एक आदमी अपनी पत्नी की लाश को बांध कर बिना शोर किए कंधे पर डाले लिए जाता था। संग में उसकी बारह साल की बच्ची चलती जाती थी। यह अन्यायी सीन प्राइम टाइम वाला था। मीलों लंबा रास्ता और इस आदमी ने किसी से पानी तक की शिकायत न की! इसे चैनलों ने नहीं बनाया था। मध्यवर्ग के चैन में खलल डालने वाला यह हाहाकारी दृश्य सोशल मीडिया से मुफ्त में मिला था। सही समय पर राष्ट्र निर्माण में लगे अंगरेजी एंकर, विचारों की हमदर्दी से लदे-फंदे चर्चकों को लेकर प्राइम टाइम में अवतरित हुए और देश के हेल्थ सिस्टम की संवेदनहीनता को कोसते रहे, अस्पताल को जिम्मेदार ठहराते रहे और उस आदमी के लिएअंगरेजी में हमदर्दी जताते रहे! मेट्रो-मस्त चैनलों ने अपनी हमदर्दी के शो को जम कर जमाया, लेकिन अपने कैमरे उस आदमी तक हरगिज न जाने दिए! दिल्ली छोड़ कर दूर जाने में बड़ा कष्ट होता है साथी!
मगर अगले दिन कानपुर का एक पिता अपने बेटे को कंधे पर लिए लिए चार-चार अस्पतालों में जाता रहा, इलाज के अभाव में बेटा मर गया। फिर एक सीन सिवनी का रहा, जिसमें दो-तीन लोग एक औरत को इलाज के लिए लटका कर ले जा रहे थे। कहां तक रोएंगे सरजी! करीना कपूर खान का ‘बेबी बंप’ की खबर के बाद कौन-सी हमदर्दी और किसकी हमदर्दी? उस बेबी बंप पर सारे अंगरेजी चैनल कुर्बान दिखे। हिंदी चैनल भी ‘बेबी बंप बेबी बंप’ गाते रहे। उनसे ‘बेबी बंप’ की हिंदी तक न हुई। ‘करीना गर्भ से है’ या ‘पेट से है’ ऐसा तक न कह पाए! गर्भ कहते तो गंवार कहलाते, ‘बेबी बंप’ कहते ही माडर्न हो गए! ‘बेबी बंप’ एक दिखाने योग्य आइटम था। करीना ने डिजाइनर ड्रेस पहन कर मानो जताया कि ‘बेबी बंप’ छिपाने की नहीं, ‘शो’ करने की चीज है! अगर बैकग्राउंड में ‘जियो जियो रे लला’ वाला रिकार्ड बजवा दिया जाता तो सीन पूरा हो जाता!
एक सुबह जम के बारिश क्या हुई कि सब चैनलों पर ऐसी हाय हाय मची रही, मानो इससे पहले किसी रिपोर्टर ने दिल्ली की बारिश न देखी हो। खुद को राष्ट्र कहने वाला एक अंगरेजी एंकर रात के दस बजे पूछता रहा कि दिल्ली की बदहाली के लिए कौन जिम्मेदार है? हमारी नजर में तो इंद्र भगवान ही जिम्मेदार थे सरजी! और, बारिश के लिए क्या दिल्ली वाले और क्या जॉन केरी? सब बराबर! लेकिन चैनलों को दर्द हुआ कि इस बारिश ने केरी की सिटी विजिट कैंसिल करा दी। फिर भी एक चैनल में वे आइआइटी के छात्रों से मजाक करते दिखे। वे बारिश पर छात्रों से चुहल करते दिखे कि ‘आप लोगों को नाव से आना पड़ा होगा!’ और अमेरिका के मारे अपने छात्र इतना तक न कह सके कि हम तो कैंपस में रहते हैं, आप क्या ‘जेम्स बांड’ वाली कार से आए हैं! बरसात और जाम अपनी कल्चर है सरजी!
