भारत मे जहां रोटी के लिए आपको गेहूं, जौ, मक्का, बाजरा, चावल का विकल्प मिलेगा, वहीं अन्य देशों में इतने विकल्प की कोई गुंजाइश नहीं है। भारत के अनेक राज्यों में रोटी के आकार, प्रकार, स्वाद और नाम में बदलाव मिलने लगते हैं। वैसे तो उत्तर भारत में गेंहू की पैदावार अधिक है, इसलिए यहां रोटी खाने का चलन ज्यादा है, लेकिन जिन राज्यों में पानी की वजह से चावल अधिक होता है, वहां चावल से बनी रोटियां खाई जाती हैं। जैसे दक्षिण भारत में रोटी कम खाने को मिलेगी, लेकिन आप यहां रोटी के रूप में उत्तपम और डोसा पाएंगे। वहां अधिकतर सादे डोसे ही खाए जाते हैं, मसाला डोसा, जिसमे आलू भरते हैं, उसका चलन काफी कम है।
आप सबसे ऊपर कश्मीर में जाइए तो आपको लवासे, तेलुरु, खाताइयां, कतलम मिलेंगी। बेशक इनके नाम में बहुत फर्क है, लेकिन बनती सभी तंदूर में हैं। इन्हें मैदे और घी के साथ बनाया जाता है। यहां घरों में बनने वाली रोटियां थोड़ी अलग हैं। भारत में नीचे की तरफ आएंगे, तो आपको रोटियां नाममात्र की मिलेंगी। उत्तर भारत तो रोटियों के लिए इतना नामी है कि यहां बगैर रोटी किसी भी समय का खाना पूरा नहीं होता। नाश्ते में पराठे, तो दोपहर और रात में फुलकी या चपाती। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में तो रोटियों का बाजार है। पुराने लखनऊ के नक्खास में इसे ‘रोटी बाजार’ के नाम से जानते हैं। पुराने लखनऊ में रहने वाले अधिकतर लोगों के घरों में आए दिन शाम के खाने की रोटियां इसी बाजार से आती हैं। खाने के लिए कोई भी व्यंजन बना लिया, रोटी की जहमत न उठाते हुए बाजार से तोल कर रोटी ले आए। यहां कुछ दुकानों पर किलो के हिसाब से रोटियां मिलती हैं, और कुछ दुकानों में अब प्रति नग के हिसाब से बिकने लगी हैं।
नवाबी खानपान के लिए मशहूर लखनऊ में रोटी की किस्में भी खूब हैं। वैसे तो शीरमाल भारत से लेकर पाकिस्तान तक में बनता है, लेकिन कहा जाता है कि लखनऊ जैसा शीरमाल कहीं का नहीं है। वजह है इसके बनाने के तरीके में अंतर। नाम से पता चलता है कि शीर यानी शीरा चीनी से बना हुआ। यह रोटी मीठी होती है, लेकिन लखनऊ के पुराने कारीगरों ने इसे मीठा नहीं किया। आप दिल्ली और अन्य कुछ शहरों में शीरमाल मीठा पाएंगे, लेकिन लखनऊ का हल्का मीठा होता है, जिसका स्वाद बस जुबान में छूकर निकल जाता है। इसे दूध, घी और चीनी में मिलाते हैं, तंदूर में रख कर केसर के पानी के छींटे लगाते हैं। इसके अलावा बाकरखानी, नान, खमीरी रोटी, रूमाली रोटी, कुलचा, धनिया रोटी खास है।
लखनऊ के इतिहासकार योगेश प्रवीन बताते हैं कि अवध में रोटी का पुराना इतिहास है। जब दिल्ली उजड़ी तो फैजाबाद के बाद लखनऊ में इधर-उधर का खानपान शामिल हुआ। शाही व्यंजनों से लेकर रोटियों में भी खूब प्रयोग हुए। लखनऊ में रोटी बाजार में पिछले कई सालों से रोटी का काम कर रहे शफू शीरमाल वाले बताते हैं कि उनकी यह दसवीं पीढ़ी रोटी का काम कर रही है। वे खुद पांच तरह की रोटियां बनाते हैं, जिसमें मिस्सी, खमीरी, शीरमाल, रूमाली और बाकरखानी शामिल हैं। शफू कहते हैं कि दिल्ली कानपुर में भी शीरमाल बनती है, लेकिन मीठी होने से ज्यादा मशहूर नहीं है। सुबह नाश्ते के साथ खाया जाने वाला कुलचा भी यहां काफी पसंद किया जाता है।
कहा जाता है कि चपाती का नाम दो हाथों के बीच आटे की लोई को चपत लगाने से बनी रोटी से आया। उल्टे तवे पर बनने वाली रूमाल सरीखी पतली सी रोटी होती है, जिसे तहा कर जेब में रखा जा सकता है। रूमाली रोटी को लेकर एक भ्रांति भी है कि नवाबों ने इसका उपयोग खाने के बाद हाथ पोंछने के लिए किया था, लेकिन इसका कहीं साक्ष्य नहीं मिलता है। बाकरखानी रोटी को लोग नाश्ते में खाना पसंद करते हैं। यह लखनऊ के अलावा कश्मीर में भी बहुत लोकप्रिय है। बाकरखानी दो तरह की होती है। छोटी बाकरखानी मीठी होती है, जिसे नाश्ते में खाते हैं और बड़ी बाकरखानी छह सौ से सात सौ ग्राम की होती है, जिसे कोरमे के साथ खाया जाता है।
इसी तरह गुजरात में रोटियों से बना चिवड़ा और महाराष्ट्र में रोटी लड्डू भी काफी पसंद किया जाता है। मुहर्रम के दिनों में रोटी से चोंगे बनाए जाते हैं, जिनका काफी महत्त्व है। ये रोटी की तरह ही बनते हैं, बस इसमें ऊपर से उंगलियों के सहारे थोड़ा दबाकर आकृति बनाई जाती है और घी और नारियल के लच्छे से सजाते हैं। उर्स और मेलों में हलवे के साथ बिकने वाली एक-एक मीटर की रोटियों से एक साथ दस लोगों का पेट भरता है। यह रोटी कश्मीर में भी काफी प्रचलित है। रोटी और चपाती में काफी अंतर भी है। चपाती को कभी अंगारे पर नहीं सेकते, जबकि रोटियां सीधे आग के हवाले कर दी जाती हैं।
