हम सभी के पास विचारों, विश्वासों, भावनाओं और यादों के रूप में ऊर्जा होती है। यही ऊर्जा हमें आगे बढ़कर कुछ करने, लोगों से संबंध विकसित करने या भावों को व्यक्त कराने की प्रेरणा देती है। इसलिए इस ऊर्जा का संरक्षण बहुत ही आवश्यक होता है। ऊर्जा संरक्षण का अपना एक नियम है। उसके अनुसार ऊर्जा को न तो बनाया जा सकता है और न ही कभी नष्ट किया जा सकता है। हां, इसे एक रूप से दूसरे रूप में बदल जरूर सकते हैं। साधारण भाषा में कहा जाए तो कोई भी ऊर्जा को बना या नष्ट नहीं कर सकता है, वह इसे एक से दूसरे रूप में परिवर्तित कर सकता है।

याद रखिए, पूरे ब्रह्माण्ड में जो कुछ भी घटित होता है, वह इसी नियम या सिद्धांत के आधार पर होता है। यदि इसे और गहराई से समझना हो तो कह सकते हैं कि इस सिद्धांत की चेतावनी यह है कि यह बंद प्रणालियों पर लागू होता है। मानव शरीर खुली और बंद दोनों तरह की प्रणाली है। श्वसन और पाचन तंत्र खुले हैं, लेकिन संचार प्रणाली और शरीर के तापमान को नियंत्रित करने वाली प्रणाली बंद-लूप प्रणाली हैं।

आंतरिक रूप से परेशान व्यक्ति कई तरह की बीमारियों का शिकार हो जाता है, जबकि बाहरी रूप से झंझावातों में फंसे रहने से व्यक्ति के रिश्तों, वित्त, पेशेवर करिअर आदि पर सीधा प्रभाव पड़ता है। इन सब से निपटने का सबसे अच्छा तरीका ऊर्जा को एक रूप से दूसरे रूप में बदलकर या स्थानांतरित कर इस्तेमाल में लाना है। इस ऊर्जा परिवर्तन का असर यह होता है कि यदि कोई व्यक्ति ऊर्जा रूपांतरित करता है, तो क्रोध शांति बन जाता है, आक्रोश सद्भावना में बदल जाता है।

यही नहीं, लालच संतोष में परिवर्तित हो जाता है, जबकि वासना वैराग्य हो जाती है। जो व्यक्ति नफरत का शिकार होता है, वह अचानक प्रेम करने लग जाता है और अस्वीकृति स्वयं स्वीकृति में परिवर्तित हो जाती है। इस सतत प्रक्रिया के चलते रहने से कब व्यक्ति का जीवन पूरी तरह बदल गया, उसे अहसास भी नहीं होता। यह भी सदैव याद रखिए, जब आप किसी को धन्यवाद के रूप में कृतज्ञता दे रहे होते हैं तो प्राप्त करने की समान और विपरीत प्रतिक्रिया होती है।