तिरुवल्लुवर, अलंगो आदिगल, अव्वय्यर और संगम कवि अगर सेंगोल के बारे में माननीय प्रधानमंत्री, ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करने वाले व्याख्याकारों और भाजपा के फिरकीबाजों की चौंकाने वाली व्याख्या सुनेंगे, तो वे अपनी कब्र में बेचैन हो जाएंगे। उनकी व्याख्या के हिसाब से, सेंगोल लौकिक शक्ति का प्रतीक बन गया है। काल्पनिक रूप से एक पुजारी या एक पूर्व शासक द्वारा नए शासक को सेंगोल सौंपने को सत्ता के हस्तांतरण के रूप में निरूपित किया गया है।

इतिहास और एक नैतिक सिद्धांत को किस कदर बेशर्मी से तोड़ा-मरोड़ा जा सकता है, इसका खुला प्रदर्शन 28 मई, 2023 को हुआ। तुरही बजाने वालों ने तुरही बजाई, दरबारियों ने शासक की चापलूसी की और संसद के दोनों सदनों को अपने भीतर समेटने वाली एक नई इमारत का उद्घाटन एक आभासी राज्याभिषेक में बदल गया।

लार्ड माउंटबेटन और सी राजगोपालाचारी (राजाजी) को एक ऐसे शाही समारोह का गवाह बनने के लिए बुलाया गया था, जो एक लोकतांत्रिक गणराज्य के लिहाज से बेतुका था। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण था कि जिस आयोजन को धर्मनिरपेक्ष रहना चाहिए था, उसमें धार्मिकता का एक बड़ा पुट देने के लिए शैव अदीनम (मठ) के स्वयंभू प्रमुखों को बुलाया गया।

जिन लोगों ने अपने टेलीविजन स्क्रीन पर इस निर्देशित अनुष्ठान की कार्यवाही देखी होगी, उन्होंने निश्चित रूप से इसकी तुलना 25 जुलाई, 2022 को राष्ट्रपति मुर्मू के सादगीपूर्ण शपथ ग्रहण समारोह से की होगी। और लोग, खासकर कर्नाटक के निवासी इस बात पर अचरज कर रहे होंगे कि “किसने किसको सत्ता सौंपी?”

कवि और सेंगोल की परिभाषा

31 ईसा पूर्व में तमिल कवि और दार्शनिक तिरुवल्लुवर ने अविस्मरणीय छंद लिखे, जो प्रसिद्ध तिरुक्कुरल में संकलित हैं। संपत्ति शीर्षक खंड में, उन्होंने सेंगोनमाई (नेक राजदंड) और कोडुंगोनमाई (क्रूर राजदंड) नाम के दो अध्यायों को शामिल किया है। दोहा संख्या 546 में लिखा है-
“वेलांद्रि वेंद्री तरुवथु मन्नावन/ कोल अदुउम कोडथु एनिन” यहां कोल का मतलब राजदंड से है। इस छंद का अर्थ है कि “राजा की जीत भाला नहीं, बल्कि कोल (राजदंड) तय करता है।” लेकिन कवि के अंतिम तीन शब्दों पर ध्यान दें : कोल, जो झुकेगा नहीं। राजदंड को सीधी अवस्था में होना चाहिए। उसे इस ओर या उस ओर झुका हुआ नहीं होना चाहिए।

शपथग्रहण के दौरान प्रधानमंत्री द्वारा ली गई शपथ में भी यही भाव मौजूद है- “…मैं बिना किसी भय या पक्षपात, राग या द्वेष के संविधान और कानूनों के मुताबिक सभी लोगों के साथ न्याय करूंगा।” कोल एक नेक शासन का प्रतीक है, न उससे ज्यादा और न उससे कम। अगर यह कोल झुकता नहीं है, तो वह एक सेंगोल होगा। लेकिन अगर यह किसी तरफ झुकता है, तो यह एक क्रूर शासन का प्रतीक होगा।

सेंगोल का आशय एक नेक शासन से है, खालिस सत्ता से नहीं। राजदंड धारण करने वाला शासक सही ढंग से शासन करने का वादा करता है। तिरुवल्लुवर ने सेंगोल को राजा के चार गुणों में से एक के रूप में रखा। ह्यदान, करुणा, नेक शासन और कमजोरों (गरीबों) की सुरक्षा एक अच्छे राजा के चार गुण हैं” (कुरल 390)। एक अन्य अध्याय का शीर्षक कोडुंगोनमाई है, जो सेंगोनमाई के उलट है और एक क्रूर या अन्यायपूर्ण शासन के रूप में वर्णित है।

