कितना जोखिम
अचानक अनगढ़ पत्थर
मुझसे मिलने आते हैं
पढ़ा जाते नसीब का पाठ।
मैं ढूंढता
उन पत्थरों की भीड़ में
जिंदगी का रास्ता
जोखिम से बचने के लिए
उन पत्थरों में
बाबाओं को।

हर दिशा से
एक-एक पाश-सा
खींचता अंधविश्वास
कितने ढोंगी वेश बदले
उलझाकर मुझे
थमा देते
एक लंबी सूची
मूर्खताओं की।
फिर से खड़ा कर देते हैं
जोखिम भरी जिंदगी के सिरहाने
सारे हल बैठ जाते हैं
उसके पैताने वहीं।

बात, जो बात है

बात की स्मृति
जिंदा होती है
बात गुजरती नहीं
तकदीर बदल देती है-
बात।

सदा के लिए
सदारत करती है
बहाना नहीं बनाती
काम की होती है-
हर एक बात की कीमत
कीमती होती है हर बात।

बीती नहीं
वो बात है
घात नहीं करती
तभी तो सच्ची बात है-
बात, जो बात है।