कहते हैं, जल ही जीवन है। गरमी में तो इसकी अहमियत रोज ही पता चलती है। जल को जीवन इसलिए कहा गया है कि हमारे शरीर का सत्तर फीसद तत्त्व जल से ही बना है। यानी जल की मात्रा असंतुलित होने, अशुद्ध या गलत तरीके से पानी पीने आदि के कारण शरीर में कई बीमारियां पैदा हो जाती हैं।

जल को लेकर पिछले कुछ सालों में बहुत गहन शोध हुए हैं। उन अध्ययनों में पाया गया है कि पानी के पास जबर्दस्त याददाश्त होती है। वह पृथ्वी का सबसे संवेदनशील तत्त्व है। पानी बर्तन के हिसाब से अपना स्वभाव बदल लेता है। यहां तक कि उसे किस भावना के साथ रखा या पीने के लिए उठाया जाता है, उसका भी उसके गुणों पर प्रभाव पड़ता है। इसलिए पानी केवल प्यास बुझाने या रोजमर्रा के कामों में इस्तेमाल की वस्तु नहीं, उसे किस रूप में व्यवहार करना है, इसका भी ध्यान रखना बहुत जरूरी है।

पुराने समय में कुएं, तालाबों के पानी के संरक्षण के लिए बकायदा नियाम बने हुए थे। पीने के पानी को रखने के बर्तन से लेकर उसे उठाने-रखने पीने तक के नियम बने हुए थे। मगर आज बोतलबंद पानी का जमाना है। पानी के साथ हमारा क्या व्यवहार हो, इस पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत ही नहीं समझी जाती।

इसी का नतीजा है कि आज जलजनित बीमारियों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। अगर हम ठीक से पानी को बरतना सीख जाएं, तो बहुत सारी बीमारियों से अपने आप मुक्ति मिल सकती है। गर्मी के मौसम में चूंकि पानी का उपयोग बढ़ जाता है, इस समय पानी के इस्तेमाल पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत होती है।

बर्तन के चुनाव में सावधानी
यों अब बहुत सारे लोग इस बात को समझने लगे हैं कि प्लास्टिक के बर्तन में रखा पानी सेहत की दृष्टि से अच्छा नहीं होता। इसलिए वे कांच, तांबे, स्टील या फिर अन्य धातु के बर्तनों में पीने का पानी रखने लगे हैं। पानी बनाने वाली कई कंपनियां भी कांच की बोतलों में पानी बेचने लगी हैं। मगर आमतौर पर लोग प्लास्टिक की बोतलों का ही उपयोग करते देखे जाते हैं।

कई लोग तो बोतलबंद पानी की खाली बोतलों का भी कई दिन तक इस्तेमाल करते रहते हैं, जबकि उन पर साफ लिखा होता है कि उपयोग करने के बाद बोतल को मसल कर फेंक दें। अब तो कई शोध आ चुके हैं कि प्लास्टिक के बर्तनों में रखा पानी न सिर्फ सेहत के लिए हानिकारक होता है, बल्कि उसका हमारी जैविक बनावट पर भी कुछ प्रभाव पड़ता है। मन भी प्रभावित होता है। इसलिए पीने का पानी रखने और पीने के लिए इस्तेमाल होने वाले बर्तनों का चुनाव सावधानी से करें।

पानी रखने के लिए धातु के बर्तनों का ही इस्तेमाल करें। हो सके तो तांबे के बर्तन रखें। तांबे में रखे पानी पर हमारे वातावरण में पैदा होने वाली चुंबकीय तरंगों का सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और वह पानी हमारे शरीर और मन दोनों के लिए लाभकारी साबित होता है। गरमी के मौसम में बहुत सारे लोग मिट्टी के बर्तन में पानी रखते हैं, ताकि वह ठंडा रह सके। यह अच्छा उपाय है।

मगर जब भी मिट्टी का बर्तन खरीदें, मिट्टी की शुद्धता का जरूर ध्यान रखें। फिर उस बर्तन को साफ हाथों से ही छुएं और कुछ-कुछ दिनों पर राख वगैरह से या नारियल के रेशे से रगड़ कर धोएं। उन्हें धोने में साबुन का उपयोग न करें। पानी पीने के लिए भी धातु के बर्तन का ही उपयोग करें।

कुछ खाकर पीएं पानी
गरमी के मौसम में प्यास बहुत लगती है। जब भी बाहर से आते हैं तो गला सूखने लगता है। ऐसे में कई लोग फटाफट फ्रीज से पानी की बोतल निकालते हैं और गटागट पी जाते हैं। यह ठीक नहीं। दरअसल, जब हम धूप में चलते-फिरते, काम करते हैं, तो केवल हमारा गला नहीं सूखता, शरीर के हर हिस्से से पानी का वास्पन होता है। इस तरह भोजन नली भी कुछ सिकुड़ जाती है।

ऐसे में पानी पीते हैं, तो छाती में जोर का धक्का लगता है, दर्द उठता है। इसलिए जब भी पानी पीएं, पहले कुछ मीठा अवश्य खा लें। मीठे से मुंह में लार बनती है और इस तरह भोजन नली को चिकनाई पहुंचती है। फिर पानी पीने पर धक्का नहीं लगता। पानी पीते समय इस बात का भी ध्यान रखें कि खड़े-खड़े कभी पानी न पीएं। बैठ कर और शांत मना से धीरे-धीरे पीएं। ध्यान रखें कि जैसा व्यवहार आप पानी के साथ करेंगे, वैसा ही वह आपके साथ करेगा।

तापमान का ध्यान
गरमी के मौसम में ठंडा पानी पीना अच्छा लगता है। मगर यह स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा नहीं माना जाता। कायदे से कमरे के तापमान में रखा हुआ पानी ही पीना चाहिए। अगर ठंडा पानी पीना है, तो सुराही या घड़े का पानी ठीक रहता है। फ्रिज का पानी पीना है, तो उसमें सामान्य तापमान का पानी मिला कर ही पीएं, नहीं तो न केवल आपके शरीर में हानिकारक बैक्टीरिया पैदा होने का खतरा रहेगा, बल्कि पाचनतंत्र भी मंद पड़ जाएगा।
(यह लेख सिर्फ सामान्य जानकारी और जागरूकता के लिए है। उपचार या स्वास्थ्य संबंधी सलाह के लिए विशेषज्ञ की मदद लें।)