कहते हैं, किसी भी तकनीक का जन्म आदमी की सुविधाओं के मद्देनजर होता है। उसकी बदलती जरूरतों के मुताबिक उसमें, सुधार, बदलाव या विकास होता रहता है। मगर आदमी उसकी उचित उपयोग न करे, उसे खिलौना समझ ले, तो वह खतरनाक भी साबित होती है। उसके दुष्प्रभाव पूरे समाज को झेलने पड़ते हैं। नए संचार माध्यमों के दुरुपयोग के चलते ऐसे ही दुष्प्रभाव नजर आने लगे हैं। खासकर वाट्स ऐप का बिना सोचे-समझे इस्तेमाल कई परेशानियों को जन्म दे रहा है। पिछले दिनों छत्तीसगढ़, कर्नाटक, तमिलनाडु, झारखंड, तेलंगाना, असम, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश आदि में वाट्स ऐप संदेशों के माध्यम से फैलाई गई अफवाहें कई लोगों को हत्या का बायस बनीं। इन संदेशों को समाज में फैलाने के लिए अन्य सोशल मीडिया- फेसबुक, ट्विटर आदि का भी उपयोग किया गया। ये नए संचार माध्यम ऐसी विसंगतियां पैदा करते हैं, जो पिछले चार-पांच सालों में सामने आई हैं।
ऐसा नहीं, कि जब हमारे पास वाट्स ऐप जैसे माध्यम नहीं थे, तब हमारी अफवाहों या कथित खबरों में रुचि नहीं थी। बिल्कुल थी। लगभग दो दशक पहले समाज में एक खबर फैली कि मंदिरों में गणेश जी दूध पी रहे हैं। मजेदार बात है कि यह खबर जंगल में आग की तरह फैल गई और मंदिरों में भगवान गणेश को दूध पिलाने वालों की लंबी-लंबी कतारें लग गर्इं। यह खबर इस तेजी से फैली कि दुनिया दंग रह गई। बाजार में दूध की कमी हो गई और ईश्वर के प्रति आस्था रखने वाले लोग गणेश को दूध पिलाने का कोई भी मौका गंवाए बिना मंदिरों की तरफ चल दिए। इन अनदीखते माध्यमों का इस्तेमाल कुछ इस तरह हुआ कि खबर विदेशों तक जा पहुंची। बहरहाल, खोजबीन की गई तो यह बात सामने आई कि एक व्यक्ति ने रात को यह सपना देखा कि गणेश जी ने दूध पीने की इच्छा प्रकट की है। उसने यह सपना देखा या नहीं, इस बात के भी पुष्ट प्रमाण नहीं मिले। यह उस दौर की बात है, जब हमारे समाज में वाट्स ऐप जैसे माध्यम नहीं थे। इसलिए खबर फैलाने वालों की नीयत का पता नहीं चल पाता था। फिर भी किसी ने यह जानने की कोशिश नहीं की कि गणेश जी की मूर्ति दूध कैसे पी सकती है। और शायद यह भी सच है कि इन खबरों के फैलने में आस्था ही अहम हुआ करती थी। लेकिन अब सब कुछ बदल गया है। अब हमारे पास वाट्स ऐप जैसे माध्यम हैं, जो पलक झपकते ही खबरों को वैश्विक बना सकते हैं, बना रहे हैं।
वाट्स ऐप की शुरुआत
वाट्स ऐप की शुरुआत ब्रायन एक्टन और जैन कोऊम ने मिल कर 2009 में की थी। याहू कंपनी से नौकरी छोड़ कर इन दोनों ने फेसबुक में नौकरी पाने की कोशिश की, लेकिन वहां नाकामयाब होने के बाद इन्होंने एक ऐप बनाने का फैसला किया। उन्होंने इस ऐप का नाम वाट्स ऐप रखा। इसका मकसद मित्रों, समूहों को सूचनाएं भेजना था। देखते ही देखते वाट्स ऐप इतना लोकप्रिय हुआ कि इसके उपयोग करने वालों की संख्या दुनिया में 2014 तक पचास करोड़ से ऊपर पहुंच चुकी थी। भारत में बड़े पैमाने पर इसका उपयोग पिछले लोकसभा चुनावों के समय किया गया।
