चंपक वन में राजा शेर सिंह का शासन था। सभी जानवर प्रसन्नतापूर्वक रहते थे। लेकिन जंगल में सिर्फ एक चीज की कमी थी। वह था पानी। इसलिए राजा ने एक सुंदर जलाशय का निर्माण करवाया, ताकि सभी जानवर अपनी पानी की जरूरत को पूरा कर सकें। राजा ने जलाशय की देखभाल और प्रबंध के लिए भेड़िया कपट सिंह के नेतृत्व में कुछ जानवरों की नियुक्ति कर दी। राजा के इस काम से जानवरों की पानी की तंगी दूर हो गई।
लेकिन कुछ समय बाद ऐसी शिकायतें आने लगीं कि ताकतवर जानवर भ्रष्ट जानवरों की मिलीभगत से पानी का नाजायज इस्तेमाल करने लगे जबकि कमजोर जानवरों से पानी पीने के एवज में रिश्वत मांगी जाती थी। इस गोरखधंधे में कुछ दरबारी भी शामिल थे। वैसे जब भी कोई जानवर राजा को यह बताता कि उसे पानी पीने के बदले रिश्वत देनी पड़ी तो राजा भ्रष्ट कर्मचारी को सजा भी देता था।
एक दिन भेड़िया कपट सिंह राजा के पास गया और बोला, ‘महाराज, रिश्वत लेना अपराध है लेकिन जो जानवर रिश्वत दे, उसे भी तो सजा मिलनी चाहिए।’ राजा मान गया और उसने यह घोषणा करा दी कि अभी तक सिर्फ रिश्वत लेना अपराध था, लेकिन आगे से जो जानवर रिश्वत देगा, उसे भी दंडित किया जाएगा।
इस घोषणा के अगले दिन एक हिरण जलाशय पर पानी पीने गया। हिरण प्यासा था। उससे रिश्वत मांगी गई। हिरण ने सोचा कि अगर दरबार में शिकायत करने जाऊंगा तो पहले एपॉइंटमेंट लेना पड़ेगा। तब तक तो मैं प्यासा ही मर जाऊंगा। इसलिए उसने मजबूर होकर रिश्वत दे दी।
पानी पीने के बाद हिरण बोला, ‘अब मैं रिश्वत मांगने वाले जानवर की शिकायत राजा से करूंगा।’ तभी उसके एक शुभचितक ने कहा,‘भैया, लगता है कि तुमने राजा की घोषणा नहीं सुनी, शिकायत करना तो दूर, किसी को बता भी मत देना कि तुमने पानी पीने के बदले में रिश्वत दी, वरना सबसे पहले तो तुम्हें ही सजा मिलेगी।’ अब जानवर पानी पीने के बदले में रिश्वत भी देते थे और अपना मुंह भी बंद रखते थे। (हरजीत सिंह)