दुख ही जीवन की कथा रही/ क्या कहूं आज, जो नहीं कही!… ये पंक्तियां बताती हैं कि निराला का जीवन गहन संघर्षों से भरा था। उनके जीवन का संघर्ष उनकी कविताओं में भी दिखता है। निराला ने प्रेम, किसान, स्त्री जैसे विभिन्न विषयों पर लिखा। उन्होंने कविता में कई प्रयोग भी किए। निराला के जन्मदिन को लेकर कई मत हैं, पर खुद निराला अपना जन्मदिन बसंती पंचमी के दिन मनाते थे।
प्रारंभिक जीवन
निराला का जन्म बंगाल के मिदनापुर में हुआ था। उनका परिवार मूलरूप से उत्तर प्रदेश का था। उनके पिता बंगाल में नौकरी करते थे। अपने जीवन के शुरुआती सालों में निराला कई साहित्यिक सम्मेलनों में गए। उनकी शुरुआती शिक्षा बांग्ला भाषा में हुई थी। उन्हें संस्कृत से भी लगाव था। उनके पिता पंडित रामसहाय त्रिपाठी एक सरकारी कर्मचारी थे। बचपन में ही निराला की मां गुजरी गर्इं। निराला की शादी कम उम्र में कर दी गई। शादी के कुछ साल बाद यह खुशी भी उनसे छिन गई। जब निराला बीस वर्ष के थे, तभी उनकी पत्नी का देहांत हो गया। बाद में उनकी बेटी की भी मृत्यु हो गई। निराला ने अपने जीवन में दुख अधिक देखे थे। शायद यही वजह है कि उनकी कविताओं में वेदना झलकती है।
प्रारंभिक शिक्षा
मैट्रिक पास करने के बाद निराला ने घर में ही रह कर संस्कृत और अंग्रेजी साहित्य पढ़ा। बाद में उन्हें लखनऊ से उन्नाव आना पड़ा। वे रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद और रवींद्रनाथ जैसे व्यक्तित्वों से प्रभावित थे। वे घुड़सवारी, कुश्ती और अन्य खेलों के भी शौकीन थे। निराला ने शादी के बाद हिंदी में लेखन शुरू किया था।
स्त्री वेदना
स्त्री के भावों, उसके अंदर की वेदना को समझ पाना रचनाकारों के लिए कठिन काम रहा है, लेकिन निराला ने अपनी कविताओं में स्त्री मन को छूने का प्रयास किया है। जब छायावादी कविताओं में रोमांस और रहस्य अधिक लिखा जा रहा था, तब निराला ने किसानों के शोषण पर कविताएं लिखीं। छायावाद में स्त्री को प्रेयसी के रूप में देखा गया है, लेकिन निराला ने स्त्री को श्रमिक के रूप में भी देखा। उन्होंने अपनी दिवगंत बेटी सरोज की याद में ‘सरोज स्मृति’ लिखी। उसमें बेटी के लिए कुछ बेहतर न कर पाने की ग्लानि और उसके रूप के सौंदर्य का वर्णन किया है। निराला ने श्रमिक स्त्री पर भी लिखा है। उनकी कविता ‘वह तोड़ती पत्थर’ श्रमिक स्त्री के सौंदर्य का वर्णन है। निराला ने आगे के कवियों के लिए आदर्श स्थापित किए हैं।
अपमान और बहिष्कार
निराला को महाप्राण कहा जाता है। यह संज्ञा के पीछे उनके द्वारा किए गए कार्य और साहस है। निराला ने अपने लेखन से समाज की कुरीतियों पर भी प्रहार किया। जिस वजह से समाज में उन्हें अपमान और बहिष्कार भी झेलना पड़ा। उनका गीत ‘बाम्हन का लड़का/ मैं उसको प्यार करता हूं/ जाति की कहारिन वह/ मेरे घर की पनिहारिन वह/ आती है होते तड़का/ उसके पीछे मैं मरता हूं।’ इस गीत के लिए उन्हें कीमत भी चुकानी पड़ी। ‘कहारिन के पीछे’ लिखने का समाज का अपमान भी सहना पड़ा। यही नहीं, निराला ने साहित्यजगत के अपने साथियों से भी अपमान सहा था। निराला मांस खाते थे। इस वजह से ब्राह्मणों ने उनके घर का पानी पीना भी बंद कर दिया था। निराला ने कविता, लेख, उपन्यास, कहानी आदि विधाओं में लिखा।
निधन : 15 अक्तूबर, 1961 को इलाहाबाद में निराला का निधन हो गया।