देशभक्ति किसी के आदेश पर नहीं पैदा हो सकती। यह बात इतनी साफ जाहिर है कि दोहराने की जरूरत नहीं होनी चाहिए। इस लेख को शुरू करते ही अगर मैंने दोहराई है, तो इसलिए कि देश में वर्तमान माहौल इतना अजीब है कि दिल्ली की सड़कों पर जुलूस निकले पिछले हफ्ते, जिसमें एक तरफ थे वे लोग, जिन्होंने ठेका ले रखा है देशभक्ति का और दूसरे जलूस में थे वे, जिनको देशभक्ति के ये ठेकेदार देशद्रोही मानते हैं। क्यों? इसलिए कि इनकी विचारधारा वामपंथी है। सोशल मीडिया पर वामपंथियों को भारत से भगाने की खूब चर्चा हुई, जैसे कि उनकी विचारधारा सबूत हो उनकी गद्दारी की।

सच पूछिए, तो मुझे खुद वामपंथी विचारधारा जरा भी पसंद नहीं है। मेरा मानना है कि भारत सत्तर वर्षों की स्वतंत्रता के बाद अगर गरीब और बेहाल है, तो सिर्फ इसलिए कि हमने समाजवादी अर्थनीतियां अपनार्इं, जिनसे न संपन्नता पैदा हुई और न ही गुरबत को हम हटा सके। गरीबी हटाने का नारा उस प्रधानमंत्री ने चालीस वर्ष पहले बुलंद किया, जिसने समाजवाद शब्द को हमारे संविधान में भी डालने का फैसला किया। उस समय दुनिया कुछ और थी। सोवियत संघ ने अपनी छवि एक शक्तिशाली देश की बड़ी कामयाबी से बना रखी थी और किसी को नहीं मालूम था कि चीन में माओत्से तुंग की मौत के बाद कम्युनिस्ट अर्थनीतियां को कूड़ेदान में फेंक कर चीन भी उस आर्थिक रास्ते पर चलेगा, जिस पर चलने से विकसित, पश्चिमी देश बाकी देशों से कहीं ज्यादा आगे निकल चुके थे।

न मैं वामपंथी विचारधारा की इज्जत करती हूं और न ही अपने उन देशवासियों की, जिन्होंने अभी तक इतिहास से कुछ नहीं सीखा है। मुझे सख्त तकलीफ होती है, जब हमारे विश्वविद्यालयों से ऐसे नारे उठते हैं, जो आज चीन और रूस में भी नहीं सुनाई देते हैं। कन्हैया कुमार और उमर खालिद जैसे छात्र अगर नई सोच लाए होते, तो आज देश का भविष्य रोशन होता। मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता, जब हमारे छात्र देश को तोड़ने की बातें करते हैं। लेकिन छात्र, छात्र होते हैं, उन पर देशद्रोह का आरोप लगाना बेवकूफी है। पिछले साल हमारे गृहमंत्री ने कन्हैया कुमार और उमर खालिद को हीरो बना दिया था, उन पर देशद्रोह का आरोप लगा कर और अब गुरमेहर कौर को उन एबीवीपी छात्रों ने हीरो बना दिया है, जिन्होंने उसको धमकाने, डराने की कोशिश की है।

यह सब देशभक्ति के नाम पर हुआ है, लेकिन सच तो यह है कि देश की छवि को बिगाड़ा है इन देशभक्तों ने। बाजी मार गए हैं वामपंथी, जो लोकतंत्र के सिपाही हो गए हैं यह भूल कर कि जिन देशों से वे अपनी विचारधारा लिए हैं उन देशों में न कभी लोकतंत्र कायम हुआ है और न ही निकट भविष्य में कायम होता दिखता है। इन चीजों से देशभक्ति से कोई वास्ता नहीं है, लेकिन एबीवीपी के छात्र जोड़ने की कोशिश में लगे हुए हैं और ऐसी भाषा बोल रहे हैं, जैसे कि देशभक्तों को कभी बोलनी नहीं चाहिए।

देशभक्ति का यह जोश सिर्फ विश्वविद्यालयों तक सीमित होता, तो कोई बात न होती। समस्या यह है कि आदरणीय सर्वोच न्यायालय ने भी हुक्म जारी किया है कि हर सिनेमा घर में मूवी दिखाने से पहले राष्ट्रगान बजेगा और सबके लिए खड़ा होना अनिवार्य होगा। क्या ऐसा करने से क्या देशद्रोही भी देशभक्त बन जाएंगे? क्या वह जिहादी आतंकवादी भी देशभक्त बन जाएंगे, जो शायद सिनेमा के अंदर सिर्फ हमको मारने आए हैं? किस तरह की देशभक्ति है यह!

देशभक्ति के हुक्मनामे नरेंद्र मोदी के मंत्रियों से भी आए हैं। कुछ ऐसे हैं जो टीवी की चर्चाओं में शामिल होकर देशभक्ति की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं इन दिनों और कुछ ऐसे भी हैं, जिन्होंने लंबे-लंबे लेखों में देशभक्ति अपनी साबित की है। क्या जानते नहीं हैं ये विद्वान कि असली देशभक्ति खुद-ब-खुद पैदा होती है। यह तब पैदा होती है, जब अपना देश कोई नई कामयाबी हासिल करके दिखाता है। यह तब पैदा होती है, जब अपना देश सुंदर, स्वच्छ और संपन्न होता है।

सो, अमेरिका में कोई देशभक्ति की बातें नहीं करता, क्योंकि उस देश के लोग जानते हैं कि तकरीबन हर क्षेत्र में अमेरिका बाकी देशों से आगे है। चाहे अंतरिक्ष में नए रास्ते ढूंढ़ने की बात हो, चाहे चिकित्सा में नई दवाएं इजाद करने की बात हो, चाहे आधुनिक, सुंदर शहर निर्मित करने की बात हो और चाहे अपने नागरिकों के लिए बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने की बात हो, जो अपने भारत महान के वासियों के लिए अब भी उपलब्ध नहीं हैं। सो, जब अमेरिका में यूएसए, यूएसए, यूएसए के नारे गूंजते हैं तो किसी हुक्मनामे के बाद नहीं।

भारतवासी इतने देशभक्त हैं कि गुरबत और गंदगी में जिंदगी गुजारने के बाद भी भारतवासी होने पर गर्व महसूस करते हैं। उनको न न्यायाधीशों के आदेशों की आवश्यकता है और न मंत्रियों के हुक्मनामे कोई मतलब रखते हैं। न ही कोई प्रेरणा लेते हैं छात्रों के जलसे-जलूसों से। कहने का मतलब यह कि मेहरबानी करके जो लोग देशभक्ति जबरदस्ती थोपना चाहते हैं हम पर, इस कार्य को फौरन बंद करके आप लग जाएं कुछ असली कार्य सेवा में। छात्रों को इतना प्यार है भारत से, तो जब पढ़ाई से फुर्सत मिलती है, कृपया जाकर अपनी गलियों में स्वच्छ भारत का संदेश आम लोगों को देने का काम करें। फुर्सत और भी है, तो देहातों में इस संदेश को लेकर जाइए। रही बात हमारे अति-देशभक्त मंत्रियों की, तो मेहेरबानी करके देश को सुधारने का काम करें। असली देशभक्ति यह होती है।