हरिवंश राय बच्चन हिंदी के जाने-माने कवि और रचनाकार थे। ये अपनी प्रसिद्ध कृति ‘मधुशाला’ के लिए जाने जाते हैं। बच्चन की गिनती हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय कवियों में होती है। इनकी कविताएं आज भी लोगों की जुबान पर हैं।

बचपन और पढ़ाई
इनका जन्म इलाहाबाद के सटे प्रतापगढ़ जिले के एक छोटे से गांव में एक कायस्थ परिवार मे हुआ था। इनका पूरा नाम हरिवंश राय श्रीवास्तव बच्चन था। इन्होंने शुुरुआती पढ़ाई उर्दू में की। 1938 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एम.ए की डिग्री ली।

नौकरी और शादी
वे कई सालों तक लगभग 1952 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी विभाग के प्रवक्ता भी रहे। फिर 1952 में पढ़ने के लिए इंग्लैंड चले गए। वहां कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य में पीएचडी की। यही से उन्होंने अपने नाम के साथ ‘बच्चन’ का प्रयोग शुरू कर दिया। भारत वापस लौट कर कुछ समय के लिए उन्होंने आल इंडिया रेडियो के साथ काम किया। 1955 में भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के हिंदी विभाग में हिंदी विशेषज्ञ के तौर पर काम करने लगे। इस पद पर वे सेवानिवृत्ती तक रहे। इनकी दो शादियां हुईं। 1926 में हरिवंश राय की शादी श्यामा से हुई, जिनकी टीबी की बीमारी के बाद 1936 में निधन हो गया। 1941 में बच्चन की शादी तेजी सूरी से हुई। इनके दो बेटे हुए, एक अमिताभ बच्चन और दूसरा अजिताभ बच्चन। आज की तारीख में अमिताभ बच्चन किसी पहचान के मोहताज नहीं है। वे हिंदी सिनेमा के महानायक हैं।

कई भाषाओं में पारंगत
वे कई हिंदुस्तानी बोलियों अवधी, हिंदी, उर्दू के साथ-साथ फारसी में पारंगत थे। वह फारसी और उर्दू कविता से प्रभावित थे, विशेषकर उमर खैय्याम से। सामान्य बोलचाल की भाषा को कविता की गरिमा प्रदान करने का श्रेय बच्चन को ही जाता है।

प्रमुख कृतियां
हरिवंश राय बच्चन छायावाद काल के प्रमुख कवियों मे से एक रहे। 1935 में छपी ‘मधुशाला’ को ही उनकी पहली किताब माना जाता है। ‘मधुशाला’ इनकी प्रसिद्ध कृति थी। ‘मधुशाला’ के साथ ही बच्चन साहित्य जगत पर छा गए और वे काब्य प्रेमियों के लोकप्रिय कवि बन गए। इस कृति की सफलता के बाद इसी विचार को भुनाते हुए उन्होंने लगातार दो साल तक 1936 और 1937 में क्रमश: ‘मधुबाला’ और ‘मधुकलश’ नामक काव्य संग्रह जारी किए लेकिन वे इतनी ख्याति नहीं पा सके। अपने पचास वर्ष से अधिक समय के कलाकर्म में उन्होंने 24 काव्य संग्रह, 4 आत्मकथाएं और 29 विविध लेखन संग्रह तैयार किए। बच्चन की कविताओं का उपयोग फिल्मों और संगीत में भी खूब हुआ। उनकी रचना ‘अग्निपथ’ का उपयोग 1990 की फिल्म ‘अग्निपथ’ में किया गया है।

पुरस्कार और सम्मान
इन्हें ‘दो चट्टाने’ (कविता संग्रह) के लिए 1968 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इन्हें ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’ और ‘एफ्रो एशियाई सम्मेलन’ का ‘कमल पुरस्कार’ मिला। बिरला फाउंडेशन ने आत्मकथा ‘क्या भूलूं क्या याद करूं मैं’ के लिए ‘सरस्वती सम्मान’ भी दिया। 1976 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से नवाजा था। वे राज्यसभा के मनोनीत सदस्य भी रहे। निधन : पंचानवे वर्ष की अवस्था में मुंबई में इनका निधन 18 जनवरी, 2003 में हुआ।