जब सड़कें सूनी होती हैं तो संसद आवारा हो जाती है। यह नारा देने वाले और संसद से लेकर सड़क तक लोक चेतना की अलख जगाने वाले डॉक्टर राम मनोहर लोहिया को भारत में समाजवादी विचारों के जनक के रूप में देखा जाता है। बराबरी रहित और समाजवेशी समाज बनाने के अपने सिद्धांतों के कारण वे भारतीय राजनीति के हर खेमे में सम्मानित हैं। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के अकबरपुर में हुआ था। लोहिया के पिता हीरालाल पेशे से अध्यापक और गांधीवादी थे। ढाई साल की उम्र में ही उनकी माता (चंदा देवी) का देहांत हो गया। इसके बाद उनके परिवार की सहायिका सरयूदेई और उनकी दादी ने ही उन्हें पाला। उनके पिता गांधी के अनुयायी थे और जब भी वे गांधी से मिलने जाते थे तब लोहिया को भी साथ ले जाते थे। इस वजह से उन पर गांधी के विचारों का बहुत गहरा असर पड़ा।

शिक्षा
राम मनोहर लोहिया टंडन पाठशाला में चौथी तक पढ़ाई करने के बाद विश्वेश्वरनाथ हाईस्कूल में दाखिल हुए। उन्होंने 1925 में मैट्रिक की परीक्षा दी और 61 फीसद नंबर लाकर कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया। इसके बाद इंटर काशी विश्वविद्यालय से किया। फिर 1929 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से उन्होंने स्नातक किया और पीएचडी करने के लिए बर्लिन विश्वविद्यालय चले गए। वहां उन्होंने जर्मन भाषा सीखी और उन्हें शैक्षणिक प्रदर्शन के लिए वजीफा भी मिला।

भारत वापसी
लोहिया 1933 में जर्मनी से उच्च शिक्षा पूरी करने के बाद भारत वापस आ गए। इसके बाद अगले साल 1934 में आचार्य नरेंद्र देव की अध्यक्षता में समाजवादी पार्टी के गठन का निर्णय लिया गया जिसमें लोहिया ने समाजवादी आंदोलन की रूपरेखा रखी। 1935 में जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में लखनऊ में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ जहां लोहिया को परराष्ट्र विभाग का मंत्री नियुक्त किया गया जिसके कारण उन्हें इलाहाबाद आना पड़ा। फिर 1938 में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी में लोहिया राष्ट्रीय कार्यकारणी के सदस्य चुने गए। उन्होंने कांग्रेस के परराष्ट्र विभाग के मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।

स्वतंत्रता आंदोलन और गिरफ्तारियां
लोहिया को सरकारी संस्थाओं का बहिष्कार करने के लिए 1939 में पहली बार गिरफ्तार किया गया। इसके बाद 1940 में ‘सत्याग्रह नाउ’ नामक लेख लिखने पर फिर से गिरफ्तार कर लिए गए। उन्हें दिसंबर 1941 में रिहा कर दिया गया। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 1942 में भी उन्हें जेल की सजा हुई। उनके विचारोत्तेजक भाषणों व लेखों का असर स्वतंत्रता संग्राम में खासा रहा। वे लोगों में चेतना लाने में कामयाब हो रहे थे।

भारत छोड़ो आंदोलन
भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जब गांधी सहित कांग्रेस के बड़े नेता गिरफ्तार कर लिए गए थे तब लोहिया ने भूमिगत रहकर आंदोलन चलाया। भूमिगत रहते हुए ‘जंग जू आगे बढ़ो, क्रांति की तैयारी करो, आजाद राज्य कैसे बने’ जैसी पुस्तिकाएं लिखीं। लेकिन 1944 में उन्हें मुंबई से गिरफ्तार कर लिया गया। ‘गोवा मुक्ति आंदोलन’ के दौरान उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया गया। वे स्वतंत्रता आंदोलन के लिए आगे भी संघर्षरत रहे। 29 सितंबर को बेलगांव में लोहिया को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद 1947 को सोशलिस्ट पार्टी की कार्यकारिणी की बैठक में तटस्थ रहने का निर्णय लिया गया।

आजादी के बाद
राम मनोहर लोहिया ने आजादी के बाद भी राष्ट्र के पुननिर्माण में अपना आंदोलनकारी तेवर बरकरार रखा। नेहरू के खिलाफ आवाज उठाने से भी परहेज नहीं किया। उन्होंने सवाल किया कि एक गरीब देश के प्रधानमंत्री पर एक दिन में 25000 रुपए क्यों खर्च किए जा रहे हैं। उस समय भारतीय जनता की एक दिन की औसत आमदनी 3 आना थी। उन्होंने जातिगत व्यवस्था, अमीर-गरीब में खाई, लैंगिक भेदभाव सहित हर तरह की गैरबरारबरी की पुरजोर मुखालफत की।

निधन
लोहिया को नई दिल्ली के विलिंग्डन अस्पताल में 30 सितंबर 1967 को पौरुष ग्रंथि के ऑपरेशन के लिए भर्ती किया गया था। जहां 12 अक्तूबर 1967 को उनका देहांत 57 वर्ष की आयु में हो गया। विलिंग्डन अस्पताल को अब राम मनोहर लोहिया अस्पताल के नाम से जाना जाता है।