संतोष उत्सुक
एक सुबह अन्नू अपने घर की छत पर टहल रही थी। पिछली रात हल्की बारिश हो चुकी थी। अब मौसम साफ था और धूप निकल आई थी। अचानक उसकी नजर छत के कोने में पड़े जानवर के बच्चे पर पड़ी। बच्चा हिल नहीं रहा था। उसे लगा शायद बंदर मरे हुए बच्चे को वहां फेंक गया होगा। वह पुकारने लगी, मम्मी मम्मी देखो यहां किसी जानवर का बच्चा पड़ा है। मम्मी नीचे रसोई में सब्जी बना रही थी, वह ऊपर आई और दोनों छत के कोने में गर्इं। वहां बिल्ली का छोटा-सा बच्चा अपने चारों पांव सिकोड़े हुए, पोटली-सा बना पड़ा हुआ था। वह डरा हुआ लग रहा था। अजीब सी आवाजें निकाल रहा था। अन्नू की मम्मी ने ध्यान दिया- अभी उसे म्याऊं म्याऊं करना भी नहीं आता था। उन्होंने प्यार से बच्चे को उठाया, उसकी पीठ पर हाथ फेरा, मगर उसका आवाजें निकालना जारी था। वह अवश्य ही अपनी मां को याद कर रहा था। अन्नू की मम्मी ने कहा, शायद हमारे घर के आसपास बिल्ली ने बच्चे दिए होंगे। मगर यह इतनी ऊंची छत पर पहुंचा कैसे। जरूर इसे बंदर ने कहीं से उठाया होगा और यहां उसके हाथ से छूट कर गिर गया।
अन्नू बोली, हमें इसकी मम्मी को खोजना चाहिए। हो सकता है, आसपास हो और इसके भाई-बहन भी हों। उसने अपने नन्हे हाथों में बिल्ली के बच्चे को लेकर छत पर बने स्टोर के अंदर रख दिया और बाहर से दरवाजा लगा दिया, ताकि बंदर को न दिखे। इस बीच उसकी मम्मी एक कटोरे में दूध ले आई और अन्नू को देते हुए कहा कि इसे पिलाओ। उसने बिल्ली के बच्चे को दूध दिया, मगर उसने पिया नहीं। फिर दूध फर्श पर डाला तो भी उसने मुश्किल से कुछ बूंदें ही चाटी। ऐसा लग रहा था वह बहुत उदास है, उसकी मम्मी को खोजना जरूरी था। उसका भाई शेखू खेल कर आया तो अन्नू ने उसे बिल्ली के बच्चे के बारे में बताया। अब अन्नू और शेखू दोनों बिल्ली के बच्चे को हाथ में उठा कर उसकी मां को ढूंढ़ने निकले। उनके घर के पास एक तालाब था, उसके आसपास देखा, मगर बिल्ली नहीं मिली। फिर एक और बच्चे ने उन्हें बताया कि कुछ दूरी पर एक मकान बन रहा है शायद वहां बिल्ली ने बच्चे दे रखे हों। वे तीनों बच्चे वहां भी गए, लेकिन वहां भी बिल्ली या बिल्ली के बच्चे नहीं मिले।
अब शाम होने लगी थी। वे बिल्ली के बच्चे को घर ले आए और उन्होंने उसे बोतल से दूध पिलाने की कोशिश की। बच्चा आवाजें निकालते-निकालते सो गया।
अगले दिन रविवार था। शेखू अन्नू जल्दी उठ गए थे। वे चाहते थे कि बच्चे को उसकी मम्मी मिल जाए। उन्होंने फिर खोजना शुरू किया। काफी ढूंढा लेकिन सफलता नहीं मिली। उन्होंने पापा के दोस्त, पशु चिकित्सक से बात की। उन्हें बिल्ली के बच्चे के बारे बताया कि छोटा है, अभी उसे म्याऊं म्याऊं बोलना भी नहीं आता। उन्हें क्या करना चाहिए। पशु चिकित्सक ने समझाया कि ऐसा माना जाता है कि बिल्लियां इंसानी हाथ लगने के बाद अपने बच्चों को स्वीकार नहीं करतीं। वैसे भी आप लोग इसकी मम्मी को काफी ढूंढ़ चुके हैं। अच्छा तो यही है कि आप इसे स्वयं पाल लें। थोड़ा बड़ा होने पर जब यह समझदार हो जाएगा तब आप इसे छोड़ सकते हैं। धीरे-धीरे यह आत्मनिर्भर हो जाएगा। शेखू और अन्नू ने अपनी मम्मी से बात की। उन्होंने बिल्ली के बच्चे को घर पर पालने की इजाजत दे दी। दोनों बच्चों ने उसका ध्यान रखा। समय समय पर अपने डॉक्टर अंकल से भी पूछते रहे। बिल्ली का बच्चा, शेखू, अन्नू और उनके मम्मी-पापा के साथ खेलते-खेलते कब बड़ा हो गया, पता ही नहीं चला। उनके दिमाग में यह बात कभी नहीं आई कि उसे कहीं छोड़ आएं। वह अब उनके घर का सदस्य जो बन गया था।