भैयाजी आज बहुत खुश थे, पूरे चार साल के इंतजार के बाद कल अपने दिल की बात बाउजी से बोली थी तो थोड़े बहुत बम-विस्फोट के बाद बाउजी मान गए थे और नंदिनी और उनका सपना जीत गया था। बाउजी ने तो एक बार फिर से जीत लिया था भैयाजी को। भैयाजी खुशी में उछलते हुए फेसबुक पर ही अपनी खुशी का ऐलान करना चाहते थे पर बाउजी की आज्ञा थी कि ‘इसक तो कर लिया लल्ला अपने मन से, जे ब्याह की घोसना तो हम कर दें।’
बाउजी की बात तो कोई नहीं टालता तो भैयाजी कैसे टालते!
इधर बाउजी ने हां की और उधर भैयाजी चले नंदिनी को अपने दिल की बात बताने।
सात विधान सभा वाली लोकसभा सीट पर अपने बाउजी की जीत की सफल रणनीति बनाने वाले भैयाजी उर्फ अभिलाष आज फिर से वही नए नवेले शर्मीले अभिलाष जैसे लग रहे थे जिन्होंने जब मुंबई में एक प्रतिष्ठित प्रबंधन संस्थान में दाखिला लिया था। और वहीं टकरा गए थे छोटे शहर की गलियों के सपने और बड़े शहर में पली बढ़ी फैशन की मल्लिका नंदिनी के ख्वाब से। जहां अभिलाष एक कठोर अनुशासन वाले राजनीतिक परिवार के इकलौते ख्वाब थे तो वहीं नंदिनी, अपने पिता का सपना पूरा करने के लिए एमबीए करने आई थी।
एक सूरज की धूप में रूप लेकर बढ़ा था तो एक चांद की शीतलता में, जहां पर उसने बड़ों के होंठों पर तेज धूप महसूस ही नहीं की थी। एक गुलाबों में रहता हुआ पर कांटों से बचता हुआ अपनी जिंदगी के उधेड़बुन में था कि थोड़े दिन वह यहां है, फिर तो उसे अपने पिता की ही राजनीतिक दुकान की मालाओं को ही बेचने जाना है। उनके पिता माने बाउजी का इस बार का लोकसभा का टिकट पक्का था क्योंकि इस बार सत्ताधारी दल के हारने की बहुत संभावना थी।
पंद्रह बरस तक एक ही दल की सरकार के बाद इस बार विपक्षी दल का डंका खूब जोरों पर था और बढ़ती हुई तकनीक का फायदा जहां एक तरफ विपक्षी दल उठा रहा था तो वहीं बाउजी का दल अभी सरकार के किए गए कामों के आधार पर तली हुई मछली खाने की आस संजोए था। पर आंकड़े इस बार इस मछली में कांटे अधिक दे रहे थे। आंकड़ों के बाजीगर इस बार दल के पक्ष में नहीं थे, उस पर सालोंसाल गरीबी का न कम होना, विकास का उतना न होना आदि आदि सब बाउजी की पार्टी की सरकार के जाने की भविष्यवाणी सालों पहले करने लगे थे और उस पर लड़कियों पर बढ़ते बलात्कार और भ्रष्टाचार के मामलों ने भी हालत पतली कर दी थी।
ऐसे में बाउजी का कहना था कि डूबते जहाज की इस बार सवारी में जो पार उतर गए तो सालोंसाल कोई हिला नहीं पाएगा। और बाउजी को अपने दल की इस बर्बादी पर रोटी सेंकने से कोई भी नहीं रोक सकता था, बाउजी ने अपनी तैयारी चुनाव के दो-तीन साल पहले से ही शुरू कर दी थी। और अभिलाष को भी ताकीद कर दी थी कि उसके आगे की राह क्या है, पर अभिलाष उर्फ भैयाजी! उनका सपना क्या था? इससे बाउजी को क्या?
