एम एस सुब्बुलक्ष्मी का जन्म 16 सितम्बर, 1916 को मदुरै, तमिलनाडु के मंदिर में हुआ था। इस नाते उन्हें देवकन्या रूप में कुजम्मा कहा जाता था। उनको भक्ति गायन के संस्कार वहीं से मिले थे। सुब्बुलक्ष्मी का पहला जन कार्यक्रम आठ वर्ष की उम्र में कुंबाकोनम में महामहम उत्सव के दौरान हुआ था। इसी कार्यक्रम के बाद उनका सार्वजनिक दौर शुरू हुआ।
संगीत की शिक्षा
सुब्बालक्ष्मी ने सेम्मानगुडी श्रीनिवास अय्यर से कर्नाटक संगीत की शिक्षा ली। पंडित नारायण राव व्यास उनके हिंदुस्तानी संगीत में गुरु रहे। सुब्बुलक्ष्मी का पहला भक्ति संगीत का एलबम तब आया जब उनकी उम्र केवल दस वर्ष की थी। उसी के बाद वे मद्रास संगीत अकादमी में आ गर्इं। एमएस सुब्बालक्ष्मी ने जिस दौर में गायन शुरू किया और अपना स्थान बनाया, उसमें पुरुष गायकों का ही दबदबा था, लेकिन सुब्बालक्ष्मी ने उस परंपरा को तोड़ा।
अभिनय
सुब्बुलक्ष्मी ने फिल्मों में अभिनय भी किया। 1945 में उनकी यादगार फिल्म ‘भक्त मीरा’ आई। इस फिल्म में उन्होंने मीरा के भजन भी गाए थे। इनकी अन्य फिल्मों में ‘सेवा सदनम’, ‘सावित्री’ तथा तमिल में ‘मीरा’ आई। मगर बाद में इन्हें लगा कि गायन ही उनका असली क्षेत्र है, इसलिए फिल्मों में अभिनय छोड़ दिया।
पति का मार्गदर्शन
सुब्बुलक्ष्मी को उनके पति का मार्गदर्शन हमेशा मिलता रहा। ये महान भक्ति गायिका सदैव नम्र बनी रहीं और संगीत में अपनी ख्याति के लिए अपने पति सदाशिवम् का आभार मानती रहीं। सदाशिवम गांधीवादी और स्वतंत्रता सेनानी थे। जबसे उन्होंने सुब्बुलक्ष्मी का हाथ थामा, तबसे हर प्रयत्न करते रहे, जिससे सुब्बुलक्ष्मी की ख्याति बढ़ती रहे। उन्होंने सुब्बुलक्ष्मी की गायन सभाओं का इस प्रकार आयोजन किया कि वे सफलताओं की सीढ़ियां चढ़ती ही गर्इं। सुब्बुलक्ष्मी को ‘नाइटेंगेल आॅफ इंडिया’ कहा गया। रामधुन और भक्ति संगीत को गाने की प्रेरणा भी उन्हें सदाशिवम् से ही मिली थी।
प्रशंसा
अनेक मशहूर संगीतकारों ने श्रीमती सुब्बुलक्ष्मी की कला की तारीफ की है। लता मंगेशकर ने उनकी संगीत साधना को देखते हुए ‘तपस्विनी’ कहा। उस्ताद बड़े गुलाम अली खां ने उन्हें ‘सुस्वरलक्ष्मी’ कहा, तथा किशोरी आमोनकर ने उन्हें ‘आठवां सुर’ कहा, जो संगीत के सात सुरों से ऊंचा है। महात्मा गांधी और पंडित नेहरु भी उनके संगीत के प्रशंसक थे। एक अवसर पर महात्मा गांधी ने कहा कि अगर श्रीमती सुब्बुलक्ष्मी ‘हरि, तुम हरो जन की भीर’ मीरा भजन को गाने के बजाय बोल भी दें, तब भी उनको वह भजन किसी और के गाने से अधिक सुरीला लगेगा।
सुब्बुलक्ष्मी के बारे में कहा जाता है कि जो लोग उनकी भाषा नहीं समझते थे, वे भी उनकी गायकी सुनते थे। उनकी आवाज को परमात्मा की अभिव्यक्ति कहा जाता था और लोग प्रसन्नचित होकर उनका गायन सुनते थे।
सम्मान और पुरस्कार
वे पहली भारतीय हैं, जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र की सभा में संगीत कार्यक्रम प्रस्तुत किया। वे पहली स्त्री हैं, जिनको कर्नाटक संगीत का सर्वोत्तम पुरस्कार, संगीत कलानिधि प्राप्त हुआ। संयुक्त राष्ट्र सुब्बुलक्ष्मी की जन्म शताब्दी के उपलक्ष्य में एक डाक टिकट जारी करेगा। उन्हें 1954 में पद्म भूषण, 1956 में संगीत नाटक अकादेमी सम्मान, 1974 में रैमन मैग्सेसे सम्मान, 1975 में पद्म विभूषण, 1988 में कैलाश सम्मान, 1998 में भारत रत्न समेत कई सम्मानों से नवाजा गया। इसके अलावा कई विश्वविद्यालयों ने उन्हें मानद उपाधि से सम्मानित किया।
निधन: 11 दिसंबर, 2004 को अट्ठासी साल की उम्र में उनका उनका निधन हो गया।

