बहुत दिनों बाद राहुल गांधी के बारे में लिख रही हूं। लोकसभा में हार का सामना कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष के लिए इतना कठिन रहा है कि हर दूसरे दिन गायब हो जाते हैं। कभी मालूम पड़ता है कि बैंकॉक चले गए हैं आराम करने, तो कभी किसी विदेशी योगाश्रम में ध्यान की विद्या सीखने गए हैं। सोशल मीडिया पर भी कम दिखते हैं आजकल, और महाराष्ट्र में जो हाल में राजनीतिक तमाशा देखने को मिला, उसमें भी अनुपस्थित रहे हैं। मुझे विश्वास होने लगा था कि वास्तव में उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया है। आज अगर लिख रही हूं नेहरू-गांधी परिवार के इस वारिस के बारे में तो इसलिए कि पिछले हफ्ते दिल्ली में कुछ वरिष्ठ कांग्रेस राजनेताओं से मुलाकात हुई मेरी और उन्होंने बताया कि जल्दी ही वापस आने वाले हैं राहुल अपनी विरासत संभालने। क्या मतलब, मैंने पूछा, क्या फिर से कांग्रेस अध्यक्ष बनने वाले हैं? उन्होंने बताया कि उनकी माताजी की यही इच्छा है।

इस बात को हजम कर ही रही थी कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष की याद दिला दी। एक बार नहीं, दो बार। पहले रफाल सौदे की सारी याचिकाएं खारिज करके और दूसरी बार राहुल गांधी को फटकार लगा कर। याद होगा आपको कि लोकसभा चुनावों की सरगर्मी इतनी सिर चढ़ी थी राहुल गांधी के कि अपने एक भाषण में उन्होंने कह डाला कि सर्वोच्च न्यायालय मानता है कि ‘चौकीदार चोर है’ यानी नरेंद्र मोदी भ्रष्ट हैं। झूठ बोल रहे थे राहुल गांधी, सो भारतीय जनता पार्टी ने फौरन अदालत के दरवाजे खटकाए और लग गया उन पर अवमानना का मामला। पिछले हफ्ते न्यायाधीशों ने राहुल गांधी को दंडित नहीं किया, लेकिन सावधान जरूर किया कि इस तरह झूठ बोलना अच्छी बात नहीं है बड़े राजनेताओं के लिए।

अच्छा होता अगर इस बात को राहुल गांधी चुनाव अभियान के शुरू होते ही समझ गए होते। इतना विश्वास था उनको अपने सलाहकारों पर कि ‘चौकीदार चोर है’ को उन्होंने इस लोकसभा चुनाव में अपने प्रचार का सबसे अहम नारा बना दिया। अपनी हर जनसभा में इस नारे को चिल्लाते रहे जोर-जोर से बिना एक बार सोचे कि मोदी पर इस तरह का इल्जाम टिकाना आसान नहीं था। मेरा मानना है कि इस इल्जाम से राहुल खुद बदनाम हुए इतना कि उनकी अन्य बातों पर भी मतदाता विश्वास नहीं कर सके और नरेंद्र मोदी को एक बार फिर प्रधानमंत्री बन जाने का मौका दे दिया।

समस्या यह है कि लोकतंत्र में सत्ता पक्ष की उतनी ही जरूरत है, जितनी विपक्ष की और विपक्ष की भूमिका राष्ट्रीय स्तर पर सिर्फ कांग्रेस पार्टी निभा सकती है। सो, बहुत जरूरी है कि हमारी यह सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी अपने आप को पुनर्जीवित करने में सफल जो जाए। मोदी पर बेशक चोरी करने का आरोप टिकाना मुश्किल है, लेकिन उनकी सरकर की नाकामियां कई और हैं। जिनमें सबसे ज्यादा देश का नुकसान हो रहा है आर्थिक तौर पर। दोबारा सरकार बनाने के बाद मोदी का पहला बजट इतना कमजोर था कि अर्थव्यवस्था में मंदी के बादल और घने हो गए। इसको देख कर वित्तमंत्री ने बजट में किए गए कई फैसले रद्द कर दिए हैं। आश्वासन भी दिया है कई बार कि वे चाहती हैं कि लाखों भारतीय जल्दी अति-अमीर वाली श्रेणी में दाखिल जो जाएं। लेकिन मंदी अभी तक वैसी की वैसी है।

कांग्रेस पार्टी अगर पूरी तरह विपक्ष की भूमिका निभा रही होती तो आर्थिक नीतियों को लेकर रोज मोदी सरकार को आड़े हाथों लेने का काम कर रही होती। राहुल गांधी किसानों के बुरे हाल का जिक्र तो करते हैं, लेकिन कभी बताते नहीं हैं कि वे अगर सत्ता में होते तो कौन-से कदम उठाते किसानों की समस्याओं का हल ढूंढ़ने के लिए। बेरोजगारी की भी बातें करते हैं, लेकिन इसको भी सिर्फ एक नारा बना कर। नतीजा यह कि बेरोजगार नौजवान भी मोदी से अपनी सारी उम्मीदें बांधे हुए हैं। कांग्रेस पार्टी में इतनी मायूसी छाई रही है लोकसभा चुनाव हारने के बाद कि महाराष्ट्र और हरियाणा की विधानसभाओं में लड़ने से पहले ही हथियार डालते दिखे। इन राज्यों में अगर भारतीय जनता पार्टी को टक्कर मिली है, तो सिर्फ इसलिए कि शरद पवार और भूपेंद्र हुड्डा जैसे स्थानीय राजनेताओं ने जी-जान से लड़ाई लड़ी। कांग्रेस पार्टी पीछे ही रही दोनों जगह।

समस्या यह है कि राष्ट्रीय स्तर पर जब तक कांग्रेस पार्टी पुनर्जीवित नहीं होती, तब तक ऐसा लगता रहेगा कि मोदी को चुनौती देने वाला कोई नहीं है। मोदी तो दुबारा प्रधानमंत्री बनने के बाद अपना तकरीबन सारा समय विदेश यात्राओं में व्यस्त रहे हैं, सो शायद उनका ध्यान अपने मंत्रियों के बर्ताव की तरफ नहीं गया है। शायद उन्होंने देखा नहीं है कि इनमें कितना अहंकार दिखने लगा है। जब भी टीवी पर आते हैं ये लोग तो ऐसे पेश आते हैं जैसे कि जनप्रतिनिधि नहीं, राजा-महाराजा हों। पिछले हफ्ते कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के तेवर देखने लायक थे। जिस दिन रफाल सौदे पर सर्वोच्च न्यायालय ने अपना फैसला सुनाया उस दिन ये टीवी पर दिखे धमकाने वाले अंदाज में राहुल गांधी को डांट लगाते हुए। ‘देश से माफी मांगनी होगी राहुल गांधी को’ उन्होंने कहा गुर्रा कर, बिल्कुल वैसे जैसे हिंदी फिल्मों में खलनायक बोलते हैं।

अफसोस कि ऐसा अहंकार आजकल मोदी के हर मंत्री में दिखने लगा है। ऐसे पेश आते हैं जैसे कि चुनाव क्या जीते हैं, देश के मालिक बन गए हों। इस अहंकार को तोड़ना जरूरी है और यह काम राष्ट्रीय स्तर पर सिर्फ कांग्रेस पार्टी कर सकती है। कांग्रेस पार्टी को सख्त जरूरत है असली नेतृत्व की। एक वारिस की नहीं।