अभिलाष भैयाजी के नाम से प्रसिद्ध थे, बहुत ही कम उम्र में राजनीति की समझ आने लगी थी, पर उन्हें तो कुछ और ही आकर्षित करता था। जब से नेट का जमाना आया था तब से वे राजनीति की गलियों से नैन मटक्का छोड़कर नेट और प्रबंधन की तरफ आकर्षित हो गए थे। वही जाति का गणित, इधर तोड़ना, उधर तोड़ना उन्हें पसंद न था। उन्हें तो खुला आसमान बुलाता था, पर भैयाजी का लेबल ऐसा लगा था कि अभिलाष तो कहीं खो गया था। ऐसे भैयाजी के संबोधन से दूर उन्हें अभिलाष बनाया नंदिनी ने। सांवले रंग की साधारण नंदिनी ने न जाने एक दिन कौन सी दुखती रग पर हाथ धरा कि भैयाजी की इमेज धुल गई। उस दिन सूरज एकदम बसंती होकर निकला था।
‘नंदिनी, तुम नहीं जानती तुमने क्या किया?’ एक दिन अभिलाष ने भावुक होकर कहा था।
‘कुछ नहीं कहना अभिलाष, तुम एक चोला पहने थे, मैंने चोला हटाया है और तुम्हें तुमसे मिलवाया है?’ नंदिनी ने उसका हाथ अपनी हथेलियों में बंद करते हुए कहा।
‘नंदिनी, क्या तुम मेरा हाथ इसी तरह अपनी हथेलियों में थाम सकती हो?’
कांप गई थी नंदिनी! उसने हाथ छोड़ दिया था।
‘पता नहीं!’
बाउजी के किस्से जुहू पर भी अभिलाष को घेरे रहते थे, क्या ऐसे में उसने कभी भी अपनी मां का जिक्र किया नंदिनी से? क्या जरूरत थी? मां ही तो थी? घर और बाउजी और उसके बाद समय मिले तो उसके सारे काम करती थी। पर मां उसके ख्यालों में इस समय क्यों थी क्योंकि इस समय तो नंदिनी के हाथों की उसे सबसे ज्यादा जरूरत थी, उसके लिए उसे मां की जरूरत होगी ही। हां उसके इस कोने को उसकी मां ही अपने कोने की धूप देकर घर में जगह दिलवा सकती है।
‘मैं बहुत ही साधारण परिवार की लड़की हूं, पापा सेना में हैं। उनका हर जगह ट्रांसफर होता रहा है, अभिलाष, नेताओं के बारे में उनका विचार कुछ सकारात्मक नहीं है! हो सकता है कि तुमसे कोई समस्या न हो, पर तुम्हारे पिता? पता नहीं वे उनके बारे में क्या सोचें?’
‘अरे नहीं, बाउजी नहीं कुछ कहेंगे और मां वह तो देखना’
‘ठीक है, देखेंगे।’ ढलता हुआ सूरज अपने सिंदूर से न केवल समंदर बल्कि उन दोनों के होंठों पर भी स्वीकृति का सिंदूरी रंग देकर जा रहा था। इधर सिंदूर लहरों पर बिखर रहा था तो वहीं नंदिनी की देह और आत्मा का समर्पण बरसों की बनी बनाई अगढ़ मूर्ति को एक नया ही रूप दे रहा था।
नंदिनी के प्यार की कूंची से जो अभिलाष का चित्र बना उसमें वह खोजता रहा भैयाजी का निशान, पर उसे नहीं मिला। ऐसा क्या कर दिया नंदिनी ने! पर दो साल तक उनके प्रेम के निर्बाध रूप से चलने के बाद जैसे उन दोनों के सपनों पर एक सुनामी का वार हुआ।
कभी भी चुनाव की घोषणा हो सकती थी, बाउजी का कहना था कि पढ़ने के बाद नौकरी का जितना शौक था, पूरा हो चुका और अब किसी और के लिए मार्केटिंग करने से बेहतर है चुनाव की ब्रांडिंग और मार्केटिंग की जाए। और ऐसा कहना बाउजी का गलत नहीं था क्योंकि इस चुनाव में परंपरागत सभी तरीके विफल हो रहे थे और चुनाव में विपक्षी दल एक से बढ़ कर एक तकनीक के साथ आ रहा था, नए-नए नारे आ रहे थे और उनके दल का परंपरागत वोटबैंक विपक्षी दल की तरफ लुढ़का जा रहा था।
इधर वे थे पुराने, पचास की उम्र पार करने जा रहे थे और एक तरफ उनके विरोध में कड़े मुकाबले में उनसे युवा प्रत्याशी था और वह था सोशल मीडिया का धुरंधर। और इस बार का चुनाव प्रचार भी हाइटेक था, हर रोज कोई न कोई डिजिटल रथ आ जाता। और उनका वोटबैंक उधर जा रहा था। भैयाजी को बुलाने की मांग, उनका कैडर कर रहा था। इधर भैयाजी नंदिनी के साथ भूल भी चुके थे कि उनका असली रूप तो भैयाजी का है, अभिलाष तो नंदिनी का दिया हुआ है! अब क्या करेंगे? जाना तो होगा ही। पर नंदिनी?
