वे डाक्टरी की डिग्री हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला थीं। जिस जमाने में महिलाओं की शिक्षा को लेकर जागरूकता नहीं थी, उस समय विदेश जाकर डाक्टरी की पढ़ाई करना अपने आप में एक मिसाल थी। आनंदी गोपाल जोशी का जन्म महाराष्ट्र के थाणे में एक पारंपरिक मराठी परिवार में हुआ था। उनके बचपन का नाम यमुना था। उनका परिवार रूढ़िवादी था, जो केवल संस्कृत पढ़ना जानता था।

उनके पिता जमींदार थे। मगर ब्रिटिश शासन द्वारा महाराष्ट्र में जमींदारी प्रथा समाप्त किए जाने के बाद उनके परिवार की स्थिति बेहद खराब हो गई। यमुना का विवाह नौ वर्ष की उम्र में ही उनसे बीस वर्ष बड़े एक विधुर से कर दिया गया। विवाह के बाद उनका नाम आनंदी हो गया। उन्होंने मात्र चौदह साल की उम्र में एक बेटे को जन्म दिया। पर दुर्भाग्यवश उचित चिकित्सा के अभाव में दस दिनों के भीतर ही उसका देहांत हो गया। इस घटना से उन्हें गहरा सदमा पहुंचा। वे भीतर ही भीतर टूट-सी गईं। आनंदी गोपाल जोशी ने कुछ दिनों बाद अपने आपको संभाला और खुद डाक्टर बनने का निश्चय किया। वे चिकित्सा के अभाव में असमय होने वाली मौतों को रोकना चाहती थीं।

उस समय भारत में ऐलोपैथी चिकित्सा की पढ़ाई की कोई व्यवस्था नहीं थी। इसके लिए विदेश जाना पड़ता था। आनंदी गोपाल जोशी द्वारा अचानक लिए गए फैसले से परिजन और आस-पड़ोस में विरोध की लहर उठ खड़ी हुई। उनकी काफी आलोचना भी की गई। तब उन्होंने सिरमपुर कालेज के हाल में लोगों को जमा करके ऐलान किया कि ‘मैं केवल डाक्टरी की उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए अमेरिका जा रही हूं। मेरा इरादा न तो धर्म बदलने का है और न वहां नौकरी करने का। मेरा मकसद भारत में रह कर यहां के लोगों की सेवा करने का है, क्योंकि भारत में एक भी महिला डाक्टर नहीं है, जिसके चलते असमय ही बहुत-सी महिलाओं और बच्चों की मौत हो जाती है।’

आनंदी गोपाल जोशी के भाषण का रूढ़िवादी लोगों पर व्यापक असर हुआ और पूरे देश से उनकी डाक्टरी की पढ़ाई के लिए मदद देने के लिए पेशकश की गई। पूरे भारत से उन्हें सहायता मिलने लगी। वायसराय ने भी उन्हें दो सौ रुपए की सहायता राशि भेजी। आनंदी जोशी ने अपने सोने के सभी आभूषण बेच दिए और कुछ यूरोपीय महिलाओं के साथ कोलकाता से न्यूयार्क के लिए रवाना हो गई। वीमेन्स कालेज आफ फिलाडेल्फिया में प्रवेश लिया। कालेज के सुपरिंटेंडेट और सचिव इस बात से बहुत प्रभावित थे कि एक लड़की सामाजिक विरोधों को झेलते हुए यहां इतनी दूर पढ़ने आई है। उन्होंने तीन साल की उनकी पढ़ाई के लिए छह सौ डालर की छात्रवृत्ति मंजूर कर दी।

आनंदी जोशी के पति गोपाल राव ने हर कदम पर उनका हौसला बढ़ाया। उन्नीस साल की उम्र में, 1886 में उन्होंने ने एमडी कर लिया। उनके डिग्री प्राप्त करने पर महारानी विक्टोरिया ने उन्हें बधाई-पत्र लिखा और भारत में उनका स्वागत एक नायिका की तरह किया गया। आनंदी जोशी 1886 के अंत में भारत लौट आईं और अल्बर्ट एडवर्ड अस्पताल, प्रिंसले स्टेट आफ कोल्हापुर में एक महिला डाक्टर के रूप में जिम्मेदारी संभाल ली। मगर कुछ ही दिनों बाद वे तपेदिक की शिकार हो गईं, जिससे मात्र इक्कीस साल की उम्र में उनका निधन हो गया। कैरोलिन विल्स ने 1888 में उनकी जीवनी लिखी। इस जीवनी के आधार पर दूरदर्शन पर ‘आनंदी गोपाल’ नाम से हिंदी टीवी धारावाहिक का प्रसारण किया गया था।