आजादी की लड़ाई में महिलाओं का भी विशेष योगदान रहा। रानी लक्ष्मीबाई, सरोजनी नायडू, बेगम हजरत महल, अजीजनबाई आदि जैसी वीरांगनाओं में एक थीं दुर्गा देवी, जिन्हें लोग दुर्गा भाभी कहते थे। वे एक निडर महिला थीं, जो कभी बंदूक उठाने में घबराई नहीं और स्वतंत्रता सेनानियों की मदद करने में पीछे नहीं रहीं।

व्यक्तिगत जीवन

इलाहबाद में जन्मीं दुर्गा देवी का बचपन बिन मां के साए में गुजरा। उन्होंने केवल तीसरी कक्षा तक पढ़ाई की थी। जब वे बारह बरस की हुर्इं तब उनका विवाह भगवती चरण नागर से कर दिया गया।

क्रांतिकारियों का आश्रयस्थल

क्रांतिकारी दुर्गा भाभी का घर क्रांतिकारियों के लिए आश्रयस्थल बन गया था। जो भी क्रांतिकारी अंग्रेजों के खिलाफ कोई योनजा बनाता, तो ठिकाना दुर्गा देवी का घर ही होता था। दुर्गा देवी क्रांतिकारियों के लिए चंदा इकट्ठा करतीं और पर्चे बांटती थीं। ’दुर्गा देवी के पति भगवती चरण वोहरा भी एक क्रांतिकारी थे। शादी के बाद दुर्गा देवी पति के कामों में सहयोग करने लगीं। दुर्गा देवी के घर जो स्वतंत्रता सेनानी आते वह उनका आदर-सत्कार करतीं और सेवा करतीं। इस वजह से सभी उन्हें दुर्गा भाभी बुलाते थे।

जब भाभी ने गोली चलाई

दुर्गा भाभी के अंदर आजादी की ऐसी मशाल जल रही थी कि वे निडरता से किसी भी काम को अंजाम देती थीं। उन्होंने इतने बड़े-बड़े खतरे मोल लिए लेकिन अंग्रेजों के आगे झुकी नहीं। भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी की सजा देने वाले गवर्नर हेली से बदला लेने के लिए दुर्गा देवी ने गवर्नर पर 9 अक्तूबर, 1930 को गोली चलाई। इस गोली से हेली बच गया और उसका सैनिक अधिकारी टेलर घायल हो गया। इस घटना के बाद दुर्गा को गिरफ्तार कर लिया और तीन साल की सजा सुनाई गई। मुंबई के पुलिस कमिश्नर को भी दुर्गा भाभी ने गोली मारी थी, जिसके बाद उन्हें और उनके साथी यशपाल को गिरफ्तार कर लिया गया था।’उन्होंने पिस्तौल चलाने का प्रशिक्षण कानपुर और लाहौर से लिया। वे राजस्थान से पिस्तौल लाकर क्रांतिकारियों को देती थीं। चंद्रशेखर आजाद ने अंग्रेजों से लड़ते हुए खुद को जिस पिस्तौल से गोली मारी थी वह भी दुर्गा भाभी ने लाकर दी थी।

भगत सिंह को बचाया

जब भगत सिंह और सुखदेव ब्रिटिश पुलिस अफसर जॉन सांडर्स को गोली मार कर आए तो दुर्गा देवी के घर रुके। उन्हें कोलकाता पहुंचाने का काम भी दुर्गा भाभी ने किया था। पुलिस से बचाने के लिए दुर्गा देवी ने भगत सिंह का रूप रंग बदलवाया और खुद को उनकी पत्नी बता कर उन्हें कोलकाता ले गर्इं।

पति की मृत्यु

केंद्रीय असेंबली में बम फेंकने के बाद जब भगत सिंह गिरफ्तार हुए तो उन्हें बचाने के लिए बम बनाए गए। 28 मई 1930 को रावी नदी के तट पर दुर्गा देवी के पति भगवती चरण वोहरा अपने साथियों के साथ बम बनाने के बाद परीक्षण कर रहे थे जिसकी वजह से उनकी मौत हो गई। पति की मृत्यु के बाद भी दुर्गा देवी सक्रिय रहीं। ’दुर्गा भाभी को 1937 में दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष नियुक्त की गर्इं। इस पद पर आकर उन्होंने कांग्रेस के कार्यक्रमों में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की।

विद्यालय की स्थापना

दुर्गा देवी 1935 में गाजियाबाद में प्यारेलाल कन्या विद्यालय में अध्यापिका की नौकरी करने लगीं और दिल्ली आ गर्इं। इसके बाद 1939 में मद्रास जाकर मारिया मांटेसरी से मांटेसरी पद्धति का प्रशिक्षण लिया और 1940 में लखनऊ में एक मकान में सिर्फ पांच बच्चों के साथ मांटेसरी विद्यालय खोला। आज भी यह विद्यालय लखनऊ में सिटी मांटेसरी इंटर कालेज के नाम से जाना जाता है।

निधन : 15 अक्तूबर को गाजियाबाद में रहते हुए बानबे साल की उम्र में दुर्गा देवी का निधन हो गया।