का संकल्प लिया होगा।
बहुतों ने खुद संकल्प लिया होगा, बहुतों को संकल्प दिलाया गया होगा। मन को दृढ़ किया होगा कि जो संकल्प लिया है, उसे इस साल के अंत तक, पूरे जीवन उस पर अडिग रहेंगे। कुछ के मन में मलाल भी हुआ होगा कि पिछले साल जो उन्होंने संकल्प लिए, उन्हें निभा न पाए। एक संकल्प यह भी लिया होगा कि इस साल के संकल्पों को वे निभाएंगे जरूर। विद्यार्थियों ने संकल्प लिए होंगे कि वे इस साल खूब डट कर पढ़ेंगे। उसके लिए नई समय-सारिणी बना रहे होंगे। नए ढंग से अपने समय को समायोजित करने की योजना बना रहे होंगे।
व्यवसायी, व्यापारी अपने कारोबार की नई योजनाएं बना रहे होंगे। जो थोड़े मोटे-थुलथुल हो गए हैं, वे सुबह उठ कर वर्जिश और भोजन आदि का समीकरण ठीक कर रहे होंगे। हैरानी की बात नहीं कि हर नया साल शुरू होने पर जिमखानों में वर्जिश करने वालों की संख्या कुछ बढ़ जाती है। पार्कों में सैर करने वाले कुछ नए चेहरे नजर आने लगते हैं। नए साल में कइयों ने सिगरेट या दूसरे व्यसन छोड़ने का संकल्प लिया होगा। मगर कुछ दिनों बाद ही इस तरह के लोगों को फिर जिंदगी के उसी पुराने रास्ते पर लौट जाते देखा जाता है।
जीवन संकल्पों से ही सधता है। इसलिए संकल्प जरूरी हैं। भारतीय परंपरा में तो संकल्प की बहुत महिमा है। कोई भी पूजा, यज्ञ, हवन आदि शुरू करने से पहले संकल्प लिया जाता है। कुछ वचन दोहराए जाते हैं। उन्हीं संकल्पों में जगत के कल्याण के सूत्र गुंथे होते हैं। पूजा, यज्ञ, हवन आदि के समापन पर जगत कल्याण का उद्घोष किया जाता है।
उसी तरह मानव जीवन में भी संकल्प बड़े मूल्यवान होते हैं। संकल्प सिर्फ नए साल पर नहीं, हर समय लेने पड़ते हैं। हर काम के लिए लेने पड़ते हैं। संकल्प लेना केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं। व्यक्ति के जीवन को, इस जगत को चलाने के लिए बहुत जरूरी हैं।
संकल्प की सुंदरता इस बात में है कि वह सदा सकारात्मक ही होता है। नकारात्मकता के लिए संकल्प लिए नहीं जाते। कोई अपराधी वृत्ति का व्यक्ति अगर किसी की हत्या की कसम खाता है, तो वह संकल्प नहीं होता, वह तो उसके पागलपन में ठानी हुई जिद होती है। संकल्प पूरे हों न हों, उनके मूल में भावना सदा शुद्ध ही होती है।
कसम और संकल्प में यही अंतर है। कसमें साजिश रचने को भी बाध्य करती हैं, संकल्प सदा अपने साथ-साथ दूसरे के कल्याण का सोचता है। कसम, शपथ, सौगंध को तो औपचारिकतावश भी धारण किया जा सकता है, पर संकल्प सदा भीतर से पैदा होता है। उसे किसी बाहरी बल की जरूरत नहीं होती। इसलिए अक्सर कसमें तोड़ दी जाती हैं, शपथ लेकर भी निभाए नहीं जाते।
झूठी कसमें भी खाई जाती हैं, दिखावे के लिए शपथ ली जाती है। दिखावे के लिए हलफ उठाए जाते हैं। मगर संकल्प चूंकि भीतर की चीज है, उसकी जिम्मेदारी व्यक्ति की खुद की होती है। अगर संकल्प पूरे हुए तो उसका सुख भी निजी होता है और न पूरे हुए तो उसका संताप भी निजी होता है।
