हम क्या खाते हैं, क्या पीते हैं, किससे मोहब्बत करते हैं इन चीजों से सरकार का कोई वास्ता नहीं होना चाहिए, लेकिन इन्हीं चीजों में दखल शुरू होती है जब धर्म-मजहब से जुड़े लोग ऊंचे राजनीतिक पदों पर बिठाए जाते हैं। सो, उत्तर प्रदेश में सत्ता संभालने के फौरन बाद योगी आदित्यनाथ ने अवैध बूचड़खाने बंद कराने की मुहिम चलाई।

शुरू में स्पष्ट कर दूं कि मैं हिंदुओं का दर्द समझती हूं। मुझे भी गुस्सा आता है जब देखती हूं कि मेरे सेक्युलर बंधु हिंदू शब्द का तभी इस्तेमाल करते हैं, जब हिंदू धर्म, संस्कृति या सभ्यता को नीचा दिखाना चाहते हैं। जो लोग आतंकवाद के साथ जिहाद शब्द नहीं जोड़ना चाहते हैं, जो लोग दोहराते फिरते हैं कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं है, वही लोग ‘भगवा आतंकवाद’ आसानी से पहचान लेते हैं। मुझे गुस्सा आता है कि भारतीय स्कूलों और विश्वविद्यालयों में पढ़ाई करने के बाद भी मुझे यूनान, मिस्र, रोम की प्राचीन सभ्यताओं के बारे में ज्यादा सिखाया गया था और भारत की प्राचीन संस्कृति के बारे में न के बराबर। बहुत बाद में, जब मेरी शिक्षा समाप्त हो चुकी थी, मैंने अल्लामा इकबाल का वह शेर पढ़ा, जो मेरी नजरों में भारत की सारी कहानी बयान करता है- ‘कुछ बात है जो हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-जमां हमारा। यूनान, मिस्र, रोमा सब मिट गए जहां से, अब भी मगर है बाकी नाम-ओ-निशान हमारा।’

वह ‘कुछ बात’ अब भी है भारत में, लेकिन इस बात को हम भारत के बच्चों से छिपा कर रखते हैं। स्कूलों में हम उन्हें नहीं सिखाते कि भारतीय होने का मतलब क्या है। उलटा हमारी शिक्षा प्रणाली इतनी अजीब है कि अपने बच्चों को हम सिखाते हैं कि भारत इतना बेकार देश है कि जितनी जल्दी हो सके यहां से भागने की तैयारी करो। इसके लिए बहुत जरूरी है अंग्रेजी सीखना, सो हर गांव में आज दिखते हैं ‘इंग्लिश मीडियम’ प्राइवेट स्कूल। अंग्रेजी सीखने में कोई हर्ज न होता, अगर साथ-साथ बच्चे को हम यह भी सिखा सकते कि उसके अपने देश की संस्कृति क्या है। ऐसा हम नहीं कर पाते हैं, सो अपने बच्चों को लद्धड़ बनाते जा रहे हैं। इन चीजों को देख कर अगर हिंदुत्ववादियों को गुस्सा आता, तो मैं उनके साथ होती। लेकिन इन चीजों में परिवर्तन लाने के बदले जब वे सनातन धर्म के इस्लामीकरण में लगे रहते हैं, तो मुझे सख्त तकलीफ होती है।

