नैतिकता मनुष्यता का आभूषण है। नैतिक शिक्षा से जुड़े कई कथा प्रसंगों में यह सीख दी गई है कि इंसान को अपने जीवन में सभी का सम्मान करना चाहिए। सुख-दुख में समान भाव से सभी के साथ खड़ा होना चाहिए। बुरे वक्त में व्यक्ति भावनात्मक रूप से कमजोर हो जाता है। ऐसे में उसे किसी के साथ की जरूरत पड़ती है। इसलिए सुख में साथ खड़े हों या न हों लेकिन दुख की घड़ी में हमें लोगों का साथ जरूर देना चाहिए। इसी सीख से जुड़ी एक लोककथा काफी प्रसिद्ध है।
एक जंगल में एक शिकारी ने शिकार पर निशाना लगाकर तीर चला दिया। शिकारी ने तीर पर जहर लगाया था। हालांकि शिकारी का निशाना चूक गया। वह जहरीला तीर फल-फूल के एक पेड़ में जा लगा। जहर के असर से पेड़ धीरे-धीरे सूखने लगा। इस वजह से सभी पक्षी एक-एक कर उस पेड़ को छोड़कर चले गए। पेड़ के कोटर में एक धर्मात्मा तोता सालों से रहता था। एकमात्र उसी ने पेड़ का साथ नहीं छोड़ा था। सूखे पेड़ पर दाना-पानी नहीं मिलने की वजह से तोता सूखकर कांटा हो गया था।
तोते की इस हालत की खबर इंद्र देवता को लगी। वे उसकी हालत देखकर बोले कि तुम जंगल में किसी और पेड़ के कोटर में चले जाओ, जहां पेड़ के समीप सरोवर भी हो। तोते ने जवाब दिया कि देवराज मैंने अपने सुख के दिन यहीं बिताए तो अब बुरे वक्तमें इसे कैसे छोड़ कर चला जाऊं। ऐसा करना अनैतिक होगा। तोते के उत्तर से इंद्रदेव प्रसन्न हो गए।
उन्होंने कहा कि मैं तुमसे प्रसन्न हूं, जो वर मांगना है मांग लो। तोते ने बोला- मेरे इस पेड़ को आप हरा-भरा कर दीजिए। इंद्र ने ‘तथास्तु’ बोलकर उस पेड़ पर अमृत वर्षा की जिससे वह पेड़ फिर से हरा-भरा हो गया। तोते ने अपने अंतिम समय तक इस पेड़ पर वास किया। तोते ने अपने आचरण से जो सीख दी, वह हम सबके लिए प्रेरक है।