इनायत शाह और बुल्ले शाह गुरु-शिष्य प्रेम को लेकर कई लोककथाएं प्रचलित हैं। इनमें से एक किस्सा यह भी है कि कैसे गुरु अपने शिष्य को दीक्षा देने से पूर्व परखते हैं। एक दिन इनायत शाह के पास बगीचे में बुल्ले शाह पहुंचे। उस समय शाह इनायत बगीचे में अपने कार्य करने में इतने व्यस्त थे कि उन्हें बुल्ले शाह के आने का पता ही न लगा। बुल्ले शाह ने उनका ध्यान अपनी तरफ करने के लिए अपने आध्यात्मिक अभ्यास की शक्ति से परमात्मा का नाम लेकर आमों की ओर देखा तो पेड़ों से आम गिरने लगे।

इनायत शाह ने जब देखा कि सारे आम गिर रहे हैं तो उन्होंने अपना ध्यान बुल्ले शाह की तरफ किया और पूछा, ‘क्या ये आम आपने तोड़े हैं?’ बुल्ले शाह ने कहा, ‘हुजूर, न तो मैं पेड़ पर चढ़ा, और न ही मैंने पत्थर फेंके, फिर भला मैं कैसे आम तोड़ सकता हूं।’
इनायत शाह ने बुल्ले शाह को ऊपर से नीचे तक अच्छी तरह से देखा और मुस्करा कर कहा, ‘अरे तू चोर भी है और चतुर भी।’ बुल्ले शाह फौरन इनायत शाह के चरणों में गिर पड़े। उन्हें लग गया कि उनकी चोरी पकड़ी गई है। बुल्ले शाह ने उन्हें अपना नाम बताया और कहा, ‘मैं रब को पाना चाहता हूं। क्या आप मेरी मदद कर सकेंगे।’

इनायत शाह को समझते देर नहीं लगी कि यह कोई सामान्य व्यक्ति नहीं है। उन्होंने मन से उसे अपनाने का तय कर लिया और कहा-
‘बुल्लिआ रब दा की पौणा, एधरों पुटणा ते ओधर लाउणा।’

बहुत कम शब्दों में इनायत शाह ने बुल्ले शाह को रूहानियत का सार समझा दिया कि मन को संसार की तरफ से हटाकर परमात्मा की ओर मोड़ देने से रब मिल जाता है। बुल्ले शाह ने भी गुरु की यह प्रथम दीक्षा गांठ बांध ली और सदा के लिए अपने गुरु के मुरीद बन गए।