इसलिए अक्सर नए साल पर जो संकल्प लिए जाते हैं, उनकी जांच करनी चाहिए कि अगर वे पूरे नहीं हो पाते, तो क्यों नहीं हो पाते। क्या वास्तव में संकल्प थे या कसम, शपथ, सौगंध, हलफ जैसा तत्त्व उनमें था। ज्यादातर लोग नए साल पर ‘नया रिज्यूलेशन’ तय करते हैं। अंग्रेजी का शब्द ‘रिज्यूलेशन’ संकल्प तो हो ही नहीं सकता।
इसलिए अगर आपने ह्यरिज्यूलेशनह्ण लिया है, तो उसके टूटने, अधबीच अटक जाने की संभावना भरपूर है। यह संकल्प नहीं, प्रस्ताव है। उसमें कुछ कसम की गंध है। प्रस्ताव तो खारिज होते ही रहते हैं। उन्हें कुछ तो हम खुद खारिज कर देते, अप्रांगिक ठहरा देते, बिना काम का घोषित कर देते हैं, कुछ दूसरे खारिज करा देते हैं। अगर आपने सचमुच संकल्प लिया है, तो उसके जिम्मेदार भी आप खुद हैं, उसके पूरा न होने के जवाबदेह भी खुद हैं। इसलिए संकल्प बहुत दूर तक न सही, कुछ दूर तक तो पूरे हो ही जाते हैं।
दरअसल, संकल्पों के पूरा होने या न होने के पीछे हमारा सबसे बड़ा दुश्मन, सबसे बड़ा षड्यंत्रकारी हमारा मन ही है। मन साजिशें रचता रहता है कि संकल्पों को पूरा न होने दे। मन हमारी इंद्रियों में सबसे जटिल इंद्रिय है। हम जैसे ही कोई संकल्प लेते हैं, वह उसी समय उसमें बाधा डालने को सक्रिय हो उठता है।
तरह-तरह के दूसरे आकर्षण रचना शुरू कर देता है, संकल्पों के विरुद्ध कठिनाइयों के बिंब उभारना शुरू कर देता है। इसलिए संकल्प वही पूरा हो पाता है, जिसे लिए जाने से पहले मन को साधने का संकल्प भी लिया जाता है। जो लोग सबसे पहले यह संकल्प लेते हैं कि मन चाहे जितना भटकाने का प्रयास करे, वे अपने संकल्प से डिगेंगे नहीं, वे मन की साजिशों को पहचान लेते हैं। बार-बार मन को संकल्पों के रास्ते से धक्का देकर हटाते चलते हैं। इसलिए कोई भी संकल्प लेने से पहले पहला संकल्प तो मन को काबू में रखने का ही होना चाहिए।
मन को काबू में करना थोड़ा कठिन जरूर है, मगर यह उन्हीं के लिए है, जिनके संकल्प कमजोर हैं। मनोविज्ञान कहता है कि जैसे ही हम कोई संकल्प लेते हैं, सबसे पहली नकारात्मक प्रतिक्रिया मन की ही मिलती है- पूरा नहीं हो पाएगा। मगर जिद करके संकल्प को पकड़ लें, तो काम सधता जरूर है।
संकल्प से ही सिद्धि होती है। बाबा ने कहा भी तो है कि ‘जेहि के जेहि पर सत्य सनेहू, मिलहिं सो तेहि नहिं कछु संदेहू’। संकल्प सत्य हो, तो सिद्धि होती जरूर है। इसलिए जांच जरूर लें कि आपने जो संकल्प लिया है, वह कितना सत्य है, कितना वास्तविक है, उसे लेकर आपके भीतर दृढ़ता कितनी है। कहीं किसी की देखादेखी, किसी की होड़ में तो संकल्प नहीं ले लिया। वह वास्तव में आपके भीतर से उपजा संकल्प है या किसी बाहरी दबाव में लिया गया है।