पिछले दिनों अमेरिका के अंतरिक्ष वैज्ञानिक स्कॉट केली 340 दिन अंतरिक्ष में बिताने के बाद धरती पर लौट आए। ऐसे में यह कौतूहल अनायास ही उठता है कि इतने लंबे समय तक वह अंतरिक्ष में कैसे रहे होंगे, उन पर क्या प्रभाव पड़ा होगा। धरती पर लौटने के बाद जब उनकी चिकित्सीय जांच की गई तो उनकी लंबाई दो इंच बढ़ गई, जबकि उम्र दस मिली सेकेंड घट गई। वहां पर रह कर अंतरिक्ष यात्री कैसे चहलकदमी यानी करते होंगे?

इनसान कुदरत की हर एक पहेली को सुलझाने में मशगूल है। अपनी इस जिद में वह कभी अनंत अंतरिक्ष की गहराइयों को नापने निकल पड़ता है तो कभी इस धरती के हर मुमकिन हिस्से की थाह लेना चाहता है। अपने इस जुनून में वह अपनी शारीरिक और मनोवैज्ञानिक सीमाओं को लगातार किस हद तक विस्तार दे रहा है। ऐसा ही जुनून और जज्बा अंतरिक्ष यात्री का होता है, फिर वहां पहुंचकर अंतरिक्ष में चहलकदमी का मन होता है। जमीन पर घूमने और अंतरिक्ष में घूमने पर बहुत फर्क होता है।

एक तरफ अंतरिक्ष यान तो दूसरी तरफ अंतरिक्षयात्री खुद को अंतरिक्ष की परिस्थितियों के मुताबिक ढालने वाली स्थितियों में रहने लगते हैं। इस दौरान उनके खानपान से लेकर पोशाक तक का ख्याल रखा जाता है। अंतरिक्ष सूट को पहने बगैर वहां रहना संभव नहीं। अंतरिक्ष सूट की वजह से ही यात्री जीवित रह पाते हैं।

अंतरिक्ष में किसी भी समय जब कोई अंतरिक्षयात्री यान से निकलकर अंतरिक्ष में कदम रखता है, तो उसे अंतरिक्ष चहलकदमी कहते हैं। वहां ऑक्सीजन की समस्या होती है। सांस के तौर पर सिर्फ ऑक्सीजन लेने से अंतरिक्षयात्री के शरीर से सारा नाइट्रोजन बाहर निकल जाता है। अगर उनके शरीर में जरा भी नाइट्रोजन हो तो उससे अंतरिक्ष चहलकदमी के दौरान यात्री के शरीर से नाइट्रोजन का बुलबुला निकल सकता है। इस बुलबुले से उसके कंधे, कोहनी, कलाई और घुटनों में तेज दर्द हो सकता है यानी शरीर के जोड़ वाले हिस्से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। अंतरिक्ष में तापमान शून्य से दो सौ डिग्री कम या दो सौ डिग्री अधिक भी हो सकता है। इन तैयारियों के बाद अंतरिक्षयात्री चहलकदमी के लिए तैयार रहते हैं। इस चहलकदमी के लिए यान से वे एक विशेष दरवाजे से बाहर निकलते हैं।

इसे एयरलॉक के नाम से जाना जाता है। एयरलॉक में दो दरवाजे होते हैं। जब अंतरिक्षयात्री यान के अंदर होते हैं तो एयरलॉक इस तरह बंद होता है कि अंदर की जरा-सी भी हवा बाहर न जाने पाए। जब अंतरिक्षयात्री चहलकदमी के लिए पूरी तरह तैयार हो जाते हैं तो वे एयरलॉक के पहले दरवाजे से बाहर जाते हैं और पीछे से उसे मजबूती से बंद कर देते हैं। इसके बाद वे एयरलॉक का दूसरा दरवाजा खोलते हैं। अंतरिक्ष चहलकदमी पूरा करने के बाद फिर एयरलॉक से ही वे यान के अंदर आते हैं।

अंतरिक्ष यात्रियों में घर से दूर रहने का तनाव या जैसा भाव उत्पन्न होने लगता है। मिशन के चौथे महीने में अंतरिक्ष यात्री घर लौटना चाहता है। वे अंतरिक्ष स्टेशन में रहकर थक जाते हैं और अपने परिवार वालों से मिलना चाहते हैं। नासा के ज्यादातर अभियान अब छह महीने से लेकर साल भर के होते हैं। नासा इसलिए अब ज्यादा चाकलेट पुडिंग भेजने पर विचार कर रहा है। इतना ही नहीं अलाबामा में बैठने वाली टीम को अंतरिक्ष स्टेशन के अंतरिक्ष यात्रियों की इधर-उधर गुम हो चुकी चीजों पर भी नजर रखनी होती है। अंतरिक्ष यात्री अपना सामान जब इधर-उधर रख बैठते हैं और भूल जाते हैं। एक अंतरिक्ष यात्री के साथ में हजारों सहायक काम कर रहे होते हैं।