एक बार हिम्मत करके मां से बात की तो मां ने सबसे पहले घर आने की सलाह दी। फिर ही कुछ करने की। क्या हो सकता था, इतनी हिम्मत न थी कि नंदिनी के साथ कोर्ट मैरिज करके जा सके! आखिर बाउजी की राजनीतिक साख भी तो थी, नंदिनी का उधर बुरा हाल था। आखिर वह परेशान क्यों थी, अभिलाष ने तो कुछ भी छिपाया नहीं था, सब कुछ तो बता दिया था। फिर?
जो जुहू बीच उनके पहले मिलन का गवाह बना था वही अब उनके बिछड़ने और मिलने के वादे का गवाह बनने जा रहा था
‘नंदिनी, मेरा विश्वास रखना! मैं आऊंगा। बाउजी को मनाकर तुम्हें अपने घर की लक्ष्मी बनाकर ले जाऊंगा।’
‘तुम पर भरोसा है, मेरा भरोसा न टूटने देना।’
‘हां यार, अब तो बात राजनीति और सेना के मेल की है। आखिर कैसे एक का भरोसा टूटने दिया जाएगा, देश और नई रचना तो दोनों के मिलन से ही होगी न।’
‘लो, बन गए तुम नेता अभी से ही।’
‘नहीं यार, मैं नेता नहीं हूं।’
घर आकर अभिलाष उर्फ भैयाजी का नया ही रूप देखा लोगों ने। कुछ तो बदले थे भैयाजी। यह तो पहले वाले भैयाजी नहीं थे। भैयाजी अब पहले से परिपक्व लगने लगे थे, भैयाजी अब गंभीर शायरी करने लगे थे। कुछ तो बहुत अलग हो गए थे भैयाजी।
तो इस कस्बेनुमा सात विधानसभा सीटों वाली लोकसभा की सीट का गणित बाउजी को बहुत डरा रहा था। उन्हें डर था कि कहीं उनका पैसा डूब न जाए। बाउजी की पूरी प्रतिष्ठा दांव पर थी। पूरे पांच साल किस तरह हाथपैर जोड़ने के बाद उन्हें टिकट मिला था। और जितना सरल उन्हें लग रहा था उतना सरल अब कुछ रह नहीं गया था। फेसबुक और ट्विटर ने परंपरागत वोटर को भी मुख्यधारा में ला दिया था। वह भी सवाल करने लगा था।
‘काहे भैया, जे न भओ इत्ते सालन में?’
‘जे सरक को ठेका तो पिछरे ही साल दओ गओ हथो, तो अब! जा साल फिर?’
तो कुछ बहुत ही स्मार्ट हो गए थे।
‘जा काम में तो आरटीआई ने बताओ है कि इत्तो ही बजट हथो, फिर जाको बजट इत्तो कैसे पहुंचो?’
सूचना का अधिकार अधिनियम, उन्हीं की सरकार के लिए एक बैताल बनता जा रहा था। ऐसे में अभिलाष ही उन्हें एक रोशनी की किरण लगता था, उनका मैनेजमेंट पढ़ा हुआ लड़का! कुछ न कुछ तो करेगा ही। ऐसे ही उनके घर पहुंचने के दूसरे दिन ही उनके कंधे पर हाथ धरते हुए बाउजी ने कहा-
‘मैं तुम्हारे भरोसे हूं, मुझे निराश न करना।’
‘बाउजी! ये क्या कह रहे हैं, ये तो मेरा फर्ज है।’
‘बेटा, यह वैतरणी पार करा दो, इसके बदले में तुम जो भी कहोगे वह करूंगा।’
‘बाउजी! देखिएगा, मुकर न जाना!’
