नाना फडणवीस अठारहवीं सदी के सबसे प्रतिभाशाली राजनेता थे। वे पुणे में पेशवा प्रशासन के दौरान मराठा साम्राज्य के मंत्री और राजनेता थे। उन्होंने मराठा साम्राज्य की शक्ति को एक नेतृत्व के नीचे एकत्र करने का सफल प्रयास किया था।

नाना फडणवीस का वास्तविक नाम बालाजी जनार्दन भानु था। उनका जन्म महाराष्ट्र के सतारा में हुआ था। सभी लोग प्यार से उन्हें ‘नाना’ कह कर पुकारते थे। नाना बालाजी महादजी भानु के पोते थे और परंपरा के मुताबिक, नाना फडणवीस को अपने दादा से यह उपाधि विरासत में मिली थी। पेशवा नाना को अपने परिवार का सदस्य मानते थे, इसलिए उन्होंने नाना को भी अपने पुत्रों की तरह शिक्षा और राजनीति प्रशिक्षण दिया था। बाद में वे पेशवा के वित्तमंत्री बने।

पेशवा का शासनकाल

पानीपत की तीसरी लड़ाई से 1761 में, नाना पुणे भाग गए और नई ऊंचाइयों पर पहुंचने का प्रयास करने लगे। इसके फलस्वरूप वे मराठा परिसंघ के मामलों का निर्देशन करने वाले अग्रणी व्यक्ति बन गए, हालांकि वे खुद कभी सैनिक नहीं थे। यह एक राजनीतिक अस्थिरता का दौर था, क्योंकि एक पेशवा तेजी से दूसरे से सफल हो रहा था और सत्ता की शक्ति के कई विवादास्पद स्थानांतरण हो रहे थे। आंतरिक विघटन और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की बढ़ती ताकत के बीच नाना फडणवीस ने मराठा परिसंघ को एक साथ रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

राज्य संचालन नीति

पानीपत के युद्ध के बाद मराठा साम्राज्य पूरी तरह से चरमरा गया था। राज्य की आर्थिक व्यवस्था पूरी तरह से तहस नहस हो चुकी थी। राज्य में बड़े स्तर पर पैसों का गबन हो रहा था। ऐसे में राज्य की कमान पेशवा माधवराव के हाथ में थी। इन हालात में नाना फडणवीस ने पेशवा को सहारा दिया। उन्होंने शासन प्रबंध को फिर से दुरुस्त करने में अहम भूमिका निभाई। नाना फडणवीस के मार्गदर्शन में धीरे-धीरे पेशवा ने राज्य के राजकोश को पुन: बहाल कर लिया। इतना ही नहीं, उनके दिशानिर्देशों में मराठा सेना ने हैदराबाद के निजाम पर जीत हासिल की, जिसने मराठा साम्राज्य के सम्मान और प्रतिष्ठा को फिर कायम किया, जिसे उन्होंने पानीपत के युद्ध के बाद खो दिया था।

अंग्रेजों ने भी लोहा माना

नाना फडणवीस दूरदर्शी थे, वे इस बात को अच्छी तरह जानते थे कि मराठों के सबसे बड़े दुश्मन अंग्रेजी और फ्रांसीसी व्यापारी हैं। इसलिए अंग्रेजों पर नजर रखने के लिए उन्होंने जसूसों का एक विभाग बनाया था। लिहाजा, अंग्रेज भी जानते थे कि फडणवीस उनके लिए बड़ा खतरा हैं और उनके रहते वे मराठा साम्राज्य को तोड़ नहीं सकते। इसलिए उन्होंने कई बार फडणवीस को बदलने की बात पेशवा से कही, मगर ऐसा हो न सका। इसी बीच मराठा साम्राज्य के गद्दार शासक रघुनाथ राव ने एक बार फिर से पेशवा बनने की कोशिश की। इसके लिए उसने अंग्रेजी सेना की मदद ली और मराठों पर हमला बोल दिया। लेकिन नाना ने समझदारी दिखाते हुए निजाम और भोंसले से संधि कर ली। 1775 में मराठों और अंग्रेजों के बीच सूरत की संधि हुई, जिसके बाद भी अंग्रेजों ने कई बार मराठों को हराने की कोशिश की, लेकिन नाना की कूटनीति के आगे उनकी एक न चली और उन्हें हर बार मुंह की खानी पड़ी। नाना फडणवीस की चाहत किसी पद या उपाधि की नहीं थी, वे तो केवल मराठा साम्राज्य की उन्नति चाहते थे।

निधन : 13 मार्च, 1800 को नाना फडणवीस का पुणे में निधन हो गया। उनकी मृत्यु के साथ ही मराठा साम्राज्य का पतन शुरू हो गया।