बिमल रॉय भारतीय सिनेमा के प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक थे। उन्हें सामाजिक और यथार्थवादी फिल्मों का अगुआ कहा जाता है। भारतीय सिनेमा जगत में उनका योगदान महत्त्वपूर्ण रहा। उनका जन्म ढाका (बांग्लादेश) में एक बंगाली जमींदार परिवार में हुआ था, जो तब ब्रिटिश भारत के पूर्वी बंगाल और असम प्रांत का हिस्सा था। फिल्मों में रुझान होने की वजह से वे कलकत्ता आ गए। वहीं से उनके फिल्मों का सफर शुरू हुआ।
करिअर
कलकत्ता के ‘न्यू थिएटर प्राइवेट लिमिटेड’ में बतौर कैमरा सहायक उन्होंने अपने करिअर की शुरुआत की। इस दौरान उन्होंने निर्देशक पीसी बरुआ की 1935 की हिट फिल्म ‘देवदास’ के लिए पब्लिसिटी फोटोग्राफर के रूप में भी सहयोग किया। 1940 और 1950 के दशक में रॉय समानांतर सिनेमा आंदोलन का हिस्सा थे। कोलकाता स्थित फिल्म उद्योग की हालत खराब होने पर रॉय अपनी टीम के साथ मुंबई चले गए और वहां से फिल्मों की नई शुरुआत की। 1952 में उन्होंने ‘बॉम्बे टॉकीज’ के लिए फिल्म ‘मां’ के साथ अपने करिअर की दुबारा शुरुआत की। बिमल रॉय ‘रोमांटिक-रियलिस्ट मेलोड्रामा’ फिल्मों के लिए प्रसिद्ध थे, जो मनोरंजक होते हुए महत्त्वपूर्ण सामाजिक मुद्दों पर आधारित थे।
‘मधुमती’ रही प्रेरणा
बिमल रॉय ने फिल्मों में निर्देशक से लेकर निर्माता, संपादक और सिनेमाटोग्राफर तक का काम किया। उनकी फिल्मों की सूची काफी लंबी है, जिनमें ‘दो बीघा जमीन’, ‘परिणीता’, ‘बिराज बहू’, ‘मधुमती’, ‘सुजाता’, ‘परख’, ‘बंदिनी’, ‘मां’, ‘देवदास’, ‘प्रेम पत्र’ आदि शामिल हैं। व्यावसायिक सिनेमा में उनकी ‘मधुमती’ काफी प्रभावशाली फिल्म साबित हुई। माना जाता है कि यह फिल्म भारतीय सिनेमा, टेलीविजन उद्योग और विश्व सिनेमा में पुनर्जन्म के विषय पर काम करने वाले लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत रही। फिल्म ‘कर्ज’ (1980) समेत कई फिल्में ‘मधुमती’ से प्रेरणा लेकर बनाई गई थी। 1958 में उन्हें फिल्म ‘मधुमती’ के लिए नौ फिल्म पुस्कार मिले। उनके नाम यह रेकॉर्ड करीब सैंतीस साल तक कायम रहा। इस फिल्म के लिए संगीतकार सलिल चौधरी की रची धुनें आज भी लोगों की जुबान पर हैं।
फिल्म पुरस्कार
बिमल रॉय ने अपने पूरे करियर में कई पुरस्कार जीते, जिनमें ग्यारह फिल्मफेयर पुरस्कार, दो राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और कान्स फिल्म महोत्सव का अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार शामिल हैं। 1959 में उन्हें ‘मधुमती’, 1960 में ‘सुजाता’ और 1961 में ‘परख’ और 1964 में फिल्म ‘बंदिनी’ के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ निर्देशन का फिल्म फेयर पुरस्कार मिला।
भारतीय सिनेमा और विश्व सिनेमा दोनों में ही बिमल रॉय का प्रभाव दूरगामी था। भारतीय सिनेमा में, उनका प्रभाव मुख्यधारा के व्यावसायिक हिंदी सिनेमा और उभरते हुए समांतर सिनेमा, दोनों पर था। उनकी फिल्म ‘दो बीघा जमीन’ (1953) कला और व्यावसायिक सिनेमा की सफलता वाली पहली फिल्म थी। 1953 में इस फिल्म ने कान्स फिल्म महोत्सव में अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीता था।
सम्मान
बिमल रॉय मेमोरियल ऐंड फिल्म सोसाइटी द्वारा 1997 से हर साल बिमल रॉय मेमोरियल ट्रॉफी प्रदान किया जाता है। यह पुरस्कार अनुभवी कलाकारों के साथ उन नए और युवा फिल्मकारों तथा लोगों को दिया जाता है, जिनका भारतीय सिनेमा में उल्लेखनीय योगदान रहा हो। 8 जनवरी, 2007 को बिमल रॉय के सम्मान में भारतीय डाक विभाग द्वारा एक डाक टिकट जारी किया गया था।
निधन : कैंसर के कारण मात्र छप्पन साल की उम्र में उनका निधन हो गया।
