इस तरह गांव के लोग उसकी इस नकारात्मक प्रवृत्ति से परेशान हो गए। उन्होंने दो दिन का एक सामूहिक आयोजन तय किया और सबने मिल कर फैसला किया कि उस आयोजन में जो कुछ काम होगा, वह सब उस आदमी से पूछ कर ही किया जाएगा, जो हर काम में कमियां निकालता रहता है।

इस तरह आयोजन की सूचना उस व्यक्ति को भी दे दी गई। फिर जो भी काम होता, पहले उस व्यक्ति से पूछ कर ही किया जाने लगा। तंबू-कनात कैसे लगेंगे, कहां लगेंगे, भोजन में किन-किन चीजों की व्यवस्था की जाए। कौन-कौन-सी सब्जी-तरकारी बने, कौन-कौन-सी मिठाइयां बनें। सजावट कैसी हो, आदि हर काम उस व्यक्ति से पूछ कर किया गया।

उसकी निगरानी में ही हर काम हुआ। इस तरह वह आयोजन संपन्न हुआ। आयोजन के बाद लोगों ने उस व्यक्ति से पूछा कि कोई कमी तो नहीं रह गई थी। वह व्यक्ति थोड़ी देर सोचा और फिर बोला, आयोजन बहुत अच्छा था, मगर कोई भी आयोजन इतना अच्छा भी नहीं होना चाहिए कि उसमें कोई कमी ही नजर न आए। ऐसे लोग हम सबके आसपास होते हैं।

आप कितना भी अच्छा काम कर लें, उसमें कमियां निकाल ही लेते हैं। इससे काम में सुधार के बजाय हतोत्साह ही पैदा करते हैं, एक प्रकार का नकारात्मक वातावरण ही बनाते हैं। फिर ऐसे लोगों से लोग दूर रहने लगते हैं। किसी को भी नकारात्मक लोग पसंद नहीं होते। इसलिए अपने व्यवहार को बदल कर सकारात्मक कर लेने में हर्ज ही क्या।