आजकल महानगरों में बढ़ते वायु प्रदूषण की वजह से लोगों में सांस संबंधी अनेक तकलीफें उभरने लगी हैं। अब तो छोटे बच्चों को भी सांस संबंधी परेशानियां पैदा हो जाती हैं। सांस संबंधी बीमारियों में सबसे अधिक दमा यानी अस्थमा से लोग परेशान हैं। दमा फेफड़ों की ऐसी बीमारी होती है, जिसके कारण व्यक्ति को सांस लेने में कठिनाई होती है। दमा होने पर श्वास नलियों में सूजन आने से श्वसन मार्ग सिकुड़ जाता है। जब यह सूजन बढ़ जाती है तो सांस लेने में कठिनाई के साथ-साथ खांसी, घरघराहट और सीने में जकड़न जैसे लक्षण उत्पन्न होते हैं। खांसी के कारण फेफड़े से कफ पैदा होता है, लेकिन उसको बाहर लाना कठिन होता है।
आयुर्वेद में अस्थमा को तमक श्वास कहा गया है। यह वात और कफ दोष के विकृत होने से होता है। इसमें श्वास नलियां संकुचित हो जाती हैं, जिसके कारण छाती में भारीपन का अनुभव होता है।
दमा के प्रकार
दमा यानी अस्थमा के कई प्रकार होते हैं। पेरिनियल अस्थमा, मौसमी अस्थमा, एलर्जिक अस्थमा, नान एलर्जिक अस्थमा, अकुपेशनल अस्थमा। एलर्जिक अस्थमा किसी विशेष चीज से एलर्जी होने की वजह से होता है, जैसे धूल, मिट्टी, धुआं, पराग कण के संपर्क में आते ही सांस फूलने लगती है। मौसम में बदलाव के कारण भी दमा हो सकता है। नान एलर्जिक अस्थमा अधिक तनाव होने या बहुत सर्दी या खांसी-जुकाम होने पर होता है। मौसमी अस्थमा पूरे वर्ष न होकर किसी विशेष मौसम में पराग कणों या नमी के कारण होता है। कारखानों में काम करने वाले लोगों को अकुपेशनल दमा हो जाता है।
लक्षण
दमा या अस्थमा में सबसे पहले सांस लेने में तकलीफ होती है। इसके अलावा बार-बार खांसी आना, सांस लेते समय सीटी की आवाज आना, छाती में जकड़न तथा भारीपन, सांस फूलना, गले का अवरुद्ध और शुष्क होना, बेचैनी होना आदि लक्षण दिखाई देते हैं।
बचाव
अस्थमा के मरीजों को बारिश, सर्दी और धूल से बचना चाहिए। घर से बाहर निकलते समय मास्क लगा कर निकलें। सर्दी के मौसम में धुंध में जाने से बचें। ताजा पेंट, कीटनाशक, स्प्रे, अगरबत्ती, मच्छर भगाने की दवा, खुशबूदार इत्र से जितना हो सके बचें। धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों से दूर रहें। इसके अलावा जीवनशैली और आहार में बदलाव करके भी दमा के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
दमा के रोगियों को गेहूं, पुराना चावल, मूंग, कुल्थी, जौ और परवल का सेवन करना चाहिए। हरी पत्तेदार सब्जियों, पालक और गाजर का रस अस्थमा में काफी फायदेमंद होता है। लहसुन, अदरक, हल्दी और काली मिर्च को जरूर भोजन में शामिल करें, ये अस्थमा से लड़ने में मदद करते हैं। गुनगुने पानी का सेवन करने से दमा में आराम मिलता है। शहद का सेवन करें। मछली, गरिष्ठ भोजन, तले हुए पदार्थ न खाएं। अधिक मीठा, ठंडा पानी, दही का सेवन न करें।
नियमित रूप से प्राणायाम और सूर्य नमस्कार करने से दमा से राहत मिलती है। अधिक शारीरिक व्यायाम न करें। योगासन करना इस रोग में मददगार होता है।
घरेलू उपचार
आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार कई ऐसे घरेलू उपाय हैं, जिनके उपयोग से अस्थमा के इलाज में मदद मिलती है। लहसुन अस्थमा में फायदेमंद होता है। लहसुन की पांच कलियां रोज सेवन करने से दमा में आराम मिलता है। अंजीर कफ को जमने से रोकता है। इसे पानी में रात भर भिगोकर रखें और सुबह खाली पेट खा लें। पानी में अजवायन डाल कर उबालें और उसकी भाप लें, यह अस्थमा का जड़ से इलाज करता है। मेथी शरीर की भीतरी एलर्जी को खत्म करती है। मेथी के कुछ दानों को एक गिलास पानी के साथ तब तक उबालें जब तक पानी एक तिहाई न हो जाए। इस पानी में शहद और अदरक का रस मिलाकर रोज सुबह-शाम सेवन करें।
दमा में कच्चे प्याज का सेवन लाभदायक होता है। प्याज में मौजूद सल्फर फेफड़ों की जलन और अन्य समस्याओं को कम करने में मदद करता है। विटामिन-सी युक्त फलों और सब्जियों का सेवन करें। नींबू, संतरे, जामुन, स्ट्राबेरी और पपीता विटामिन-सी के अच्छे स्रोत हैं। सब्जियों में फूलगोभी और पत्तागोभी का सेवन करें। इससे दमा में राहत मिलती है। आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार आंवला हमारी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा कर दमा को नियंत्रित करने में मदद करता है।काफी में मौजूद कैफीन में ब्रोंको डायलेटर का गुण पाया जाता है, जो दमा के लक्षणों को कम करने में मदद करता है। मगर ध्यान रखें कि अधिक मात्रा में काफी का सेवन सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है।
(यह लेख सिर्फ सामान्य जानकारी और जागरूकता के लिए है। उपचार या स्वास्थ्य संबंधी सलाह के लिए विशेषज्ञ की मदद लें।)