‘सवाल ही नहीं।’
ढलते हुए सूरज के साथ जैसे भैयाजी बने अभिलाष ने मुंबई में नंदिनी के पास संदेसा भिजवाया और सूरज ने उसके संदेशे के साथ फिर से सिंदूर घोल दिया।
विरोधी पार्टी की रणनीति का अनुसरण करते हुए भैयाजी जुट गए अपने बाउजी के लिए विजय की रणनीति बनाने में। उन्होंने केवल एक ही बात को ध्यान अपने लोगों को ध्यान में रखकर प्रचार करने के लिए कहा कि दिल्ली की गद्दी पर कोई भी बैठे, आखिर यहां पर तो आपको यहीं का व्यक्ति चाहिए, जो आपके शहर में पला बढ़ा हो, जिसे आपके शहर की नस-नस पता हो। आपका अपना ही यहां से आपका प्रतिनिधित्व करने वाला होना चाहिए। विरोधी दल ने किसी बाहर से आए हुए को टिकट दिया था। रणनीति बनाते समय भैयाजी ने उनके असंतुष्ट कार्यकतार्ओं को भी ध्यान में रखा।
भैयाजी ने इस चुनाव अभियान को नंदिनी को पाने का एक रास्ता समझा। हर अभियान, हर नारा उन्होंने नंदिनी को केंद्र में रखकर बनाया। जैसे ही वे कोई रणनीति बनाते और कमजोर लगती, वैसे ही उन्हें नंदिनी किसी और के गले में वरमाला डालते हुए दिखती। नंदिनी के हाथों की वरमाला वाले सीन को उन्होंने पॉज पर डाला और कहा ‘मैं ही आऊंगा यहां।’
इधर चुनाव प्रचार जोर पकड़ रहा था, उनके दल के राष्ट्रीय नेता इस बार जनता का रुख भांप कर ज्यादा सक्रिय नहीं थे। आ गया कोई तो ठीक नहीं तो केवल विरोधी दल के ही प्रशंसक इन दिनों उड़ रहे थे। फेसबुक और ट्विटर पर बाढ़ आ गई थी। इधर भैयाजी विरोधी दलों के नेताओं की हर रणनीति का अनुसरण करते हुए बाउजी के छवि निर्माण में लगे हुए थे। और अपनी मार्केटिंग रणनीति का प्रयोग करते हुए उन्होंने बाउजी को अब एक बिकाऊ उत्पाद में बदल दिया था। जहां हर क्षेत्र में विरोधी दल के जीतने की प्रबल संभावना थी, इस क्षेत्र में बाउजी को एक गंभीर प्रत्याशी माना जाने लगा था। और बाउजी कहते थे कि पोलिटिक्स इज द गेम आॅफ पर्सेप्शन।
परसेप्शन में बाउजी को जिताकर जैसे ही भैयाजी कमरे में घुसते उन्हें नंदिनी के मैसेज एक ठंडी हवा के झोंके से लगते। और वे गुनगुना उठते
‘आखिर तुम्हें आना है, जरा देर लगेगी।’ वे सपने में लजाई हुई और अपने में सिमटी हुई नंदिनी को देखते। फिर जैसे ही शादी का सपना आता वैसे ही बाउजी की सांसद की कुर्सी भी ध्यान आती। और उन्हें बाउजी और वे खुद दोनों ही एक शादी के मंडप में बैठे हुए दिखाई देते, एक की दुल्हन दूसरे के कंधे पर आती हुई दिखती।
भैयाजी पसीना पसीना होकर बैठ जाते, जैसे ही बाउजी की मतगणना में उनके पीछे चलने की सूचना आती और नंदिनी भी उनसे हाथ छुड़ाकर उतना ही दूर हो जाती। भैयाजी मतगणना का महत्त्व समझ गए थे। नंदिनी से सम्मानजनक तरीके से ब्याह करने के लिए अब मतगणना में हर गणित अपने ही पक्ष में करना था। जातिगत गणित की चालें जहां बाउजी अपने तरीके से चल रहे थे वहीं युवाओं और उदासीन वोटर को अपने पक्ष में करने के लिए प्रचार के तमाम फंडे युवा टीम अपना रही थी। क्षेत्र के कल्याण के लिए सपने वे हर पार्क में जाकर मॉर्निंग वाक करने वालों को कफ सीरप की तरह पिलाते। हर परेशानी को कोई अपना ही समझ सकता है, कह कर हल करने का नुस्खा देते। उधर हर इस तरह के मैनेजमेंट के साथ भैयाजी अपने दिल के मैनेजमेंट को भी समझाते।