हिंसा का जरिया बना वाट्स ऐप
पिछले पांच सालों में वाट्स ऐप जैसे सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाने से जो लोग मारे गए या माब लिंचिंग के शिकार हुए, उसके कारण भी अजीब हैं। कहीं यह खबर फैलाई गई कि बच्चों को अपहरण करने वाला एक गिरोह सक्रिय है। अचानक भीड़ ने संदेश में बताए गए लोगों जैसे दिखते लोगों को पकड़ा और उसकी हत्या कर दी। एक जगह तो कुछ युवक गांव में शौचालय बनाने के लिए गड्डे खोद रहे थे। उनके बारे में सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाई गई और हजार लोगों की भीड़ ने उन पर हमला कर दिया। इन सभी पीड़ितों या मृतकों में हर उम्र के व्यक्ति थे। युवा, वृद्ध, किशोर और महिलाएं तक भी। जहां तक पेशों का सवाल है, तो इनमें बैंककर्मी, मजदूर, आटो रिक्शा चालक, सामाजिक कार्यकर्ता, मंदिर जाने वाले और अन्य पेशों के लोग भी शामिल थे। यानी वाट्स ऐप संदेशों ने पीड़ितों के साथ किसी तरह का भेदभाव नहीं किया। ये संदेश या वीडियो हिंदी, तमिल और अन्य स्थानीय भाषाओं में भी पाए गए।
यानी इन संदेशों का कोई मकसद रहा होगा, तो अपना स्थानीय समाज को उत्तेजित करना रहा होगा। यह शोध का विषय हो सकता है कि उनकी नीयत इन संदेशों को भेजते समय साफ थी या नहीं। हालांकि कुछ मामलों में तो यह पाया ही गया है कि ये संदेश देश के सांप्रदायिक सद्भाव को खराब करने, किसी राजनीतिक विचारधारा का समर्थन करने के मकसद से भेजे जा रहे हैं। भारतीय जनमानस यह तो समझ ही गया कि वाट्स ऐप संदेश आगे फैलाने का बेहतरीन जरिया है, लेकिन उसने यह सीखने की कोशिश नहीं की कि इन खबरों की कहीं से पुष्टि भी कर ली जाए। बिना किसी विवेक के वे संदेश को आगे भेजते रहे। वे इस बात से भी लगभग अनभिज्ञ बने रहे कि इन संदेशों का क्या असर हो सकता है।
ऐतिहासिक तोड़मरोड़ का खेल
भारतीय समाज आज भी अपने इतिहास के बारे में बहुत कम जानता है। लिहाजा अब इतिहास से छेड़छाड़ केवल फिल्मों या धारवाहिकों में नहीं हो रही, बल्कि वाट्स ऐप पर भी खूब हो रही है। इन संदेशों में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को मुसलमान बताया जाता है, तो कभी भारत में हुई तमाम अनैतिक घटनाओं के लिए मुगलों को दोषी ठहराया जाता है। कोई इन ऐतिहासिक तथ्यों की पुष्टि नहीं करना चाहता।
हास्य का खुलता संसार
