जिस वक्त उन्नीस साल की भारतीय किशोरी रेशमा कुरैशी न्यूयार्क फैशन वीक के रैंप पर एक शानदार पोशाक के साथ चहलकदमी कर रही थी, लगभग उसी दौरान भारत में मुंबई की एक विशेष महिला अदालत दिल्ली निवासी प्रीति राठी पर तेजाब फेंकने के मामले में छब्बीस वर्षीय अंकुर लाल पंवार को हत्या के अपराध में सजा सुना रही थी। ये दोनों वाकये बानगी हैं कि अदालतें तेजाब हमलों के दोषियों के साथ नरमी से पेश नहीं आएंगी तो दूसरी तरफ महिलाओं को बे-चेहरा बनाने की कुत्सित कोशिशें कामयाब नहीं होगीं। भारत में सबसे ज्यादा महिलाएं तेजाब का दंश सह रही हैं। तेजाब की बिक्री पर प्रतिबंध और सजाओं को कठोर करने के बावजूद तेजाबी हमलों की संख्या में इजाफा हुआ है। 2012 में ऐसे 106 मामले दर्ज कराए गए थे, जबकि 2013 में 122, 2014 में 349 और 2015 में 500 मामले दर्ज हुए। यह कोई छिपी बात नहीं है कि हमारे देश के गांव-कस्बों और छोटे शहरों में तेजाब हादसों की संख्या ज्यादा है। यहां के समाज में महिलाओं को लेकर एक खास प्रवृत्ति कायम रही है। वहां पुरुषों का एक वर्ग उन्हें अपनी जागीर समझता है। जब कोई महिला इन दायरों से बाहर निकलने की कोशिश करती है या इस सोच का विरोध करती है तो उसे इसका परिणाम भुगतना पड़ता है। इसके नतीजे में उसे विकलांग बनाने की कोशिश की जाती है।

महिलाओं से बलात्कार हो या उनके चेहरे-शरीर को तेजाब डालकर बिगाड़ने की कोशिश। इन दोनों तरीकों से अपराधी मानसिकता के लोग उनके जीवन को तबाह करने की कोशिश करते हैं। तेजाबी हमले में भी महिलाओं के सामान्य जीवन में लौट आने की संभावना काफी कम हो जाती है। 2015 में बनारस में रूसी युवती डार्या यूरिवा के साथ यही हुआ। उसने एकतरफा प्रेम में पड़े व्यक्ति का निवेदन ठुकराया तो तेजाब के माध्यम से उसे लगभग विकलांग बनाने की कोशिश अपराधी मानसिकता के उस व्यक्ति ने कर दी, जिसके घर में वह पेइंग गेस्ट थी।प्रीति राठी के मामले में भी समाज की यही ग्रंथि सामने आई थी कि आखिर एक स्त्री एक पुरुष से आगे कैसे निकल सकती है। प्रीति को रक्षा मंत्रालय के तहत मुंबई स्थित आईएनएचएस अश्विनी अस्पताल में नर्स की नौकरी मिल गई थी, जबकि अपराधी अंकुर जो उसका पड़ोसी था, पढ़ाई पूरी करने के बाद भी नौकरी नहीं हासिल कर पाया था। उसके मां-बाप प्रीति की तारीफ उसके सामने ही किया करते थे। प्रीति की सफलता की इसी जलन में उसने साजिश रचकर मुंबई के बांद्रा स्टेशन पर प्रीति के ऊपर तेजाब उड़ेल दिया था, जिससे उसका सिर्फ चेहरा ही नहीं झुलसा, बल्कि कुछ दिनों में उसकी मौत भी हो गई। गुजरात के भावनगर शहर के तलाला इलाके में एक युवक ने तीन सगी बहनों और एक बच्ची पर तेजाब फेंक दिया। लड़कियां अस्पताल में अपने जले शरीर के साथ भावी जीवन की सिहरन पैदा करने वाली कल्पना से गुजर रही हैं।

अभी तक आम तौर पर यही हुआ है कि तेजाब से झुलसे हुए चेहरे के साथ कोई स्त्री जीवित भले ही बच जाए लेकिन सामाजिक अवमाननाओं का जीवन भर लंबा दौर उसे एक जीवित लाश बना कर रख देता है। यही वजह रही है कि कई सामाजिक संगठनों की मांगों पर अदालतें लगातार ऐसे आदेश-निर्देश जारी करती रही हैं जिनसे तेजाब-पीड़ित कहलाने वाली महिलाएं सम्मानजनक जीवन जीने की हकदार बन सकें। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया निर्देश उल्लेखनीय है, जिसमें उसने सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिया था कि वे तेजाब पीड़ित महिलाओं को विकलांग सूची में शामिल करते हुए उन्हें मुआवजा और सही इलाज मुहैया कराएं।