एक दिन पानी वाले बादल बरसे तो अगले दिन डिजिटल बादल बरसा! ‘डिजिटल इंडिया’ बनाने के लिए अपने नए ब्रांड ‘जियो बीट्स’ को लांच करने जब खुद मुकेश अंबानी आएं तो कौन चैनल है जो लाइव नहीं दिखाएगा? सो वे हर चैनल पर थे। और उनके ‘जियोे’ में क्या नहीं था? हजारों पिक्चरें, लाखों गाने, फोन सिनेमाहॉल सब कुछ डिजिटल। जियो नेटवर्कों का नेटवर्क है। जल्द ही नब्बे फीसद आबादी डिजिटल-सक्षम होगी। यह दुनिया का सबसे बड़ा फोर जी नेटवर्क होगा! यह मोबाइल वीडियो नेटवर्क होगा। सबसे कम दरों पर डाटा होगा, भारत को बदल कर रख देगा! इंडिया टुडे की एंकर ने तुरंत बताया कि जियो के लिए लाइनें लगी हैं। तीन महीने तक सारे काल फ्री! लाइनें तो लगेंगी ही!
मुकेश का आना डिजिटल मोबाइल बाजार में आग लगाने वाला रहा। एक विशेषज्ञ ने कहा भी कि यह चमत्कारी घोषणा है, बाकी मोबाइल सेवादाताओं की दुकान बंद न हो जाए। मन हुआ कि डिजिटल देवता से कहें कि जब इतना डिजिटल डिजिटल किए जा रहे हैं, तो सरजी सबके लिए एक डिजिटल रोटी भी बनवा दें और डिजिटल पानी भी पिलवा दें! इस डिजिटल विमर्श को दलित विमर्श ने बीच में काट दिया। एक शाम पहले तक हर चैनल दिल्ली सरकार के मंत्री संदीप कुमार के सेक्स स्केंडल पर हाय हाय कर चुका था। मनीष सिसोदिया बता चुके थे कि आधा घंटे के भीतर केजरीवाल ने उनको बर्खास्त कर दिया। भाजपा, कांग्रेस ‘आप’ की नैतिक पटिया पर डाल कर धुलाई कर चुकी थीं, लेकिन अगली ही सुबह संदीप कुमार ने हिम्मत दिखाई। वे सभी चैनलों पर कहे जा रहे थे कि यह साजिश है, सीडी में जो है वो मैं नहीं। मैं महादलित हूं। मेरे खिलाफ षड्यंत्र है। पहले जांच करिए! लेकिन इंडिया टुडे पर यही लाइन आती रही कि सीडी संदीप ने बनाई थी… कर लो क्या कर लोगे?
शौचालय विमर्श करते तीन विज्ञापन उपहासवक्रता के सैडिस्ट उदाहरण हैं। वे जनता का उपहास उड़ा कर शौचालय की आदत डालना चाहते हैं। यहां लोटा लेकर जाने वाले, बाल्टी लेकर जाने वाले का बच्चों से मजाक उड़वाया जाता है और शर्मिंदा कर सार्वजिनक शौचालयों में जाने को कहा जाता है। जैसे चमकते, साफ-सुथरे शौचालय विज्ञापनों में दिखते हैं, वैसे कहां बने हैं सरजी? क्या आप खुद कभी गए हैं सरजी? जा के तो देखें, तब उपहास उड़ाएं!
समूचे देश का यथार्थ देखना हो तो हिंदी चैनलों में आने वाली ‘खबरें फटाफट’ या ‘खबर शतक’ या बीस मिनट में सौ खबरें देखें। एक से एक लघु कथाएं दिखती हैं यहां। लोमहर्षक, मनोरंजक दुर्घटनाएं, सामाजिक टंटे, आत्महत्याएं, हत्याएं, दंगे, लूट, बाढ़ और लखीमपुर में आतंक मचाता तेंदुआ तक! अब तो अंगरेजी चैनल तक सौ खबरें देने लगे हैं। कस्बों, गांवों और छोटे नगरों की न कही जा सकने वाली कथाएं!
‘मांग में आग का सिंदूर’ कथा ‘ब्यूटी मिथ’ पर एक दर्दनाक टिप्पणी थी, जो एबीपी पर थी। अपनी खूबसूरती से परेशान होकर एक युवती ने अपना चेहरा ही जला डाला। अपना चेहरा जलाने के बाद कैमरों के आगे वही युवती रोते-रोते बोलती रही कि हमने अपनी खूबसूरती को जला लिया! किस सौंदर्यशास्त्र के अंतर्गत समझें ‘मांग में आग के सिंदूर’ को? इस युवती के दर्द के लिए किसी चैनल में जगह नहीं है। वह तो सौ खबरों में एक खबर की तरह ही हो सकती है!