वाट्स ऐप पर हास्य की एक बड़ी दुनिया भी खुल गई है। इस दुनिया में हास्य वीडियो, चुटकुले, बच्चे के दिलचस्प वीडियो, कॉमेडी शोज से जुड़े वीडियो का खूब आदान-प्रदान होता है। इसमें कोई बुराई भी नहीं है। लेकिन चुटकुलों के नाम पर ऐसी सामग्री भी परोसी जा रही है, जिसमें किसी पार्टी विशेष या नेता विशेष को लेकर चुटकुले बनाए जाते हैं। जाहिर है, इनका आनंद अपनी जगह है लेकिन इनसे माहौल खराब होने का डर बना ही रहता है। आप अगर एक पार्टी या व्यक्ति को लेकर चुटकुले बना रहे हैं, तो दूसरा दूसरी पार्टी या व्यक्ति को लेकर चुटकुले बनाता और भेजता है। यानी वाट्स ऐप पर ही आपसी मेलजोल के गुट राजनीतिक गुटों में बदल जाते हैं। जब यह गुटबाजी तीखी होती है, तो एक-दूसरे को ब्लॉक करने का खेल शुरू होता है। और यह सोशल दीखने वाला मीडिया गैर-सोशल मीडिया में बदल जाता है।
कविताएं और शेरो-शायरी
आपस में अच्छी और हिंदी के बड़े कवियों की कविताएं या शायरों की शायरी भी वाट्स ऐप पर एक-दूसरे को भेजने का चलन काफी है। इसमें कोई बुराई भी नहीं है। आमतौर पर शौकीन लोग इस बहाने कुछ कविताएं या शायरी पढ़ पाते हैं। एक-दूसरे से साझा कर पाते हैं। लेकिन पाया यह गया है कि अक्सर वाट्स ऐप पर कवि और शायर का नाम गलत होता है। कुछ लोकप्रिय कविताएं किसी दूसरे कवि के नाम से जानी जाने लगती हैं। कई पंक्तियां गलत लिखी होती हैं। यों देखा जाए तो इसका कोई बहुत नुकसान नहीं है- कम से कम सामाजिक रूप से। लेकिन होता यह है कि कई बार जीवित युवा कवि की कविताएं वाट्स ऐप पर साझा हो जाती हैं- नाम इनमें या तो किसी का होता नहीं और अगर होता है तो गलत होता है। ऐसे में कुछ कथित कवि इन कविताओं का इस्तेमाल अपने नाम से अखबारों में या फेसबुक पर कर लेते हैं। यानी सोशल मीडिया ने साहित्यिक चोरियों को भी बढ़ाने का काम किया है। अखबारों और पत्रिकाओं के पास यह जानने का कोई जरिया नहीं होता कि कविता का असली लेखक कौन है। पिछले कुछ समय में इस तरह की अनेक चोरियां सामने आई हैं। तो जब आप किसी की कविता, शायरी या कहानी भी वाट्स ऐप पर शेयर करें, तो कोशिश करें कि उसके लेखक का मूल नाम जान लें। इस तरह आप इन चोरियों को रोकने में अपनी सामाजिक जिम्मेदारी का निर्वाह कर सकेंगे।
कुछ अच्छे पहलू भी हैं
ऐसा कतई नहीं है कि वाट्स का इस्तेमाल केवल नकारात्मक चीजों के लिए ही हो रहा है। कई बार किसी बच्चे के गुम होने की सूचना वाट्स पर एक-दूसरे को भेजी जाती है तो कई बार कहीं मिले बच्चे की फोटो साझा की जाती है और कहा जाता है कि यह बच्चा फलां जगह पर पाया गया है, यह अपने मां बाप का नाम नहीं बता पा रहा है, अगर कोई इसे पहचानता है तो संपर्क करे। इसी तरह वाट्स ऐप या सोशल मीडिया पर कई बार कोई व्यक्ति यह साझा करता है कि उसे एक बैग मिला है, जिसमें युवक का नाम और उसका कहीं का नियुक्त पत्र है, वह हमसे ले सकता है। इस तरह की चीजें जाहिर हैं वाट्स ऐप की उपयोगिता साबित करती हैं। साथ ही वाट्स ऐप पर आने वाले नए फीचर भी इसे उपयोगी बना रहे हैं। मसलन, अब आप वाट्स ऐप पर फ्री काल कर सकते हैं। लाइव काल कर सकते हैं। आपकी बेटी या बेटा अगर विदेश में है तो आप उससे बात करते हुए उसकी तस्वीर देख सकते हैं।
