अक्तूबर का महीना लगते ही सुबह-शाम की हल्की ठंड सर्दी की दस्तक का एहसास कराने लगती है। यह बदलता मौसम शरीर पर असर डालता है। इसमें खांसी-कफ जैसी समस्याएं आम हैं। कहते हैं कि आती सर्दी और जाती सर्दी ही सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाती है। इस ऋतु परिवर्तन में शरीर का तापमान भी तेजी से बदलता रहता है। कभी गर्मी तो कभी ठंड। गर्मी लगते ही एसी की हवा खाना चाहते हैं या फिर ठंडा पानी पी लेते हैं और यहीं से तबीयत बिगड़ने लगती है। इसी से गला खराब और कफ होने के साथ खांसी का हमला शुरू होता है। खांसी को सारे रोगों की जड़ कहा गया है। इसलिए सर्दी आने के साथ ही खांसी से बचाव जरूरी है। इसके अलावा इसी मौसम में प्रदूषण भी सबसे ज्यादा होता है जो खांसी को बढ़ाता है।
आयुर्वेद में खांसी को कास रोग भी कहते हैं। खांसी के कुछ सामान्य प्रकार हैं-

वातज खांसी
जब शरीर में वात यानी वायु की प्रधानता होती है तो इसे वात प्रकोप कहा जाता है। वात के कारण होने वाली खांसी को वातज कास कहते हैं। इसमें कफ अंदर सूख जाता है और देर तक खांसी चलती रहती है। सूखने की वजह से कफ या तो बहुत कम निकलता है या फिर निकलता ही नहीं है। कफ न निकल पाने की वजह से लगातार खांसी चलती रहती है और इससे पेट, पसली, आंतों, सीने, कनपटी, गले और सिर में दर्द हो जाता है।
पित्तज खांसी
जब शरीर में पित्त का प्रकोप बढ़ता है यानी अम्ल ज्यादा बनता है तो इससे होने वाली खांसी को पित्तज खांसी कहते हैं। इसमें पीला और कड़वाहट भरा बलगम आता है। मुंह में गर्मी, गले-छाती और पेट में जलन, मुंह सूखना, स्वाद में कड़वापन, प्यास लगती रहना, शरीर में दाह महसूस होना पित्तज खांसी के प्रमुख लक्षण हैं।

कफज खांसी
शरीर में जब जल की प्रधानता के कारण कफ प्रकोप होता है तो इससे होने वाली खांसी में कफ बहुत निकलता है। खांसी के हर ठसके के साथ ही बलगम आता है। इस खांसी में न केवल सिर में बल्कि पूरे बदन में भारीपन और दर्द रहता है। मुंह का स्वाद खराब रहता है। गले में खराश और खुजली भी होती है और खांसने पर बार-बार गाढ़ा कफ निकलता है।  एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति के अनुसार खांसी दो तरह की होती है। सूखी और गीली। सूखी खांसी होने के कारणों में एक्यूट ब्रोंकाइटिस, फेरिनजाइटिस, प्लूरिसी, सायनस का संक्रमण तथा टीबी की शुरुआती अवस्था का होना है। गले के भीतर कागले के बढ़ जाने से, टांसिलाइटिस से और नाक का पानी गले में पहुंचने से भी खांसी होती है। गीली खांसी होने के कारणों में क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस, ब्रोंकियेक्टेसिस और फुक्फुसीय गुहा (केविटी) में कफ हो जाना होता है। इसे गीली खांसी कहते हैं। अंदर फुफुस में घाव या सड़न हो तो कफ दुर्गंधयुक्त होता है।

सामान्य खांसी
दिनचर्या और दैनिक आहार में गड़बड़ होने से भी खांसी चलने लगती है। इसे सामान्य खांसी कहते हैं। गले में संक्रमण होने पर खराश और सूजन होने पर खांसी चलने लगती है। खराब तेल से बनी चीजें खाने, खटाई खाने, ज्यादा चिकनाई वाली चीजें खाकर तुरंत ठंडा पानी पीने से खांसी चलने लगती है। यह सामान्य खांसी उचित परहेज करने और सामान्य सरल चिकित्सा से ठीक हो जाती है।
अगर खांसी आठ-दस दिन तक उचित परहेज और दवा लेने पर भी ठीक न होती हो तो समझ लें कि यह ‘रोग का घर खांसी’ वाली श्रेणी की खांसी है और मामला गंभीर हो सकता है। इसलिए तुरंत इलाज कराना चाहिए।

घरेलू इलाज
खांसी के रोगी को गुनगुना पानी पीना चाहिए और नहाना भी गुनगुने पानी से चाहिए। मधुर, क्षारीय, कटु और उष्ण पदार्थों का सामान्य सेवन करना चाहिए। मधुर द्रव्यों में मिश्री, पुराना गुड़, मुलहठी और शहद का, क्षारीय पदार्थों में यवक्षार, नौसादर और टंकण (सुहागे का फूला), कटु द्रव्यों में सौंठ, पीपल और काली मिर्च और उष्ण पदार्थों में गर्म पानी, लहसुन, अदरक आदि-आदि पदार्थों का सेवन करना चाहिए।खांसी में खटाई, चिकनाई, ज्यादा मिठाई, तली हुई चीजें बिल्कुल न खाएं। खटाई गले में सूजन भी कर देती है। इसके अलावा ठंडी यानी फ्रिज में रखी चीजें भी न खाएं।

सूखी खांसी में दो कप पानी में आधा चम्मच मुलहठी चूर्ण डालकर उबालें। जब पानी आधा कप बचे तब उतारकर ठंडा करके छान लें। इसे सोते समय पीने से चार-पांच दिन में अंदर जमा हुआ कफ ढीला होकर निकल जाता है और खांसी में आराम हो जाता है।गीली खांसी के रोगी गिलोय, पीपल और कंटकारी, तीनों को जौकुट (मोटा-मोटा) कूटकर शीशी में भर लें। एक गिलास पानी में तीन चम्मच जौकुट चूर्ण डालकर उबालें। जब पानी आधा रह जाए तब उतारकर बिलकुल ठंडा कर लें और एक-दो चम्मच शहद या मिश्री पीस कर डाल दें। इसे दिन में दो बार सुबह-शाम आराम होने तक पीना चाहिए। १