एक अधीर युवक संत के पास पहुंचा। उसके मन में संत की परीक्षा लेने का भाव भी था। उसने संत से कहा, क्या आप मुझे ईश्वर के दर्शन करा सकते हैं? संत ने कहा, बिल्कुल। युवक बोला, मुझे अभी करना है ईश्वर के दर्शन। संत ने उसके चित्त की चंचलता जान ली। उन्हें लगा कि इस युवक को ईश्वर के दर्शन का मार्ग समझाना कठिन है।
इसलिए उन्हें तत्काल एक उपाय सूझा। सामने के पेड़ पर एक बंदर बैठा उन्हीं की तरफ देख रहा था। संत ने युवक से कहा, उस बंदर को देख रहे हो! युवक ने बंदर को ध्यान से देखा। संत ने कहा, ध्यान से देख लो। फिर घर चले जाओ। एकांत में आंखें बंद करके बैठना। जिस वक्त तुम्हारे मन से उस बंदर की छवि आनी बंद हो जाएगी, उसी वक्त तुम्हें ईश्वर के दर्शन हो जाएंगे।
वह युवक प्रसन्न होकर चला गया। घर पहुंच कर एकांत में उसने वैसा ही किया, जैसा संत ने कहा था। मगर, यह क्या। उस बंदर की तस्वीर तो मन से पल भर को भी नहीं हटती थी। बल्कि हर पल अब उसे वह बंदर ही दिखने लगा था।
सोते-जागते। बंदर उसके मन में इस कदर उछल-कूद करने लगा कि युवक परेशान हो गया। वह भागा-भागा संत के पास पहुंचा और बोला, महाराज, ईश्वर के दर्शन हों न हों, पर इस बंदर से मुक्ति दिलाइए। संत मुस्कराए।
इसी तरह न जाने कितने तरह के बंदर हमारे मन में निरंतर उछल-कूद मचाते रहते हैं। इतने तरह के विचार हमारे भीतर उमड़ते-घुमड़ते रहते हैं कि हमें जीवन की असल बातों पर सोचने का मौका ही नहीं देते।
इतनी सारी सूचनाएं, इतनी सारी इच्छाएं, इतने सारे सपने हमने अपने जीवन के लिए पाल रखे हैं कि वे पीछा ही नहीं छोड़ते। हर समय, सोते-जागते हमारी ख्वाहिशों के बंदर हमारे भीतर उधम मचाते रहते हैं। अगर विचारों पर नियंत्रण और संयम सीख लें, तो वे बंदर भी शांत हो जाएंगे।