सेंगोल की प्रशंसा करने वाले गीत

एक संगम कवि ने प्रसिद्ध चोल राजा करिकालन की उनके “अरानोडु पुनर्नंदा तिरनारी सेंगोल” के लिए प्रशंसा की है, जिसका अर्थ है कि उनका बुद्धिमत्तापूर्ण शासन नैतिकता से जुड़ा हुआ था। एक अन्य संगम कवि ने राजा को “एरेरकु निझंद्रा कोलिन” के रूप में वर्णित किया, जिसका अर्थ है कि राजा ने यह सुनिश्चित किया कि खाद्यान्नों का उत्पादन करने वाले किसानों को कोई परेशानी न हो। “सिलप्पाथिकरम” नाम का महाकाव्य लिखने वाले जैन भिक्षु अलंगो आदिगल ने कन्नगी के साथ हुए अन्याय की आलोचना की थी और सेंगोल को झुका देने वाले राजा की बर्बादी की भविष्यवाणी की थी।

जनकवि अव्वय्यर ने सरल भाषा में छंदों की रचना की। उनकी एक प्रसिद्ध कविता में लिखा है : “जब मेड़ की ऊंचाई बढ़ेगी, तो जलस्तर बढ़ेगा/ जलस्तर बढ़ेगा, तो धान उगेगा/ धान उगेगा, तो परिवार आगे बढ़ेंगे/ जब परिवार आगे बढ़ेंगे, कोल (राजदंड) ऊंचा उठेगा/ और जब राजदंड सीधा उठेगा, तब राजा की कीर्ति बढ़ेगी।”

एक राजदंड का झुक जाना अन्यायपूर्ण या क्रूर शासन का प्रतीक होगा। किसी एक वर्ग के प्रति पक्षपात या दूसरे के प्रति पूर्वाग्रह नहीं चल सकता। किसी भी समुदाय या धर्म या भाषा के प्रति दुर्भावना के लिए कोई जगह नहीं है। समकालीन मिसाल अगर लें, तो नफरत फैलाने वाले भाषणों या कानून अपने हाथ में लेने या लव जिहाद या बुलडोजर न्याय के लिए कोई जगह नहीं हो सकती है।

उस नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के लिए कोई जगह नहीं हो सकती है, जो किसी भी पड़ोसी देश के मुसलमानों, नेपाल के ईसाइयों एवं बौद्धों और श्रीलंका के तमिलों के साथ भेदभाव करता है। किसानों को व्यापारियों और एकाधिकार जमाने वाले सेठों के रहमोकरम पर छोड़ने वाले “कृषि कानूनों” के लिए कोई जगह नहीं हो सकती है।

महाराष्ट्र से परियोजनाएं छीनकर गुजरात ले जाने की कवायद के लिए कोई जगह नहीं हो सकती है। कर्नाटक में हाल ही में हुए चुनाव की तरह किसी राज्य के चुनाव में एक नेक शासक की राजनीतिक पार्टी मुसलिम या ईसाई समुदाय के उम्मीदवारों को मैदान में उतारने से इनकार नहीं कर सकती। न ही न्याय की मांग करने वाले पदक विजेता खिलाड़ियों के शांतिपूर्ण विरोध को एक नेक शासक की पुलिस बल प्रयोग करके बंद करा सकती है।

सेंगोल को अपवित्र न करें

राजदंड की सत्ता के साथ तुलना करना सेंगोल की अवधारणा को अपवित्र करना है। लार्ड माउंटबेटन और राजाजी का हवाला देना न सिर्फ इतिहास के साथ तोड़-मरोड़ करना है, बल्कि एक व्यावहारिक वायसराय और एक बुद्धिमान विद्वान-राजनेता को नीचा दिखाना है और उन्हें सहज बुद्धि से रहित करार देना है।

सेंगोल को उस मंच पर सजने दीजिए, जहां लोकसभाध्यक्ष बैठेंगे। इसे सदन की कार्यवाही का मूक साक्षी बनने दीजिए। सेंगोल तभी सीधा खड़ा रह पाएगा, अगर सदन में निर्बाध तरीके से बहस- मुबाहिसा होगा; अगर भाषण और अभिव्यक्ति की आजादी की पूरी स्वतंत्रता होगी; अगर असहमत और असंतुष्ट होने की आजादी होगी; और अगर अन्यायपूर्ण या असंवैधानिक कानूनों के खिलाफ मतदान करने की आजादी होगी। आइए, हम सब यह उम्मीद करें कि सेंगोल और इसके मायने – सेंगोनमाई (नेक शासन) – का परचम लहराएगा।