सरकार की चिंताएं
सच यह भी है कि सरकार अब वाट्स ऐप पर फेक न्यूज और दूसरी अफवाहों को लेकर चिंतित है। सरकार ने स्वयं यह स्वीकार किया है कि यह फेक न्यूज और अफवाहों का सबसे बड़ा माध्यम बनता जा रहा है। और इसके लिए बाकायदा सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने एक नोटिस भेज कर वाट्स ऐप से ज्यादा प्रभावी समाधान बताने को कहा है, ताकि अफवाह फैलाने वाले लोगों को पकड़ा जा सके और उन पर कानूनी कार्रवाई हो सके। सरकार ने भी यह माना है कि देश में सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने में वाट्स ऐप की अहम भूमिका रही है। आज वाट्स ऐप लोगों की जिंदगी का जरूरी हिस्सा बन चुका है और इसका प्रयोग दोस्तों, रिश्तेदारों और परिवार के सदस्यों से संपर्क में रहने के लिए किया जा रहा है। ऐसे में अगर इससे देश का माहौल खराब होता है, तो यह बेहद खराब बात है। यह खराब इसलिए भी है कि पढ़े-लिखे लोग भी किसी खबर की सच्चाई जाने बिना ही उसे आगे भेज देते हैं।
यूनिवर्सिटी आफ वारविक के एक शोध के अनुसार चालीस फीसद पढ़े-लिखे युवा किसी खबर की सच्चाई की परख नहीं करते। अगर उन्हें कोई खबर या वीडियो गलत लगती भी है, तो केवल पैंतालीस प्रतिशत युवा सच्चाई की तह तक जाने का प्रयास करते हैं। एक और तथ्य यह भी सामने आया कि लोग अफवाहों पर कार्रवाई खुद करने के लिए निकल पड़ते हैं। जैसे बच्चों के अपहरण को लेकर किसी व्यक्ति के बारे में अफवाह फैली और लोगों ने उस व्यक्ति को देखा तो न तो वे पुलिस के पास जाते हैं न अन्य किसी प्रशासनिक अधिकारी के पास। उसका फैसला भीड़ खुद ही कर देती है। ऐसा भी लगता है कि वाट्स ऐप ने पहले से ही मौजूद अलग-अलग सांप्रदायिक समूहों के बीच के तनाव को एक मंच देकर उसे बढ़ावा देने का काम किया है।
यूनिवर्सिटी आफ मैरीलैंड के मीडिया प्रोफसर कल्याणी चड्ढा का मानना है कि वाट्स ऐप एक ऐसे पैमाने का विस्तार कर रहा है जो वास्तव में पहले मौजूद नहीं थी, इसलिए वाट्स ऐप वास्तव में नकली खबर नहीं है, वह अपने परिणाम के साथ नकली खबर है। वाट्स ऐप को लेकर एक धारणा यह भी है कि यह डिजीटल हथौड़ाकरण अब बहुत ज्यादा बढ़ गया है। हम एक ग्रामीण भारत में लाखों लोगों को देख रहे हैं, जो वाट्स ऐप के माध्यम से निरंतर कट्टरपंथी होते जा रहे हैं। वे वैचारिक रूप से संचालित नहीं हो सकते, लेकिन वैचारिक रूप से विनियोजित हैं।
दिलचस्प बात है कि गणेश जी के दूध पीने की जिस थ्योरी को वैज्ञानिकों ने जन्म दिया उसे ‘मास हाइपनोसिस’ या ‘साइको-साइको मैकेनिक रिएक्शन’ का नाम दिया था। और यह सब अब वाट्स ऐप जैसे माध्यमों द्वारा साफ दिखाई पड़ रहा है। और इसमें भी कोई संदेह नहीं है कि अफवाहों, फेक न्यूज जैसी चुनौतियों का सामना करना सरकार या मंत्रालय के लिए आसान काम नहीं होगा।
