नरेंद्र मोदी ने पिछले हफ्ते लोकसभा में अपने कार्यकाल का आखिरी भाषण दिया। काश कि इस भाषण में उन्होंने अपनी बातें ज्यादा की होतीं और कांग्रेस की कम। इतिहास के पन्ने पलट कर उन्होंने इंदिरा गांधी की गलतियां खोज कर पेश कीं। याद दिलाया कि पचास बार उनके दौर में राज्य सरकारों को बर्खास्त किया गया था, इमरजेंसी लगी थी, न्यायालयों की स्वतंत्रता को समाप्त कर दिया गया था। और आप मुझ पर आरोप लगाते हैं संस्थाओं को समाप्त करने का?
जनता बड़ी जालिम है मोदीजी। इतिहास में कम रुचि रखती है, वर्तमान में बहुत ज्यादा। सो, अच्छा होता अगर आपने अपने इस अति-महत्त्वपूर्ण भाषण में सिर्फ अपने कार्यकाल की बातें की होतीं। हां, आपने अपनी कई उपलब्धियां गिनार्इं तो थीं, लेकिन इनमें आपने नोटबंदी का जिक्र तक नहीं किया। क्या इसलिए कि आप भी जान गए हैं अब कि यह शायद आपके इस कार्यकाल की सबसे बड़ी गलती साबित होगी? नोटबंदी तक आपसे जनता ने पूरी उम्मीद रखी थी कि आप आर्थिक मामलों के इतने बड़े जादूगर हैं कि रोजगार की बहार लेकर आएंगे। नोटबंदी क्या की आपने कि रोजगार के करोड़ों अवसर तबाह हो गए और कई छोटे कारोबार हमेशा के लिए बंद हो गए।
नोटबंदी को आपने खुद कड़वी दवा कहा, लेकिन कड़वी दवा खाने का फायदा आज तक नहीं दिखा है भारत की अर्थव्यवस्था में, सो जिस रोजगार की उम्मीद से नौजवान भारतीयों ने आपका साथ दिया, वे रोजगार के नए अवसर आज तक नहीं पैदा हुए हैं। उलटा हाल में आए आंकड़ों के मुताबिक बेरोजगारी जिस हद तक आज है देश में, उस तरह की बेरोजगारी दशकों बाद दिखी है। सो, आपको हरा सकता है अगर कोई एक कारण, तो वह बेरोजगारी हो सकता है, ‘महामिलावट’ वाला गठबंधन नहीं। सही नाम दिया है इस गठबंधन को आपने, क्योंकि वास्तव में इस गठबंधन के बनने के पीछे देशसेवा की भावना नहीं है और न ही इसको संगठित करती है कोई महान विचारधारा। संगठन का कारण एक ही है और वह है मोदी।
इस बात को खुल कर कहते भी हैं इस गठबंधन के सरदार। बस मोदी को हराना है। उसके बाद कर लेंगे बातें देशसेवा की। न उनका यह मकसद नेक है और न ही इस गठबंधन का चरित्र। इसमें ज्यादातर नेता वे हैं, जो राजनीति में आए हैं मम्मी-पापा के आशीर्वाद से, जनता की सेवा के लिए नहीं। वे ऐसे लोग हैं जिन पर गंभीर आरोप हैं भ्रष्टाचार के। मगर वर्तमान उपलब्धि उनकी यही है कि मोदी की गलतियों का फायदा उठा कर उन्होंने आने वाले चुनाव के सूत्रधार की भूमिका छीन ली है मोदी के हाथों से।
इतना विश्वास है इस गठबंधन के नेताओं को अपनी जीत पर कि प्रधानमंत्री पद की भी गरिमा भूल गए हैं। सो, पिछले सप्ताह राहुल गांधी ने मोदी को डरपोक कहा। इससे पहले कई महीनों से उनको ‘चोर’ कहते आए हैं, जैसे साबित हो गया हो कि मोदी ने रफाल सौदे में चोरी की है। आरोप खूब लगे हैं इस सौदे को लेकर, हल्ला भी खूब मचा है, लेकिन अभी तक ठोस सबूत पेश नहीं किए हैं किसी ने कि इस सौदे में वास्तव में चोरी की गई है। पर चुनावों का मौसम है, सो कुछ भी चलता है।
मोदी के कार्यकाल में अगर गलतियां हुई हैं, तो अच्छे काम भी बहुत हुए हैं। मेरी नजर में सबसे अच्छा काम स्वच्छ भारत के तहत हुआ है। जहां कभी भारत के देहातों में खुले में शौच करते थे तकरीबन साठ प्रतिशत लोग, अब इतना परिवर्तन आ गया है कि माना जाता है तकरीबन अट्ठानबे प्रतिशत ग्रामीण जिले ऐसे हैं, जहां इस बीमारी फैलाने वाली गंदी आदत से मुक्ति मिल चुकी है। ग्रामीण भारत में परिवर्तन और भी आए हैं। दूरदराज गांव में भी अब गैस के कनेक्शन पहुंच चुके हैं, कच्ची बस्तियां कम हुई हैं और डिजिटल शब्द अब आम भाषा में आ गया है। माना कि डिजिटल से थोड़ी-बहुत तकलीफ हुई है उन ग्रामीणों को, जिनके गांव बहुत दूर हैं बैंकों से, लेकिन भविष्य में वे भी शायद जान जाएंगे डिजिटल दुनिया में आने के लाभ।
सो, हिसाब जब लगाएंगे इतिहासकार, मुझे यकीन है कि मोदी के इस कार्यकाल की गलतियों से ज्यादा गिनने को मिलेंगी उपलब्धियां। जितना विश्लेषण मोदी के इस कार्यकाल का किया गया है, शायद ही किसी पूर्व प्रधानमंत्री का किया होगा राजनीतिक पंडितों ने। और हर तरह से जो बात सामने आती है वह यह कि मोदी ने ईमानदारी से किया है काम और देश को आगे ले जाने की भावना से किया है। सो, जब उनकी तुलना की जाती है ‘महामिलावट’ के उस गठबंधन से, तो मोदी का कद उन सारे नेताओं से ऊंचा दिखता है। सर्वेक्षण भी बताते हैं कि अधिकतर लोग अब भी मोदी को प्रधानमंत्री बनने के सबसे काबिल समझते हैं।
दूसरे नंबर पर हैं राहुल गांधी, जो अभी से इतना इतरा के चलने लगे हैं कि राजनीति की मर्यादा भी भूल गए हैं। भूल गए हैं कि देश के प्रधानमंत्री की बात जब करते हैं तो उनको ‘डरपोक’ और ‘चोर’ कहना न सिर्फ गलत है, बदतमीजी है। राहुल गांधी राजनीति में नए नहीं हैं अब। एक दशक हो गया है उन्हें, जिसमें उन्होंने ज्यादातर चुनाव हारे हैं और काबिलियत भी कम दिखाई है। इसके बावजूद ऐसे पेश आ रहे हैं आजकल जैसे बन चुके हैं भारत के प्रधानमंत्री। भूल गए हैं शायद कि जिस महगठबंधन में वे शामिल हैं, उसमें प्रधानमंत्री बनने के दावेदार बहुत हैं। इन सबको खड़ा कर दिया जाए मोदी के सामने, तो मोदी की गलतियां भूल कर उनकी सिर्फ उपलब्धियां याद रहती हैं।