उत्तर प्रदेश जीतने के बाद शुरू होती है नरेंद्र मोदी की असली परीक्षा। वोट इस विशाल, बेहाल राज्य ने भारतीय जनता पार्टी को नहीं, मोदी को दिया है। इस बात का अहसास उनको खुद है, सो परिणाम आने के बाद अपने पहले भाषण में मोदी ने एक नया भारत बनाने की बातें की। वे यह भी जानते होंगे कि नए भारत का निर्माण असंभव है, जब तक नया उत्तर प्रदेश नहीं बनता है। सो, नींव उनको ही रखनी होगी इस प्रदेश में, जिसने उन्हें ऐसा बहुमत दिया है, जिसने दुनिया को हैरान कर दिया। यह पहला विधानसभा चुनाव है, जो दुनिया के बड़े अखबारों की सुर्खियों में बना रहा है। उत्तर प्रदेश के लोगों ने 405 में से 325 सीटें मोदी को देकर यह साबित करने की कोशिश की है कि वे पुराने किस्म की राजनीति और पुराने किस्म के राजनेताओं से तंग आ चुके हैं। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जिस ढंग से अपनी हार स्वीकार की, उससे उनका अहसास मजबूत हो गया होगा कि उन्होंने जातिवाद और धर्म-मजहब की गोद से चिपके राजनीतिक दलों और गठबंधनों को बाहर फेंक कर ठीक किया है। हार अखिलेश यादव ने इन शब्दों में स्वीकार की, ‘लोग काम करने वालों को वोट नहीं देते हैं, बहकाने वालों को वोट देते हैं।’ अरे अखिलेशजी, आपने अपनी साइकल पर देहातों में घूमने की तकलीफ की होती, तो शायद आपको भी दिख जाता कि पिछले पांच वर्षों में बहकाने का काम तो आपकी सरकार ने किया है। लैपटॉप बांटे ऐसे बच्चों को, जिनके स्कूलों में छतें नहीं हैं, जिनके घरों में बिजली-पानी नहीं है, जिनके गांवों तक अभी सड़कें नहीं पहुंची हैं। इन चीजों का अभाव हमेशा रहा है उत्तर प्रदेश में, लेकिन पिछले पांच वर्षों में कोई सुधार नहीं हुआ। लखनऊ के आलीशान रिहाइशी इलाके में बैठ कर आपको बेशक लगता होगा कि बहुत काम किया है आपने, लेकिन हकीकत कुछ और है।

खैर, अब ये बातें पुरानी हो गई हैं। अब समय है प्रधानमंत्री की परीक्षा का। उनको इस अति-पिछड़े प्रदेश में उस तरह का परिवर्तन लाकर दिखाना होगा, जो गुजरात के देहातों में उन्होंने दिखाया था मुख्यमंत्री बनने के बाद। कृषि की बिजली और घरेलू बिजली की लाइन को अलग करके दूर-दराज देहातों में बिजली उपलब्ध कराई थी। सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराया हजारों छोटे बांध बनवा कर। बाद में कांग्रेस के नेताओं ने साबित करने की बहुत कोशिश की कि ये सारे काम पहले से हो चुके थे गुजरात में, लेकिन मतदाता यथार्थ जानते थे, सो मोदी को गुजरात में नहीं हरा सके। क्या अब उत्तर प्रदेश को गुजरात बना सकेंगे प्रधानमंत्री? जिम्मेदारी उनकी होगी, राज्य सरकार की नहीं, क्योंकि उत्तर प्रदेश के मतदाताओं ने वोट उनको दिया है, बिना मुख्यमंत्री का चेहरा देखे। चुनौती कठिन है, इसलिए कि इस प्रदेश को जरूरत है न सिर्फ राजनीतिक और आर्थिक परिवर्तन की, बल्कि सामाजिक परिवर्तन की भी। दशकों की तथाकथित समाजवादी नीतियों के बाद यहां के लोगों की मानसिकता माई-बाप सरकार पर निर्भर रहने की बन गई है। छोटा से छोटा काम भी खुद नहीं करना चाहते। रायबरेली के एक गांव में मैंने देखा कि छोटे बच्चे कीचड़ के किनारे एक पेड़ के नीचे पढ़ाई कर रहे थे। मैंने गांव के एक बुजुर्ग से पूछा कि कीचड़ पर पत्थर डालने का काम गांव के नौजवानों से क्यों नहीं करवाते हैं। जवाब मिला, ‘अरे जी, यह अगर हम खुद करने लग गए तो विधायकजी श्रेय भी ले लेंगे और यहां आना भी बंद कर देंगे।’
ऊपर से है बेरोजगारी की समस्या। यह देश भर में है, लेकिन उत्तर प्रदेश और बिहार में सबसे ज्यादा। यहां काम आ सकता है प्रधानमंत्री का पर्यटन को अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा बनाने वाला सुझाव। बहुत बार कह चुके हैं कि पर्यटन के बल पर कई मुल्क गुरबत के शिकंजे से निकल कर संपन्नता हासिल कर चुके हैं। बिल्कुल सही है उनकी यह बात और पर्यटकों को आकर्षित करने का जो भंडार उत्तर प्रदेश के पास है, शायद ही किसी दूसरे प्रदेश के पास होगा। उत्तर प्रदेश के पास ताजमहल है, जहां माना जाता है कि भारत आने वाला हर विदेशी पर्यटक उसे देखने जाता है, लेकिन आगरा शहर का हाल देख कर ऐसा लगता है कि शाहजहां के बाद वहां किसी शासक ने विकास करने की कोशिश नहीं की।

उत्तर प्रदेश में बनारस है, जहां से प्रधानमंत्री खुद चुन कर आए हैं लोकसभा, लेकिन इतना महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थान होने के बावजूद बनारस का हाल देख कर रोना आता है। माना कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद घाटों पर थोड़ी-बहुत सफाई हुई है, लेकिन अंदरूनी शहर का यह हाल है कि जैसे वहां न नगरपालिका है न शासक। सुधार लाना मुश्किल नहीं है। बनारस किसी और देश में होता, तो इसकी प्राचीन इमारतों और घाटों को सुरक्षित और साफ रखने के लिए पहला कदम यह होता कि मोटरगाड़ियों का वहां आना बंद कराया जाता। ऐसा अगर बनारस में नहीं हुआ है, तो सिर्फ इसलिए कि उत्तर प्रदेश के शासकों को परवाह ही नहीं रही है इन चीजों की। ऐसा लगता है कि दशकों से इस राज्य के मुख्यमंत्री सिर्फ लखनऊ के उन रिहाइशी इलाकों की सजावट में लगे रहे, जहां वे खुद रिहाइश करते हैं। हाल यह है इन शासकों की खुदगर्जी का कि पूर्व मुख्यमंत्रियों को भी कोठियां मिलती हैं लखनऊ के सबसे महंगे रिहाइशी इलाकों में। समय ही बताएगा कि मोदी इन गलत आदतों को बदल सकेंगे या नहीं। जीतने के बाद अब शुरू होती है प्रधानमंत्री के लिए असली जंग।