अमूमन अंतरिक्ष यात्री चार से छह घंटे सोते हैं। यान में स्लीप सेंटर होता है। स्लीप सेंटर एक छोटे फोन बूथ की तरह होता है, जिसमें स्लीपिंग बैग होता है। स्लीप सेंटर में कंप्यूटर किताबें और खिलौने भी रख सकते हैं। अंतरिक्ष में यात्री भेजने का मतलब होता है मनुष्यों पर उन परिस्थितियों का असर देखना। इसकी एक खास वजह है कि अगर मनुष्य को कभी अंतरिक्ष में, ग्रहों या उपग्रहों पर लंबे समय तक रहना है तो यह पता होना जरूरी है कि अंतरिक्ष में लंबे समय तक रहने का इंसान पर असर क्या होता है, लेकिन खुद अंतरिक्ष यात्रियों पर क्या-क्या प्रयोग हो रहे हैं और उन पर हो रहे प्रयोगों के असर पर नजर कौन रखता है? अंतरिक्ष यात्रियों के हर पल की हरकत और उन पर हो रहे असर को जांचता है हजारों विशेषज्ञों का दल, जो नासा के नियंत्रण कक्ष में रहता है।

अमेरिका के अलाबामा स्थित एक सैन्य अड्डे से संचालित इस नियंत्रण कक्ष में एक समय में आठ पुरुष और महिलाएं होती हैं। उनकी नजरें कंप्यूटर मॉनिटरों पर जमा होती हैं और चेहरों पर आंकड़ों का बोझ स्पष्ट नजर आता है। जहां चौबीसों घंटे काम होता है। 2011 में 100 अरब डॉलर की लागत से तैयार हुए इस अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में अमेरिका, रूस, जापान और यूरोपीय प्रयोगशालाएं हैं और इसमें काम करने वाले अंतरिक्ष यात्री अब छह महीने से एक साल तक का समय वहां बिताते हैं।

अंतरिक्ष यात्रियों पर पृथ्वी से बाहर धातु के बक्से में रहने, कृत्रिम भोजन खाने, रिसाइकिल किए मूत्र को पीने और महीनों तक केवल अंतरिक्ष यात्रियों के साथ रहने का असर भी देखा जाता है। ये वह अहम अध्ययन हैं जिनके बाद तय होगा कि मनुष्य क्यों अंतरिक्ष में, ग्रहों या उपग्रहों पर कितनी देर तक रह सकता है? इतना ही नहीं, महीनों तक पृथ्वी से दूर रहने से संबंधित मनोवैज्ञानिक पहलुओं के बारे में वैज्ञानिक अध्ययन कर रहे हैं। कई बार अंतरिक्ष स्टेशन के यात्री शिकायत करते हैं कि उन्हें अच्छा नहीं लग रहा है।

अंतरिक्ष चहलकदमी करने वाले अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण का एक तरीका तैराकी अपनाते हैं। हालांकि अंतरिक्ष में तैरना पानी में तैरने से काफी अलग होता है। अंतरिक्ष यात्री विशाल स्वीमिंग पूल में पानी के नीचे अभ्यास करते हैं। यह पुल तटस्थ प्लवनशील प्रयोगशाला कहलाता है। अगर किसी मिशन पर अंतरिक्षयात्री को एक घंटे के लिए चहलकदमी पर जाना होता है तो वह हर रोज लगभग सात घंटे तक पुल के अंदर अभ्यास करके खुद को उसके अनुकूल ढालता है।

चहलकदमी के दौरान यात्री खुद को यान के करीब रखने के लिए खुद एक तरकीब का इस्तेमाल करते हैं। यह रस्सी की तरह होता है, जिसका एक सिरा चहलकदमी करने वाले और दूसरा यान से जुड़ा होता है। यात्री को अंतरिक्ष में यान से काफी दूर जाने से रोकता है। इसके अलावा अंतरिक्ष यात्री सेफर भी पहनते हैं। इसे पीठ पर थैले की तरह पहना जाता है। चहलकदमी के दौरान जब यात्री से बंधी रस्सी खुल जाती है और वह यान से काफी दूर जाने लगता है तो यह सेफर उसे वापस यान में लौटने में मदद करता है।

अंतरिक्ष चहलकदमी सेफर को जॉय स्टिक से नियंत्रित करता है। अंतरिक्ष में पहला अंतरिक्ष चहलकदमी करने वाले अंतरिक्षयात्री थे रूस के एल्केसी लियोनोव। उन्होंने आठ मार्च 1965 को पहली बार अंतरिक्ष चहलकदमी की थी। लियोनोव ने दस मिनट तक चहलकदमी की। अंतरिक्षयान एंडेवर के साथ गए अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष सेंटर में एक यात्री की विशेष पोशाक में कार्बन डाइ-आॅक्साइड गैस भर जाने के कारण तय समय से पहले चहलकदमी खत्म करनी पड़ी थी। अब तक दुनिया के कई देशों के कई अंतरिक्ष यात्री चहलकदमी कर चुके हैं