मियां, अभी-अभी हमें इस देश में नई सदी लाने का दावा करने वाले महाप्रभुओं ने बताया है कि हमारा देश बड़ा विकसित हो गया है और हम अपने पड़ोसी देश चीन, जिसने आज तक हमारी नाक में दम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, से भी कहीं तेजी से विकास पथ पर भाग रहे हैं। हमें दुनिया का सबसे बड़ा विकास धावक कह सकते हैं। हम अपने बिवाइयां फटे पांवों और पीठ से सटे पेट को देख कर हैरत करते हैं कि ‘अरे, हम इतनी तेजी से भाग कर दुनिया में सबसे आगे हो गए और हमें खबर भी नहीं हुई?’
कल तक तो हमें भूख से मरने वाले देशों का सूचकांक बता रहा था कि हम इन भुखमरे देशों के ताज की मुकुट मणि हैं, आज अचानक यह अच्छे दिन आ गए के नारे कैसे उठने लगे? इस बात को कैसे भूलें कि कल तक जो योजनाबद्ध आर्थिक विकास की दृष्टि से एक विकासशील देश कहलाता था, उसे आज फिर संयुक्त राष्ट्र के विकास मूल्यांकन प्रकोष्ठ ने अल्प विकसित देश बना दिया? हां, विदेशी महानुभावों के दर्जा संस्थान इतनी दया दृष्टि हम पर अवश्य दिखाते हैं कि व्यापार की साख और सुविधा की दृष्टि से आपका देश बेहतर हो गया। लेकिन पहले यह निवेश विरोधी कानूनों की बंदिश हटाओ, निवेश से हम जितना चाहे कमा कर लाएं, उसकी लूट को अपने देश से ले जाने की खुली इजाजत दे दो और हड़ताल के अधिकार, श्रम हितैषी कानूनों का बोरिया बिस्तर बांधें, तभी वे आपके देश में निवेश नहीं करते।
लीजिए अपने ही देश में माल तैयार करो के नारे पिछले कई वर्षो से अंतरिक्ष में गूंजते रहे। लेकिन न अपने यहां कुछ बढ़िया बनाया जा सका, न बाहर का बना कुछ सस्ता आया। हम इंतजार में रहे और हवा में शब्द गूंजते रहे ‘वह न आएंगे पलट कर चाहे लाख हम बुलाएं’। देश में क्रांति करनी है, उद्योग धंधों को ही नहीं, कृषि को भी शीर्ष तक पहुंचाना है। हमारी हथेलियों तो क्या गमलों में भी सरसों नहीं जमती। बस एक ही भावना सिर पर सवार रहती है, न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी। नौ मन तेल लेने के लिए हमने विदेशों के द्वार खटखटाए, लेकिन जिस निवेश के लिए हमने अपनी आंखों के गलीचे बिछाए वह तो आया नहीं, हां, आए तो शेयर मंडियों के अग्रिम सौदों के उस्ताद आए, जिन्होंने ‘खाया-पीया कुछ नहीं गिलास तोड़ा बारह आना’ के अंदाज में लिया-दिया कुछ नहीं और अपनी कागजी लेन-देन से शेयर बाजार को उछाल आसमान तक पहुंचा दिया। लेकिन ऐसी ऊंचाई किस काम की? थोड़ी सी अफवाह पर ही तो वे मंडियां धड़ाम से फिर नीचे गिर जाती हैं और नीचे गिर जाते हैं हमारा कल्याण करने वाले निवेशकों के वायदे, जिनसे प्रेरित होकर हम अपनी पक्षाघात से पीड़ित उत्पादन प्रक्रिया में किसी हलचल की उम्मीद में बैठे रहते हैं। लेकिन फिर एक बात कह दें, क्यों देखते रहते हैं सितारों की तरफ हम, जब उनसे मुलाकात का वादा भी नहीं है।
अजी मियां, भूख के दिनों में इन रोमांटिक शेयरों पर मुंह न बिसूरिए। पूरा देश काम धाम छोड़ जुआ खेलने में लगा है या शर्तें लगा रहा है। इन्हीं की कृपा से कल के राजा आज रंक हो रहे हैं, और कल के रंक आज राजा। शर्तें लग रही हैं, क्रिकेट के नतीजों से लेकर मौसम के नतीजों तक। लोग काम-धाम छोड़ कर हाथ की लकीरें पट रहे हैं। कभी अच्छे खासे मेहनती लोगों का देश निठल्ले लोगों का देश बनता जा रहा है, क्योंकि वंचित मजदूर या किसान को स्वचालित मशीनें खा गर्इं। जो बचा वह सत्ता के दलालों ने निगल लिया। उत्पादन प्रक्रिया पर अरबपति व्यावसायिक घरानों ने कब्जा कर लिया, अपना देश एशिया में सबसे अधिक करोड़पतियों का देश बन गया। लेकिन मियां जी के इस जुमले के कान में कोई नहीं फुस-फुसाया कि ‘मियां जितने करोड़पतियों की संख्या इस देश में बढ़ी है, उससे दस गुना अधिक भुखमरों की संख्या बढ़ गई है।’
यहां संपन्नता के शीर्ष पर हरकत नजर आती है, क्योंकि अमीर और अमीर हो गया। उन करोड़ों गरीबी रेखा से नीचे जीने वालों का क्या हाल पूछते हो? उनका तो हर दिन मयस्सर होने वाला दिहाड़ी में एक जून भोजन भी पंचतारा गैर-सरकारी सेवा संस्थाओं की अनुकंपा से चलने वाली सस्ती रसोइयों की भेंट हो गया। ये रसोइयां ‘चार दिन की चांदनी और फिर अंधेरी रात है’ की तरह अपनी दया का जलवा दिखा कर बंद हो जाती हैं, लेकिन देश में भूखों, बेकारों और आत्महत्या के लिए तैयार होते दुखी जीवों की कतार निरंतर कम नहीं होती, बढ़ती जा रही है। इनका बेहतरी का सपना भयावह यथार्थ के झटके से बार-बार टूटता है। यह नींद भी कैसी नींद है? इतने वर्ष तक लोग फुटपाथ पर सोते थे, अब भी वहीं सोते हैं, लेकिन तब इन पत्थरों पर नींद आ जाती थी, क्योंकि उन दिनों सपने जवान थे और क्रांति और बदलाव की उम्मीद जिंदा।
लेकिन अब तो ऐसी नींद भी निरापद नहीं। क्लब घरों से निकलते नशे में धुत्त धनकुबेरों की वातानुकूलित आयातित गाड़ियां कब इन्हें कुचल कर निकल जाएं, क्या खबर? आधी रात को शिकार हो गए लोगों की मौत का कोई साक्षी नहीं मिलता। मिलते हैं तो फर्जी गवाह और सत्ता के दलाल। ये लोगों की पीड़ा की टोह में लगे रहते हैं। मिल जाए तो उसे अपनी जेब में समेट उसका मुआवजा हथियाने का पुण्य कर्म शुरू करते हैं।

