बात उन दिनों की है जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं बने थे, लेकिन उनको यकीन हो गया था कि अगले लोकसभा चुनावों के बाद वे प्रधानमंत्री बनेंगे। यही अगस्त का महीना था, जब मुझे अहमदाबाद आने का बुलावा मिला था। मैंने अपने इंडियन एक्सप्रेस वाले स्तंभ में लिखा था कि लुटयंस दिल्ली के बाशिंदे कांपने लग गए हैं इस डर से कि मोदी अगर प्रधानमंत्री बनकर आते हैं उनके इस देश के सबसे महत्त्वपूर्ण लोगों के रिहाइशी इलाके में, तो उनका खेल खत्म हो जाएगा। मोदी को लेख पसंद आया, इसलिए मुझे बुलाया गया उनसे बातचीत करने।

प्रधानमंत्री बनने से पहले सुझाव मांगे तो हुई हैरानी

सोचकर यह गई थी कि इस मुलाकात में उनके कुछ अफसर भी होंगे, लेकिन अकेले में बातचीत हुई थी उनके दफ्तर में। इस बातचीत के दौरान न उस कमरे के अंदर कोई आया और न किसी का मोदी को फोन आया। थोड़ी हैरान हुई मैं जब उन्होंने मुझसे सुझाव मांगे कि उनकी सरकार बनने के बाद क्या करना चाहिए देश में परिवर्तन लाने के लिए। हैरान हुई जब मैंने सुझाव दिए और उन्होंने ध्यान से मेरी बातें सुनीं। मैंने उनको वही कहा, जो शायद आप भी कहते अगर मेरी जगह होते।

सुझाव मेरी तरफ से थे कि कांग्रेस के लंबे शासनकाल में जो गलतियां हुई हैं, उनको पहले सुधारने का काम होना चाहिए। यह भी कहा कि मेरी राय में सबसे बड़ी गलतियां हुई हैं शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्रों में। जब तक सरकारी स्कूल ऐसे रहेंगे, जिनमें देश के बच्चों को असली शिक्षा नहीं मिलेगी और सरकारी अस्पताल ऐसे कि सेहतमंद लोग बीमार होकर निकलते हैं, तब तक विकसित, समृद्ध भारत का सपना केवल सपना ही रहेगा।

जितना बदले हैं मोदी जी उतना बदलाव कम ही हुआ है

इस बार जब मैंने लालकिले के प्राचीर से प्रधानमंत्री का भाषण सुना, तो मन में एक सवाल घूमता रहा: वे मोदी कहां खो गए हैं, जो मुझे दस वर्ष पहले मिले थे? माना कि सत्ता अच्छे भले लोगों को बिगाड़ डालती है, लेकिन जितना बदले हैं मोदी उतना बदलाव मैंने कम ही देखा है। जैसे भूल गए हैं हबीब जालिब का वह शेर जो राजनेताओं को खबरदार करने के लिए लिखा था। ‘तुमसे पहले वो जो एक शख्स यहां तख्तनशीं था, उसको भी अपने खुदा होने पे इतना ही यकीन था।’

मोदी इस शेर को याद रखते तो कभी न कहते कि उनको लगता है कि उन्हें परमात्मा ने भेजा है भारत को बचाने के लिए। इस बात को उन्होंने कहा था चुनाव अभियान के अंतिम दिनों में। मैं मानती हूं कि पूर्ण बहुमत इस बार न मिलने का एक अहम कारण यह बयान भी था।

लालकिले से जो इस बार उनका भाषण था उसने स्पष्ट किया कि मोदी के पांव अभी तक जमीन पर नहीं उतरे हैं। भाषण में उन्होंने यही साबित करने की कोशिश की कि उनकी सरकार देश में ऐसा क्रांतिकारी परिवर्तन लाई है कि हर क्षेत्र में सुधार दिखता है। चलिए बात शुरू करते हैं सरकारी स्कूलों से। क्या मोदीजी जानते नहीं हैं कि उनके मुख्यमंत्री इतने व्यस्त रहे हैं सत्ता की शान का मजा लेने में कि उन्होंने सरकारी स्कूलों की तरफ ध्यान ही नहीं दिया है। आज भी देश के बच्चे इन स्कूलों से अशिक्षित निकलते हैं।

ऐसे लगता है कि प्रधानमंत्री को खबर यह भी नहीं है कि उच्च शिक्षा संस्थाओं में भी कोई सुधार नहीं आया है। वरना यह नहीं कहते कि वे चाहते हैं कि देश में विश्वविद्यालय इतने अच्छे बन जाएं कि हमारे बच्चों को विदेशी कालेजों में जाना न पड़े। वह दिन अभी इतना दूर है कि क्षितिज पर नहीं दिखता है। शायद यह भी जानते नहीं हैं कि उनके शिक्षामंत्री ने कहा था कि एनईईटी में कोई प्रश्नपत्र लीक नहीं हुए हैं और फिर जब पूरी जानकारी मिली तो उनको मुंह की खानी पड़ी। शिक्षा का हाल वही है प्रधानमंत्री, जो आपके आने से पहले था।

इस बार वाले भाषण ने मेरे लिए उज्ज्वल भारत अभियान की यादें ताजा कर दीं। यह वही अभियान था, जिसकी वजह से अटलजी 2004 में चुनाव हारे थे। ‘इंडिया शाइनिंग’ अभियान ने मतदाताओं में यकीन पैदा करने की कोशिश की थी कि भारत अब उस जगह पहुंच गया है जहां वह उज्ज्वल दिखने लग गया है। जब आम मतदाताओं ने अपनी बदहाल बस्तियों में यह बात सुनी तो उनको विश्वास हो गया था कि सत्ता के आला गलियारों में उनकी कोई सुनवाई नहीं होनेवाली है। यही गलती मोदी कर रहे हैं जब लाल किले के प्राचीर से कहते हैं कि उन्होंने आदिवासियों और गरीबों के जीवन में परिवर्तन लाकर दिखाया है। ऐसा नहीं है मोदीजी।

आपने उनको गैस के सिलेंडर दिए हैं उज्ज्वला योजना के जरिए, लेकिन यह नहीं देखा है कि उनके पास क्षमता नहीं है दूसरा सिलेंडर खरीदने की। मुफ्त अनाज जरूर मिलता है गरीबों को, लेकिन अगर आप सोचते हैं कि बिजली-पानी हर घर में आ गया है तो गलत सोच रहे हैं। न ही निर्माण हुआ है अभी तक उन ‘स्मार्ट सिटीज’ का, जिनकी बातें आप कर रहे हैं। रही बात स्वच्छता की, तो इस अभियान का भी पैसा जाम-सा हो गया है पिछले कुछ सालों में।

अच्छी बात है बार-बार याद दिलाना कि 2047 में भारत विकसित देश होने जा रहा है, लेकिन यह कैसे होगा जब उन बुनियादी चीजों का अभाव रहेगा, जो विकसित देशों में सबके पास होती हैं। विकसित देशों के राजनेता बिजली-पानी, पोषण-मकान की बातें भी नहीं करते हैं इसलिए कि जानते हैं कि ये सब चीजें दशकों से उपलब्ध हैं उनके देशवासियों के जीवन में।

आपने अगर प्रधानमंत्री का भाषण टीवी पर देखा होगा तो यह भी देखा होगा कि न तालियां बजीं लोगों से और न ही खुशी के नारे गूंजे। एक मायूसी-सी दिखी जो सच पूछिए आज मेरे दिल में भी है।