अदालत ने सदाशयता भरा रवैया दिखाया पर विडंबना है कि यह हमारे समाज की एक खास सोच को ही प्रतिबिंबित कर रहा है। सवाल है कि आखिर बलात्कार से या फिर तेजाब के हमले से घायल महिलाओं का सम्मान कैसे वापस लाया जा सकता है? क्या मुआवजा राशि इसका उचित समाधान है। जहां तक मुआवजे की बात है तो अदालतें अब तेजाब हमले में घायल महिलाओं को राहत दिलाने के लिए पर्याप्त मुआवजा दिलाने का प्रयास कर रही हैं। बिहार की तेजाब पीड़ित लक्ष्मी और उसकी बहन को सुप्रीम कोर्ट ने कुल तेरह लाख रुपए का मुआवजा देने का निर्देश राज्य सरकार को दिया था। इससे इन बहनों के इलाज और पुनर्वास में मदद मिलेगी। पर क्या इससे उनकी सामाजिक विकलांगता दूर होगी? यही वह पक्ष है जिससे तेजाब हमला करने वाले अपराधियों का मनोबल ऊंचा होता रहा है। इसी आधार पर वे ऐसे हमले को प्रेरित होते रहे हैं। इससे ही उनका यह संतोष प्रबल होता है कि उन्होंने प्रेम निवेदन को ठुकराने वाली स्त्री का सामाजिक जीवन तो तबाह कर ही दिया। अब भले ही उन्हें जेल में क्यों न डाल दिया जाए। यही वजह है कि कानून ने जो कड़े उपाय तेजाब बिक्री को नियमित करने से लेकर पीड़ितों को मुआवजा दिलाने के संबंध में किए हैं, वे तेजाबी हमले की मानसिकता पर कोई रोक नहीं लगा पाए हैं।

माना जाता है कि सख्त कानून बना देने से आपराधिक प्रवृत्ति वाले लोगों में खौफ पैदा तो होगा, लेकिन सवाल यह है कि ऐसी हरकत करने की हिम्मत अभी भी लोग कैसे कर रहे हैं, जबकि तेजाब फेंकनेवालों के खिलाफ अक्सर हत्या की कोशिश का मामला बनता है, जिसमें कड़ी सजा का प्रावधान है। इससे लगता है कि समस्या महज कानून की कमी की नहीं है। हमारा वह तंत्र ही घोर लापरवाह और गैर जिम्मेदार है, जिस पर कानूनों को अमल में लाने की जवाबदेही है। इसलिए सिर्फ तेजाब की बिक्री को नियमित करने या कठोर कानून बना देने भर से समस्या का समाधान होना मुमकिन नहीं है। इसके लिए ज्यादा जरूरी है कि लोगों में महिलाओं के सम्मान की भावना जगे। लोगों को यह बात समझाए जाने की जरूरत है कि हमारा समाज स्त्रियों के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने वाला कोई भी कृत्य बर्दाश्त नहीं कर सकता है। कानून बनाने के साथ यह जरूरी है कि तमाम एजेंसियों को मुस्तैद बनाया जाए।

इन हमलों का सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि निर्भया-कांड के बाद महिलाओं की सुरक्षा को प्राथमिकता में रखने के दावे के बावजूद महिलाओं के साथ होने वाले हादसों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। उत्तर प्रदेश में स्थिति और भी चिंताजनक है। शामली जिले में स्कूल से लौटती चार बहनों (जिनमें से तीन स्कूल अध्यापिकाएं थीं) पर मोटर साइकिल सवारों द्वारा तेजाब फेंककर झुलसा देने की घटना ने लोगों को हिलाकर रख दिया था। तेजाबी हमले और महिलाओं के साथ वारदातों में इजाफे की प्रवृत्ति के पीछे राजनीतिक सोच भी जिम्मेदार है।
सत्तारूढ़ दल के वरिष्ठ नेता अक्सर ऐसे बयान देते रहते हैं कि बलात्कार जैसी घटनाएं अनायास हो जाती हैं और इसके लिए लड़के दोषी नहीं होते।

तेजाब भी तो इसी तरह अनायास फेंक दिया जाता ? ऐसे बयान अपराधी मानसिकता को प्रश्रय देते हैं और उस पर कानून के बावजूद कार्रवाई न होना अपराध को संरक्षण प्रदान करता है। यह प्रवृत्ति सख्त कानून और तेजाब की बिक्री प्रतिबंधित करने के साथ-साथ लोगों में महिलाओं के प्रति सम्मान की भावना जगाने के प्रयासों से ही रुक सकती है। लोगों को यह बात समझाए जाने की जरूरत है कि देश का कानून ही नहीं, हमारा समाज भी स्त्रियों के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने वाला कोई भी कृत्य बर्दाश्त नहीं कर सकेगा। पहला विरोध तो इसे लेकर होना चाहिए कि महिलाओं को विकलांग बनाने की हरकतें असहनीय हैं। इसके बाद पीड़ित महिलाओं को उपेक्षित रखना और उन्हें यह समझने को मजबूर कर देना कि अब उन्हें इसी तरह विकलांग बनकर जिंदगी व्यतीत करनी है- इस सोच को दंडनीय बनाने की जरूरत है। ०