अब तक हमारे शासक स्वीकार नहीं करते कि पुलवामा जैसे हमले आतंकवाद नहीं, युद्ध का हिस्सा हैं, तब तक हमारे बहादुर जवान शहीद होते रहेंगे। जिन चौवालीस सीआरपीएफ जवानों को उस कायर फिदाईन ने मारा पिछले हफ्ते वे शायद न मरते अगर जानते कि युद्ध के मैदान में खड़े हैं और दुश्मनों के वार के लिए हमेशा तैयार रहना जरूरी है। हमले के बाद सुनने को मिलीं हमें वही बातें, जो अक्सर सुनने को मिलती हैं ऐसे हमलों के बाद। प्रधानमंत्री ने ट्वीट करके कहा कि जवानों की शहादत जाया नहीं जाएगी। यही बात गृहमंत्री ने कही। सिर्फ जम्मू कश्मीर के राज्यपाल ने कबूल किया कि खुफिया संस्थाओं की गलती थी कि एक गाड़ी, जिसमें इतना असला था, आसानी से पहुंच पाई सीआरपीएफ के इतने बड़े काफिले के पास।
अब भी लेकिन हम इसको आतंकवाद ही कह रहे हैं, युद्ध नहीं। अब भी हमारे शासक मान कर चल रहे हैं कि युद्ध होता है सीमाओं पर, शहरों में नहीं। सो, जब उड़ी में सैनिक शिविर पर इसी जैश-ए-मोहम्मद ने हमला किया था 2016 में तो प्रधानमंत्री ने सर्जिकल स्ट्राइक करवाई। हम सब खुश हुए यह सोच कर कि नरेंद्र मोदी नए किस्म के राजनेता हैं और पाकिस्तान की र्इंट का जवाब हमेशा पत्थर से देंगे। लेकिन उस सर्जिकल स्ट्राइक के बाद कभी स्पष्ट नहीं किया मोदी ने कि उनकी पाकिस्तान को लेकर नीति क्या है। हां, इतना जरूर कहते हैं बार-बार कि बातचीत तभी शुरू होगी दोनों देशों के बीच, जब भारत की भूमि पर आतंकवादी हमले रुक जाएंगे। पर अभी तक स्वीकार नहीं किया है उन्होंने कि यह आतंकवाद नहीं युद्ध है। ऐसा युद्ध, जिसकी तैयारी हम अभी तक कर नहीं पाए हैं, क्योंकि अब भी हम इसको आतंकवाद ही समझ रहे हैं।
सच तो यह है कि पाकिस्तान बहुत पहले जान गया था कि पुराने किस्म के युद्ध अब नहीं हो सकते हैं दोनों देशों के बीच, क्योंकि परमाणु युद्ध हो जाने का खतरा है। सो, पाकिस्तानी सेना ने बहुत पहले से तैयार किए हैं मौलाना मसूद अजहर और हाफिज सईद जैसे जिहादी जरनैल, जो हैं तो पूरी तरह असली सैनिक, लेकिन इनको जिहादी कहा जाता है। इनकी संस्थाओं को प्रशिक्षित करती है पाकिस्तानी सेना, इनके हथियार भी सेना से आते हैं और इनके हमलों के लिए पैसा भी सेना देती है।
भारत ने बहुत देर लगा दी है इस नए युद्ध की तैयारी करने में। तैयार होते हम, तो मौलाना मसूद अजहर को क्या पांच साल कैद रखते भारत में बिना दंडित किए? जब आइसी 814 जहाज हाइजैक हुआ था 1999 के आखिरी दिनों में और हाइजैक करने वालों ने मौलाना मसूद और उमर शेख की रिहाई मांगी यात्रियों के बदले, तब याद आया कि पाकिस्तान का सबसे बड़ा जिहादी सरगना हमारे पास है। रिहा होने के फौरन बाद इसको हमने क्यों नहीं मारा? क्या इसलिए कि हमारे पास ऐसा करने की ताकत नहीं है? हमारी सेना ने नहीं तैयार की हैं ऐसी संस्थाएं, जो जैश-ए-मोहमद जैसी संस्थाओं का सामना कर सकती हों?
यह जिहादी मौलाना रिहा होने के बाद इतने आराम से रहने लगा पाकिस्तान में कि उसने एक किताब भी लिखी, जिसमें उसने लिखा कि जब भारत से उसको कंधार ले जा रहे थे भारतीय विदेश मंत्री जसवंत सिंह, तो उन्होंने उसको खाना और पानी पेश किया। लेकिन उसने लेने से इंकार किया, क्योंकि ‘भारत के पानी की एक बूंद भी मेरे गले से नहीं उतर सकती है।’ किताब लिखने के बाद इस मौलाना ने अपनी संस्था जैश-ए-मोहम्मद द्वारा हमारी संसद पर हमला करवाया दिसंबर 2001 में। हमने अफजल गुरु जैसे छोटे-मोटे सहायक को तो फांसी पर लटका दिया, लेकिन जिस व्यक्ति ने सारी साजिश रची थी, उसको कुछ नहीं कर पाए हैं। और शायद पुलवामा हमले के बाद भी हम कुछ नहीं कर पाएंगे।
पहले जब कांग्रेस के सेक्युलर प्रधानमंत्रियों का राज था, उनसे उम्मीद भी करना बेकार था कि वे इस नए युद्ध के लिए हमारे सैनिकों को प्रशिक्षित करेंगे। जब 26/11 वाले हमले के बाद एक पूर्व मुख्यमंत्री ऐसी किताब का विमोचन कर सकता है, जिसका शीर्षक था ‘26/11 : आरएसएस की साजिश’ तो कांग्रेस से क्या उम्मीद की जा सकती है। जब राहुल गांधी कह सकते हैं कि उनको जिहादी आतंकवाद से ज्यादा खतरा महसूस होता है हिंदू आतंकवाद से, तो बेकार है कांग्रेस से देश को ज्यादा सुरक्षित करने की उम्मीद।
मगर प्रधानमंत्री मोदी से उम्मीद जरूर थी कि वे ऐसी नीतियां बनाएंगे देश की सुरक्षा को लेकर, जिसमें हम भी ऐसे दस्ते तैयार करेंगे, जो पुलवामा जैसे हमलों के बाद मसूद अजहर जैसे दरिंदों को ढूंढ़ निकाल कर जान से मारने की काबिलियत रखते हों। बहुत अफसोस की बात है कि ऐसे दस्ते अभी तक तैयार नहीं हुए हैं और अब बहुत देर हो चुकी है, क्योंकि आम चुनावों को कुछ ही हफ्ते बाकी हैं।
सो, फिलहाल हम सिर्फ आशा यह कर सकते हैं कि मोदी जल्द से जल्द फैसला लेंगे पाकिस्तान के साथ सारे रिश्ते तोड़ने का। इस्लामाबाद में क्या फायदा है भारतीय दूतावास का, अगर ऐसे हमले हो रहे हैं हमारी भूमि पर? तिजारत का भी कोई फायदा नहीं है ऐसे माहौल में, सो जैसे हमने फैसला किया था बहुत पहले पाकिस्तान के साथ क्रिकेट न खेलने का, अब फैसला जरूरी है सारे रिश्ते समाप्त करने का, जब तक पाकिस्तान हमारी धरती पर पुलवामा जैसे हमले बंद करने का आश्वासन नहीं देता है किसी अंतरराष्ट्रीय संस्था के सामने। बहुत खून बहाया है हमारे बहादुर जवानों ने एक ऐसे युद्ध में, जिसको अभी तक हमने युद्ध का नाम ही नहीं दिया है।