चुनाव नजदीक आते ही चुनाव प्रचार में तेजी आ गई और दूरी आ गई नंदिनी और अभिलाष के संवादों में पर सपने में हर सफल चुनावी अभियान के बाद वह नंदिनी को और नजदीक कर लेता। भैयाजी ने रातों को सोना भी बंद कर दिया था कि कहीं सपना भी कोई नकारात्मक न आ जाए और नंदिनी उससे दूर हो जाए। आखिरकार उसकी मेहनत और बाउजी का गणित रंग लाया। युवा जोश के साथ एक अपने की रणनीति जीत गई और जीत गया उसका और नंदिनी का प्यार।
बाउजी की पार्टी जहां बुरी तरह हारी वहीं इस हार में नायक बनकर उभरे बाउजी, जिन्होंने रिकॉर्ड मतों से जीत दर्ज की। विरोधी पार्टी की लहर में जहां कई किले ध्वस्त हुए वहां बाउजी ने अपने परिवार के लिए एक बुरे समय में जीत दर्ज कर किला और छावनी बना लिया। इधर रिकॉर्ड टूटे और बाउजी का साम्राज्य बन गया।
उस रात दिल्ली से शराब आई, युवा जोश को जमकर बहकने दिया गया, नदियां बहीं और उस नदी में न बहते हुए भैयाजी ने बाउजी से अपने दिल की बात कह दी।
जीत की खुमारी अभी उतर भी न पाई थी कि यह एक और धमाका कर दिया।
‘का कह रहे हो लल्ला, जे।’
‘बाउजी, आप ने ही इस जीत के बाद मेरी मांग पूरा करने का वादा किया था न!’
‘सही है लल्ला, पर हम तो सोचे हथे कि तुम कोई कार, बाइक जैसन कुच्छो मांग्यो, पर जे जात से बाहर ब्याह? और तापे एकदम साधारन लोग, जे लल्ला, कौन मुसीबत में डाल दयो। जे तिवारीजी भी कह रहे, तुम्हें पता दोई दोई सांसद है बा घरे से होएं पराई पार्टी के लोग हैं तो अपएं लोग ही! अपईं जात के और सबसे बढ़कर चार चार भाई! जे मौडिया के तो एकउ भाई नहीं! चरो जात न सही, पर जे न लल्ला!’
‘बाउजी! आप अपनी जुबान से फिर रहे हैं, मैं मर जाऊंगा नंदिनी के बिना।’
बिना पिए भी जिस तरह का जुनून भैयाजी की आंखों में दिखा वह बाउजी को सिहराने के लिए काफी था। काफी जद्दोजहद के बाद इस नतीजे पर पहुंचा गया कि जहां भैयाजी की सादी ऊ सेना वाले की बिटिया के संग होगी तो वहीं अपने तिवारीजी की बिटिया की मांग में भतीजा सिंदूर डालेगा।
भैयाजी अपनी नंदिनी को अपना बनाने के सपनों में खो रहे थे, आज वह सांसद की कुर्सी पर बाउजी को बैठाकर अपनी जिंदगी को पा चुके थे। उधर बाउजी और चाचाजी में सातों विधानसभा सीटों में कौन से भतीजे को कौन सी सीट पर तिवारीजी के सहयोग से जितवाया जाए, उस पर बात करने के लिए मीटिंग की व्यवस्था की जा रही थी।
‘अब ऊ सेना वाले के भरोसे तो न जीते जा सकते चुनाव, परिवार वालन के लएं भी तो करनों हैं बहुत।’
दिल्ली से लाई शराब की खुमारी जहां भैयाजी के सपनों की खुमारी के आगे कुछ नहीं थी वहीं बाउजी की आंखों में तिवारीजी और विधानसभा सीटें थीं, आखिर किसी भी दल की सरकार हो, काम तो अपने ही आने हैं न!
मैनेजमेंट चल रहा था बाउजी की कुर्सी का और भैयाजी के दिल का!