प्रारंभिक जीवन: मुंशी राधा कृष्ण अग्रवाल और गुलाब देवी अग्रवाल लाला लाजपत राय के पिता-माता थे। लाजपत राय का विवाह 1877 में राधा देवी अग्रवाल से हुआ। उनकी तीन संतानें थीं। 1870 के आसपास उनके पिता का तबादला रेवाड़ी में हो गया। राय की शुरुआती शिक्षा गवर्मेंट हायर सेकेंडरी स्कूल में हुई। वहां उनके पिता उर्दू के अध्यापक रहे। राय की वैचारिकी बनाने में उनके माता-पिता का अहम योगदान था। उनके पिता से उन्हें राष्ट्रवादी विचार और माता की धार्मिक आस्था से उन्हें धार्मिक विचार मिले। उनके इन्हीं विचारों की झलक उनके आंदोलनों और पत्रकारिता में भी दिखाई दी। 1880 में लाला लाजपत राय ने गवर्मेंट कॉलेज लाहौर में कानून की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया। वहीं उनकी मुलाकात लाला हंसराज और गुरु दत्त से हुई। जब वे कानून की पढ़ाई कर रहे थे तभी उनकी मुलाकात स्वामी दयानंद सरस्वती से हुई। वे लाहौर में आर्य समाज के सदस्य बन गए और ‘आर्य गैजेट’ के संपादक भी बने। उनका मानना था कि देश में हिंदू धर्म के मार्फत एक धर्मनिरपेक्ष देश की कल्पना की जा सकती है।

राजनीतिक जीवन: वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद 1885 में उन्होंने हिसार में वकालत शुरू की। उन्होंने दयानंद एंग्लो वैदिक विद्यालयों की भी स्थापना की, और इसके लिए वे धन एकत्र करने लगे थे। वे 1892 में लाहौर चले गए। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में नरम दल का विरोध करने के लिए गरम दल का गठन किया। लाजपत राय ने बंगाल के विभाजन के खिलाफ हो रहे आंदोलन में हिस्सा लिया। उन्होंने सुरेंद्रनाथ बनर्जी, बिपिन चंंद्र पाल और अरविंद घोष के साथ मिलकर स्वदेशी के सशक्त अभियान के लिए बंगाल और देश के दूसरे हिस्से में लोगों को एकजुट किया। इन गतिविधियों के लिए उन्हें गिरफ्तार भी किया गया और मांडले जेल में छह महीने रख कर रिहा कर दिया गया।

विदेश में प्रचार: लाजपत राय चाहते थे कि भारत की वास्तविक परिस्थिति का प्रचार विदेश में किया जाए। इसी वजह से वे 1914 में ब्रिटेन गए। इसी समय प्रथम विश्व युद्ध छिड़ गया जिसके कारण वे भारत नहीं लौट पाए और फिर भारत के लिए समर्थन प्राप्त करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए।
उन्होंने इंडियन होम लीग ऑफ अमेरिका की स्थापना की और ‘यंग इंडिया’ नामक एक पुस्तक लिखी। 1920 में विश्व युद्ध खत्म होने के बाद वे भारत लौट पाए। वे चौरी चौरा कांड के कारण असहयोग आंदोलन को बंद करने के गांधी के निर्णय से सहमत नहीं थे और उन्होंने कांग्रेस इंडिपेंडेंस पार्टी की स्थापना की।

साइमन कमीशन का विरोध: संवैधानिक सुधारों पर चर्चा करने के लिए जब 1929 में जब कमीशन भारत आया तो पूरे भारत में इसका विरोध किया गया। लाला लाजपत राय ने खुद साइमन कमीशन के खिलाफ एक जुलूस का नेतृत्व किया। हालांकि, जुलूस शांतिपूर्ण निकाला गया पर ब्रिटिश सरकार ने बेरहमी से जुलूस पर लाठी चार्ज करवाया। लाला लाजपत राय को सिर पर गंभीर चोटें आईं, जिसके कारण 17 नवंबर, 1928 में उनकी मृत्यु हो गई।