बुद्ध के जीवन से जुड़ी प्रसिद्ध कथा है। बुद्ध के विचारों से उस समय के समाज में बहुत सारे लोग असहज महसूस करते थे। चूंकि बुद्ध ईश्वर की सत्ता को नहीं मानते थे, व्यक्ति की सत्ता को मानते थे। इसलिए उस समय बहुत सारे लोगों को लगता था कि बुद्ध धार्मिक रीति-रिवाजों को नष्ट करने पर तुले हैं। बहुत सारे लोगों में इस विचार का दबाव था। वे इस विचार के प्रबल प्रभाव और भावावेश में थे। ऐसे ही एक व्यक्ति का बुद्ध से सामना हुआ, तो वह भावावेश में कांपने लगा। उसके मुंह से निकला कुछ नहीं। वह बोल कुछ नहीं पाया, बस बुद्ध के सामने थूक कर चला गया।
बुद्ध ने कहा- खुद का संज्ञान होने पर भाषा भी देती है साथ
उस व्यक्ति के इस व्यवहार से आनंद को बहुत क्रोध आया। उन्होंने बुद्ध से पूछा, आपने उस व्यक्ति को कुछ कहा क्यों नहीं। बुद्ध मुस्कराए और कहा, वह बहुत कुछ कहना चाहता था। लंबे समय से किसी वैचारिक झंझावात से जूझ रहा था। उसके पास कहने को बहुत कुछ था, पर कह नहीं पाया। भाषा ने उसका साथ नहीं दिया, इसलिए वह बस थूक कर चला गया। जब वह अपने संज्ञान में लौटेगा, तब भाषा भी उसका साथ देगी।
वही हुआ।
वह व्यक्ति दूसरे दिन वापस लौटा और सीधा बुद्ध के चरणों में गिर पड़ा। उसने अपने किए की माफी मांगी। वह पश्चात्ताप से भरा हुआ था। उसने बताया कि जबसे वह बुद्ध के साथ दुर्व्यवहार करके गया था, तबसे चैन से रह नहीं पाया था।
बुद्ध से अपने किए की माफी मांगने के बाद वह अब हल्का महसूस कर रहा था। भावावेश में कोई व्यक्ति कुछ गलत कर बैठता है, तो उसका आवेश शांत पड़ जाता है। उस व्यक्ति का भी आवेश समाप्त हो गया था।
बुद्ध ने आनंद की तरफ देखा। आनंद ने गर्दन झुका ली। वे समझ गए थे कि गलती करने से बड़ी बात है, उस गलती का अहसास हो जाना। इससे व्यक्ति का मन निर्मल होने लगता है।