वे अद्वितीय फुटबाल खिलाड़ी थे, जो गोल रक्षक यानी ‘डिफेंडर’ के रूप में खेलते थे। विपक्षी के दागे गोल को वे बड़ी निपुणता से बेअसर कर देते थे। इसलिए उन्हें ‘चीन की दीवार’ कहा जाने लगा था। वे इसी उपनाम से पहचाने जाने लगे थे। अपने खेल जीवन का अधिकांश समय उन्होंने मोहन बागान के साथ बिताया था।

उनका जन्म भोजेश्वर, फरीदपुर, बंगाल प्रेसीडेंसी (अब बांग्लादेश में) में हुआ था। उनके पिता एक व्यवसायी थे। जब वे छोटे थे तभी उनका परिवार कोलकाता चला गया था। वहीं बेनियाटोला में सारदा चरण आर्यन इंस्टीट्यूशन में उनका दाखिला करा दिया गया।

ग्यारह साल की उम्र में कुमारटुली एथलेटिक क्लब के लिए खेलना शुरू किया था

बचपन से ही वे हाकी और टेनिस के साथ-साथ फुटबाल और क्रिकेट भी खेलते थे। बाद में उन्होंने कई बार मोहन बागान क्रिकेट टीम का प्रतिनिधित्व किया। वे महान फुटबाल खिलाड़ी शिबदास भादुड़ी से प्रभावित हुए और फुटबाल को अपना करिअर बनाने का फैसला किया। उन्होंने ग्यारह साल की उम्र में कुमारटुली एथलेटिक क्लब के लिए खेलना शुरू किया था।

वहां खेलते हुए उन्हें कालीचरण मित्र ने देखा, जो भारतीय फुटबाल एसोसिएशन (आइएफए) के शासी निकाय के भारतीय सदस्य थे। वे पाल की अनूठी रक्षा तकनीकों की पहचान करने वाले पहले व्यक्ति थे। फिर पाल ने कलकत्ता के विद्यासागर कालेज में दाखिला लिया और तत्कालीन प्रधानाचार्य सारदारंजन रे के करीब आए, जिन्हें बंगाल में क्रिकेट का जनक माना जाता है।

उन्हें सोलह वर्ष की उम्र में मोहन बागान ने रेवरेंड सुधीर चटर्जी की जगह अनुबंधित किया था। टीम में शामिल होने के बाद, उन्होंने 1914 में कोलकाता फुटबाल लीग सेकेंड डिवीजन में खेला। मोहन बागान ने पहली बार टूर्नामेंट खेला और तीसरे स्थान पर रही। उन्होंने प्रथम श्रेणी का अपना पहला मैच 15 मई, 1915 को कोलकाता क्रिकेट एवं फुटबाल क्लब के खिलाफ खेला, जो अनीर्णीत रहा।

अपने शुरुआती खेलों में नंगे पैर खेलते हुए उन्हें अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा था, मगर उन्होंने रक्षण क्षेत्र में अपना एकाधिकार स्थापित किया। ब्रिटिश टीम ‘ब्लैक वाच’ के खिलाफ खेलते हुए उनके रक्षण में योगदान की सबने प्रशंसा की थी। 1921 में, गोष्ठ पाल को मोहन बागान फुटबाल टीम का कप्तान बना दिया गया।

अगले पांच वर्षों तक वे क्लब के कप्तान रहे। 1923 में उन्हें महान उपलब्धि हासिल हुई, जब मोहन बागान ने मुंबई में रोवर्स कप में भाग लिया और फाइनल में पहुंचने के लिए कई अंग्रेजी टीमों को हराया। ऐसा करने वाली वह पहली भारतीय टीम थी, लेकिन हार गई।

उसी वर्ष, उन्होंने सीएफएल की ‘रिटर्न लीग’ में पहली बार कोलकाता क्रिकेट एवं फुटबाल क्लब को हराया, जो देश का सबसे पुराना फुटबाल क्लब था, जिसमें यूरोपीय टीम भी थी। 1925 में, मोहन बागान एशिया के सबसे पुराने फुटबाल टूर्नामेंट, डूरंड कप में आमंत्रित होने वाली पहली नागरिक भारतीय टीम बन गई, जहां वे सेमीफाइनल में शेरवुड फारेस्टर्स से हार गए।

मोहन बागान के लिए खेलने के अलावा, पाल को 1920 में इसके संस्थापक अध्यक्ष सुरेश चंद्र चौधरी द्वारा नवगठित ईस्ट बंगाल क्लब में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया था। वे टीम में शामिल हुए और हरक्यूलिस कप, एक ‘सेवन-ए-साइड’ प्रतियोगिता में कप्तान के रूप में दिखाई दिए, और वे खिताब जीतने में कामयाब रहे। उन्होंने 1936 में फुटबाल से संन्यास ले लिया। सेवानिवृत्ति के बाद गोष्ठ पाल मोहन बागान से जुड़े रहे और टीम के लिए खिलाड़ियों की खोज की।

फुटबाल के अलावा, पाल मूक युग की फिल्म ‘गौरी शंकर’ में भी दिखाई दिए, जो आनंदमोहन राय द्वारा निर्देशित, नेशनल पिक्चर्स लिमिटेड द्वारा निर्मित और 26 अक्तूबर, 1932 को प्रदर्शित हुई थी।