महापुरुषों के जीवन में छोटी-बड़ी कई ऐसी घटनाएं होती हैं, जिनसे बड़ी सीख मिलती है। यहां तक कि कई महापुरुषों ने खुद भी माना है कि उन्हें अपने जीवन की साधारण घटनाओं से असाधारण सीख मिली है। ऐसा ही एक प्रसंग स्वामी विवेकानंद से जुड़ा है, जिसका उल्लेख कई जगहों पर मिलता है।

हुआ कुछ यूं कि एक बार बनारस में स्वामी जी मां दुर्गा के मंदिर से निकल रहे थे कि तभी वहां मौजूद बहुत सारे बंदरों ने उन्हें घेर लिया। वे उनसे प्रसाद छिनने लगे। वे उनके नजदीक आने लगे और उन्हें डराने भी लगे। स्वामी जी यह सब देख काफी भयभीत हो गए और खुद को बचाने के लिए भागने लगे। पर सारे बंदर तो जैसे उनके पीछे ही पड़ गए। स्वामी जी को लग गया कि शायद उनका डरकर भागना कारगर नहीं होने वाला। पर इस मुश्किल घड़ी में वे करें तो क्या करें, उन्हें यह बिल्कुल समझ नहीं आ रहा था।

पास खड़ा एक वृद्ध संन्यासी यह सब देख रहा था। संन्यासी ने स्वामी जी को रोका और कहा- रुको! डरो मत, उनका सामना करो और देखो कि क्या होता है। वृद्ध संन्यासी की यह बात सुनकर स्वामी जी तुरंत पलटे और बंदरों के तरफ बढ़ने लगे।

उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा कि उनके ऐसा करते ही सभी बंदर उनका पीछा करना छोड़ वहां से भाग खड़े हुए। स्वामी जी ने वृद्ध संन्यासी के प्रति इस सलाह के लिए आभार जताया।

स्वामी जी के जीवन की यह घटना ऐसी थी जिसे वे बाद में भी नहीं भूले। अपने एक संबोधन में उन्होंने इस घटना का जिक्र करते हुए वृद्ध संन्यासी की वह सलाह दोहराई कि अगर आप किसी चीज से भयभीत हो रहे हों तो उससे भागे नहीं बल्कि पलट कर उसका सामना करें। सीख यह कि जीवन में मुसीबतों का सामना साहस के साथ करना चाहिए न कि उससे भयभीत होना चाहिए। निर्भीकता जीवन की बड़ी से बड़ी मुसीबत का समाधान है।