इस्लामीकरण करना चाहते हैं, मुझे संघ के कई वरिष्ठ नेताओं ने खुद बताया है और ये लोग यह भी बताते हैं कि ऐसा किए बिना हिंदू कभी मुसलमानों का मुकाबला कर नहीं पाएगा। इनकी बातों को सुन कर ऐसा लगता है मुझे कि उन्होंने दूर किसी पहाड़ी गुफा में पिछले कुछ दशक बिताए होंगे, वरना जरूर उनको दिखता कि इस्लाम इतने बुरे दिनों से गुजर रहा है जिहादी आतंकवाद के कारण कि मुसलमानों के लिए किसी गैर-इस्लामी देश का वीजा लेना भी तकरीबन असंभव होता जा रहा है। ऐसे दौर में सनातन धर्म का इस्लामीकरण बेवकूफी नहीं तो क्या है?ये सारी बातें मैं आज इसलिए कह रही हूं, क्योंकि पिछले हफ्ते मुझे ट्विटर पर हिंदुत्ववादियों ने ऐसी गालियां दीं कि क्या बताऊं। वह भी सिर्फ इसलिए कि मैंने योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने पर एतराज जताया। एतराज है मुझे, क्योंकि मेरा मानना है कि साधु, संतों को ऊंचे राजनीतिक ओहदों से दूर रखा जाना चाहिए। जिन देशों में धर्म-मजहब के रहनुमाओं को ऊंचे राजनीतिक ओहदों पर बिठाया गया है, या मजहब से जुड़े राजनीतिक दलों को सत्ता मिली है, उन देशों में बर्बादी ही आई है, खैरियत नहीं। मिसालें अपने पड़ोस में अफगानिस्तान और पाकिस्तान की हैं और थोड़ी दूर जाना चाहें तो देखिए ईरान में क्या हुआ है और आइएसआइएस की खिलाफत में क्या हुआ, जब खिलाफत का निजाम कायम था।

खराबी तब शुरू होती है जब धार्मिक पुलिस का हस्तक्षेप होने लगता है उन चीजों में जो किसी समझदार इंसान के निजी मामले होने चाहिए। हम क्या खाते हैं, क्या पीते हैं, किससे मोहब्बत करते हैं इन चीजों से सरकार का कोई वास्ता नहीं होना चाहिए, लेकिन इन्हीं चीजों में दखल शुरू होती है जब धर्म-मजहब से जुड़े लोग ऊंचे राजनीतिक पदों पर बिठाए जाते हैं। सो, उत्तर प्रदेश में सत्ता संभालने के फौरन बाद योगी आदित्यनाथ ने अवैध बूचड़खाने बंद कराने की मुहिम चलाई। अवैध हों तो बंद होने भी चाहिए, लेकिन फौरन दिखने लगे ऐसे लोग, जिन्होंने मोहम्मद अखलाक की हत्या की थी इस शक पर कि उसके घर की फ्रिज में बीफ था। गोहत्या रोकने के नाम पर उन्होंने कई गोश्त की दुकानें जला डालीं हाथरस में पिछले हफ्ते।योगी आदित्यनाथ की दूसरी मुहिम चली है ऐंटी-रोमियो स्कॉड वाली, जिसके शुरू होते ही पुलिसवाले सड़क पर चलते लड़के-लड़कियां पकड़ने लगे। लड़कियों से ऐसे सवाल पूछे गए, जैसे सउदी अरब जैसे कट्टरपंथी इस्लामी देशों में पूछे जाते हैं। वहां जब कोई महिला अकेली होती है या किसी गैर-मर्द के साथ दिखती है, तो उसको गिरफ्तार किया जाता है। ऐसा उत्तर प्रदेश में अभी तक नहीं हो रहा है, लेकिन जिस तरह के सवाल लड़कियों से पूछे जा रहे थे, ऐसा लगा कि वह दिन दूर नहीं, जब लड़कियों की आजादी पर पाबंदी लग जाएगी।

क्या यह भारतीय सभ्यता है? हो सकता है कि आगे चल कर योगी आदित्यनाथ बहुत काबिल मुख्यमंत्री साबित हों। हो सकता है कि इन चीजों को छोड़ कर वे उत्तर प्रदेश में असली विकास और परिवर्तन लाकर दिखाएं। आखिर इतनी शानदार बहुमत अगर मतदाताओं ने दी है मोदी को, तो विकास और परिवर्तन के नाम पर, हिंदुत्व के नाम पर नहीं।खतरे की घंटी अगर मैंने अभी से बजानी शुरू कर दी है, तो सिर्फ इसलिए कि योगी अदित्यनाथ जिन चीजों को अभी तक प्राथमिकता दे रहे हैं, उनका वास्ता न विकास से है, न परिवर्तन से। उनका वास्ता है किसी चीज से तो उस पहरेदारी से, जो धार्मिक प्रचारक करते हैं।