स्वास्थ्य से खिलवाड़
भारतीय समाज के बारे में कहा जाता था कि यहां आधे से ज्यादा लोग खुद ही डॉक्टर हैं। अब वाट्स ऐप जैसे सोशल मीडिया ने लोगों के भीतर सोए इस डॉक्टर को भी जगाने का काम किया है। वाट्स ऐप पर लगातार विभिन्न बीमारियों के इलाज एक-दूसरे से साझा किए जाते हैं। कभी हड्डियों की कमजोरी की दवा, कभी ब्लड प्रेशर हाई या लो होने की दवा। बहुत से समूह तो ऐसे भी हैं, जो खुद को डाक्टरों का समूह बताते हैं। इस समूह के लोग अपना फोन नंबर और मिलने की सलाह देते हैं। ये लोग वाट्स को प्रचार माध्यम के रूप में भी इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन जिन लोगों के पास ये संदेश आ रहे हैं या जो लोग इन्हें आगे भेज रहे हैं वे बिना किसी जांच या प्रमाण के इन्हें आगे बढ़ाते रहते हैं।
इन दिनों वाट्स ऐप पर खानपान और सामान्य से लेकर गंभीर बीमारियों तक के बारे में दादी-नानी के आजमाए हुए नुस्खे, आयुर्वेदिक नुस्खे आदि खूब प्रसारित किए जा रहे हैं। जैसे गरम पानी पीने के फायदे, कब्ज, गैस आदि की समस्या से निजात पाने के लिए तरह-तरह की वनस्पतियों के फायदे। कमर दर्द, घुटनों के दर्द, गर्भावस्था आदि के समय होने वाली परेशानियों के उपचार वाट्स ऐप पर खूब बताए जा रहे हैं। इन्हें पढ़-देख कर बहुत सारे लोग उन नुस्खों को आजमाते भी हैं। मगर इनमें से कितने कारगर नुस्खे हैं, कहना मुश्किल है। इन्हें आजमाने की वजह से कितने लोगों के स्वास्त्य पर प्रतिकूल प्रबाव पड़ रहा है, इसके भी आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। पर हकीकत यह है कि हर शरीर की प्रकृति अलग होती है, इसलिए जरूरी नहीं कि एक ही रोग में अगर किसी व्यक्ति को कोई नुस्खा फायदा कर रहा है, तो वह दूसरे को भी करेगा ही। इसलिए वाट्स ऐप आदि के जरिए प्रसारित किए जाने वाले नुस्खे लोगों की सेहत के साथ एक तरह का खिलवाड़ ही हैं।
वास्तव में वाट्स ऐप खुद को हर क्षेत्र में जानकार होने का संतोष भी उपभोक्ता को देता है। इसलिए अधिक से अधिक उपभोक्ता अपने सीमित बुद्धि का प्रयोग करके स्वास्थ्य संबंधी इन सूचनाओं को आगे भेज देते हैं। कुछ ऐसे लोग भी हैं जो अखबारों या वेबसाइट्स की सूचनाओं को साझा करते हैं। खासतौर पर महिलाएं इस मामले में ज्यादा सक्रिय पाई गई हैं। वे देसी दवाओं के साथ-साथ अपनी जानकारी के अनुसार डाक्टरों के संपर्क नंबर भी वाट्स ऐप पर भेजती और प्राप्त करती हैं। ऐसा नहीं है कि हर बार ये सूचनाएं गलत ही होती हैं। लेकिन मूल बात वही है कि क्या हम इनकी जांच करके इन्हें एक-दूसरे के पास भेजते हैं। अगर आपकी नीयत साफ भी है तो क्या अज्ञानता अपने आप में अपराध नहीं होनी चाहिए?