बारिश और उमस भरी गर्मी के कारण आंखों में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। आंखों के संक्रमण को आई फ्लू, कंजेक्टिवाइटिस या देसी भाषा में ‘आंख आना’ कहते हैं। इस मौसम में आइ फ्लू के मरीजों की संख्या बढ़ने लगी है। इस बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति की आंखें लाल हो जाती हैं, उनमें खुजली होती रहती है और लगातार दुखती रहती हैं। बारिश और उमस भरी गर्मी में कंजेक्टिवाइटिस का प्रकोप शुरू हो गया है। सरकारी अस्पतालों से लेकर निजी आंखों के अस्पतालों में आइ फ्लू से ग्रस्त मरीजों की संख्या प्रतिदिन बढ़ती देखी जा रही है। नेत्र विशेषज्ञों का कहना है कि गर्मी के मौसम में आंखें काफी ज्यादा प्रभावित होती हैं। जून से लेकर अक्तूबर तक कंजेक्टिवाइटिस वायरस ज्यादा सक्रिय होते हैं।
डाक्टर बताते हैं कि आंखों के बाहरी पर्दे यानी सफेद भाग पर वायरस का संक्रमण होता है। इसके चलते आंखों में लाली और अन्य परेशानी शुरू हो जाती है। आइ फ्लू पैंतीस फीसद वायरस से और पैंसठ फीसद बैक्टीरिया तथा अन्य कारणों से होता है। वायरस के कारण होने वाले आइ फ्लू का प्रसार तेजी से होता है। यह एक से दूसरे व्यक्तियों में तेजी से फैलता है। आइ फ्लू के वायरस और बैक्टीरिया गंदी अंगुलियों, धूल-धुंआ, तलाब, गंदे पानी में नहाने और मक्खियों के जरिए फैलते हैं। इसके अलावा इसके वायरस हवा के जरिए भी फैलते हैं।
यह संक्रमण इतना तेज होता है कि पीड़ित व्यक्ति के पास से आंखों में देखने पर भी दूसरा व्यक्ति इससे संक्रमित हो जाता है। पीड़ित व्यक्ति के तौलिए, कपड़े, रूमाल, चश्मा आदि के उपयोग से भी यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुंच जाता है। घर के किसी एक सदस्य को संक्रमण होने पर दूसरे सदस्य को आइ फ्लू होने की संभावना ज्यादा होती है।
आइ फ्लू सभी उम्र के लोगों को प्रभावित कर सकता है, लेकिन यह बच्चों और बुजुर्गों के बीच अधिक फैलता है। बच्चे आमतौर पर आंखों की साफ-सफाई का ध्यान नहीं रखते, बरसात के पानी में खेलते हैं, एक-दूसरे के संपर्क में अधिक रहते हैं, इसलिए उनमें इसके फैलने का खतरा अधिक होता है। बुजुर्गों की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है, इसलिए उनमें इसके फैलने की आशंका अधिक रहती है।
लक्षण
आंखों में संक्रमण के कई कारण हो सकते हैं। यह बीमारी बैक्टीरिया और वायरस दोनों के कारण होती है। इससे ग्रस्त व्यक्ति की आंखें लाल हो जाती हैं, जिसके कारण पढ़ने में परेशानी के अलावा आंखों में जलन होती है। अक्सर लोग इसे सामान्य बीमारी मानते हैं, लेकिन ज्यादा लापरवाही बरतने से कार्निया क्षतिग्रस्त हो जाती है और मरीज अंधेपन का शिकार हो जाता है।
- आंखों के संक्रमण के विभिन्न लक्षणों में सूजन एक आम लक्षण है।
- आंख के सफेद हिस्से और पलक के भीतरी हिस्से में लाली आ जाती है।
- आंखों से लगातार पानी गिरता रहता है।
- आंखों में खुजली होती रहती है।
- देखने में धुंधलापन आ जाता है और आंखों में जलन बनी रहती है।
- आंखों से मोटा, पीले रंग का पदार्थ लगातार निकलता रहता है। आंखों में कीचड़ इतना ज्यादा होता है कि सुबह उठने पर आंखों की पलकें एक-दूसरे से चिपक-सी जाती हैं।
- प्रकाश संवेदनशीलता आ जाती है यानी रोशनी में देखना मुश्किल हो जाता है। तेज धूप या रोशनी में देखने में काफी परेशानी होती है।
बचाव
अगर आंखों में संक्रमण हो जाए यानी आंख आ जाए, तो निम्नलिखित उपाय अवश्य करते रहना चाहिए- - साफ रूई को उबाल कर ठंडा किए पानी में भिगो कर आंखों का कीचड़ साफ करें।
- आंखों पर ज्यादा से ज्यादा ठंडे पानी के छींटें मारें।
- आंखों में गुलाब जल डालने से भी फायदा पहुंचता है।
- धूप का चश्मा पहन कर रखें।
- इसके साथ-साथ डाक्टर की सलाह पर कोई दवा आंखों में डालें, ताकि संवेदनशील आंखों पर किसी भी तरह का कोई दुष्प्रभाव न हो।
घरेलू उपचार
दूर-दराज के गांवों में, जहां चिकित्सा सुविधाएं आज की तरह उपलब्ध नहीं होती थीं, वहां आंख आने पर लोग देसी इलाज का सहारा लिया करते थे। उन नुस्खों में से आज भी कई बहुत कारगर साबित होते हैं। उनमें से कुछ को आप भी आजमा सकते हैं। - नीम के पत्तों को अच्छी तरह धोने के बाद साफ पानी में उबालें और जब पानी उबल कर आधा रह जाए तो उसे महीन कपड़े से अच्छी तरह छान लें। इसी पानी में रूई भिगो कर थोड़ी-थीड़ी देर पर आंखों को साफ करते रहें। नीम में बैक्टीरिया नाशक गुण होता है, इसलिए आंखों को आराम मिलना शुरू हो जाता है।
- रात को सोते वक्त हल्के गरम चावल में एक चम्मच गाय का घी डालें और दोनों आंखों पर रख कर एक कपड़े से बांध कर कम से कम एक घंटे तक रखें या बांधे हुए ही सो जाएं। इस तरह आंखों का संक्रमण दूर होगा और आंखों की पलकें आपस में चिपकेंगी नहीं।
(यह लेख सिर्फ सामान्य जानकारी और जागरूकता के लिए है। उपचार या स्वास्थ्य संबंधी सलाह के लिए विशेषज्ञ की मदद लें।)